- कंपनी एवं इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी के बीच एमओयू
रांची। सीसीएल की कई परियोजना पर शोध होगा। इस क्रम में खदान क्षेत्र की मिट्टी के संरक्षण और उपयोग एवं देशी पारिस्थितिकी तंत्र के प्रत्यारोपण के लिए कार्यप्रणाली के विकास के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन किया जाएगा। इसे लेकर कोल इंडिया की सहायक कंपनी सीसीएल और झारखंड के रांची स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) किया गया। मौके पर सीसीएल सीएमडी पीएम प्रसाद भी उपस्थित थे।
इस एमओयू के तहत इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी को 441 लाख रुपये उपलब्ध कराया जायेगा। इससे खदान क्षेत्र की मिट्टी के संरक्षण और उपयोग एवं देशी पारिस्थितिकी तंत्र के प्रत्यारोपण के लिए कार्यप्रणाली के विकास के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन किया जाएगा। अध्ययन में लैंडस्केप डिजाइनिंग, स्थलों की पुष्प विविधता अध्ययन, उपयुक्त प्रजातियों की जांच, मिट्टी का अध्ययन/संशोधन, वृक्षारोपण तकनीक, वृक्षारोपण पर खदान का भौतिक-रासायनिक गुणों का प्रभाव का आकलन, प्रजातियों की मिट्टी की जांच सहित कई विषयों को शामिल किया जाएगा। शोध के लिए सीसीएल के रजरप्पा, आम्रपाली एवं अशोका परियोजना को चिह्नित किया गया है। इसकी अवधि पांच वर्षों की होगी।
इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी के निदेशक नितिन कुलकर्णी और सीसीएल की ओर से मुख्य प्रबंधक (पर्यावरण) आलोक कुमार त्रिपाठी ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर एफसीसी के हेड डॉ संजीव कुमार, सीसीएल से सीएमडी के तकनीकी सचिव ओलाक सिंह, मुख्य प्रबंधक (पर्यावरण) सुश्री संगीता एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
ज्ञातव्य हो कि पर्यावरण संरक्षण को सर्वोपरि स्थान देना सीसीएल की प्राथमिकता रही है। सीसीएल द्वारा कोयला उत्पादन करने के बाद वहां की भूमि पर पौधारोपण कर उसे हराभरा कर ‘ईको सिस्टम रेस्टोरेशन’ यानी पर्यावरण को हुये नुकसान की भरपाई करने का सतत प्रयास किया जाता है। खनन के दौरान नवीनतम तकनीकी एवं ईको फ्रेंडली प्रक्रिया अपनाकर पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाये। सस्टेनेबल माईनिंग द्वारा देश की उर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए सीसीएल प्रतिबद्ध है।