‘किसानों की आय बढ़ोतरी में समेकित कृषि प्रणाली बेहद उपयुक्त तकनीक’

कृषि झारखंड
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  • समेकित कृषि प्रणाली पर तीन दिवसीय वार्षिक समूह की राष्ट्रीय बैठक का समापन  

रांची। आईसीएआर-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (आईआईएफएसआर), मोदीपुरम, मेरठ द्वारा ऑनलाइन माध्यम से समेकित कृषि प्रणाली से जुड़े वैज्ञानिकों के कार्य समूह की वार्षिक बैठक की गई। इसमें देश के 25 कृषि विश्वविद्यालयों में संचालित आईसीएआर संपोषित 25 अखिल भारतीय समन्वित समेकित कृषि प्रणाली परियोजना केन्द्रों, देश के 11 उपकेंद्रों और एक केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय केंद्र के करीब 200 वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

मुख्य अतिथि आईसीएआर उपमहानिदेशक (एनआरएम) डॉ एसके चौधरी ने कहा कि देश में किसानों की आय बढ़ोतरी में समेकित कृषि प्रणाली बेहद उपयुक्त तकनीक एवं कारगर साबित हो रही है। उन्होंने छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त और समय एवं वातावरण के अनुकूल 2 से 3 अवयवों वाली लाभकारी मॉडल को चिन्हित तथा विकसित करने की आवश्यकता जताई।

विशिष्ट अतिथि सहायक उपमहानिदेशक (आईसीएआर) डॉ एस भास्कर ने बताया कि परियोजना अधीन भारतीय कृषि वैज्ञानिकों द्वारा पूरे देश के विभिन्न भागों की सिंचित एवं असिंचित भूमि के उपयुक्त विकसित की गई 60 से अधिक समेकित कृषि प्रणाली मॉडल से देश के किसानों को लाभ होगा।

राष्ट्रीय परियोजना समन्यवयक डॉ एन रविशंकर ने अखिल भारतीय स्तर पर समेकित कृषि प्रणाली आधारित शोध कार्यक्रमों की उपलब्धियों को रखा।

आईआईएफएसआर निदेशक डॉ एएस परमार ने बताया कि झारखंड सहित पूर्वोत्तर राज्यों के लिए वर्षा पानी संग्रह आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली को उपयोगी पाया गया है। इन प्रणालियों में गाय, भेंस, भेड़, बकरी, सूकर, मुर्गी, मछली एवं बत्तख पालन का समावेश है।

बैठक में देश के विभिन्न शोध परियोजना केन्द्रों के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र अनुरूप समेकित कृषि प्रणाली के शोध कार्यक्रमों पर विस्तार से चर्चा की। बीएयू, रांची केंद्र से  परियोजना अन्वेषक डॉ एस कर्मकार, शस्य वैज्ञानिक डॉ आरपी मांझी एवं डॉ नर्गिस कुमार और सीनियर रिसर्च फेल्लो डॉ चन्दन कुमार एवं नुसरत बनो ने भाग लिया। रांची केंद्र के प्रभारी डॉ कर्मकार ने झारखंड जलवायु के अनुरूप देशी गाय (शुद्ध नस्ल, स्थानीय फसल, छोटा बगीचा, मछली पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्‍खी पालन, मशरूम उत्पादन, बकरी पालन, सूकर पालन एवं फलदार बगीचा आधारित 5 एकीकृत कृषि प्रणाली को चिन्हित एवं विकसित करने की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस प्रणाली को एक हेक्टेयर भूमि में आसानी से किसान अपना सकते है।

कार्यशाला के समापन के अवसर पर क्षेत्रीय स्तर पर एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल के प्रसार में स्थानीय राज्य सरकार एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के सहयोग एवं समन्वय से ट्रेनिंग, प्रदर्शनी एवं प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। धन्यवाद डॉ एके प्रुस्टी ने किया।