संसद हमले की 20वीं बरसी : वो काला दिन जब बाल-बाल बचे थे लालकृष्ण आडवाणी और सांसद

देश नई दिल्ली
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नई दिल्ली। संसद भवन पर हमले की आज 20वीं बरसी है। आज से 20 साल पहले यानी 13 दिसंबर 2001 को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद भवन पर आंतकियों द्वारा हमला किया गया था। वहीं साल 2001 में हुए पार्लियामेंट हमले की 20वीं बरसी के मौके पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कईं नेताओं ने शहीदों को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने शहीदों को प्रेरणा बताते हुए कहा, ” मैं उन सभी सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जो 2001 में संसद हमले के दौरान कर्तव्य के दौरान शहीद हुए थे। राष्ट्र के लिए उनकी सेवा और सर्वोच्च बलिदान हर नागरिक को प्रेरित करता है।”

बता दें कि 20 साल पहले लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए- मोहम्मद आतंकवादी संगठन के आतंकवादियों ने पार्लियामें पर हमला करते हुए धड़ल्ले से गोलियां चलाई थी। इस गोलीबारी में 9 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में कई आतंकवादी भी मारे गए थे। हमले को अंजाम तब दिया गया जब संसद के दोनों सदन 40 मिनट के लिए स्थगित हुए थे। यही कारण था कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी अपने अपने आवास पर चले गए थे। लेकिन, तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी करीब 200 संसद सदस्यों के साथ संसद परिसर में ही मौजूद थे। इसी दौरान संसद परिसर में घुसकर आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी।

आतंकवादियों को गृह मंत्रालय और संसद के लेबल वाले स्टीकर गाड़ी पर लगे होने के कारण सबसे अधिक सुरक्षा वाली जगह पर सबसे आसानी से प्रवेश मिल गया और किसी को शक भी नहीं हुआ। गाड़ी का नंबर था DL-3 CJ 1527। सुरक्षाकर्मियों को धोखा देने में कामयाब रहे, लेकिन उनके कदम लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र कर पाते उससे पहले ही सुरक्षा बलों ने उन्हें ढेर कर दिया। हमले का अलार्म बजते ही सुरक्षाकर्मी आतंकवादियों से मुकाबला करने लगे। एक आतंकवादी ने गोली लगते ही खुद को उड़ा दिया। अन्य आतंकवादी बीच-बीच में हथगोला भी फेंक रहे थे।

सुरक्षाकर्मियों ने आतंकवादियों को चारों तरफ से घेर लिया और आखिरकार एक-एक कर सभी को ढेर कर दिया। इस आतंकवादी हमले में दिल्ली पुलिस के 5 जवानों के अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला और संसद सुरक्षा के दो सुरक्षा सहायक आतंकियों से बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गए। मुठभेड़ में एक माली की भी मौत हो गई थी। हर साल 13 दिसंबर को इन सुर वीरों को याद कर श्रद्धांजलि दी जाती है।