जनवादी कवि-आलोचक शाकिर अली नहीं रहे, जलेसं ने दी श्रद्धांजलि

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छत्तीसगढ़। प्रख्यात कवि-आलोचक शाकिर अली नहीं रहे। उनके आकस्मिक निधन पर जनवादी लेखक संघ (जलेसं) ने शोक व्यक्त किया है। उनका निधन कल हृदयाघात से हो गया था। वे जनवादी लेखक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी थे।

जलेसं के अध्यक्ष कपूर वासनिक और सचिव नासिर अहमद सिकंदर ने कहा कि शाकिर अली छत्तीसगढ़ की लेखक बिरादरी में सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं। लेखकीय दंभ से परे वे हर व्यक्ति से सहजता से मिलते थे। उनकी दो कविता संग्रह ‘नए जनतंत्र में’ और ‘बस्तर बचा रहेगा’ एवं एक आलोचना पुस्तक ‘आलोचना का लोकधर्म’ शीर्षक से प्रकाशित है। उनकी कविताएं सामाजिक यथार्थ के करीब अपना रास्ता तलाशती हैं। उनकी आलोचना का मुकाम भी इसी के आसपास ठहरता है। प्रगतिशील-जनवादी लेखन के साथ-साथ वे एक कुशल संगठनकर्ता भी थे। उनके निधन से छत्तीसगढ़ की समूची लेखक बिरादरी स्तब्ध और दुखी है।

जनवादी लेखक संघ, दुर्ग जिला इकाई ने आज उनके निधन पर शोक सभा आयोजित की। इस अवसर पर परदेसी राम वर्मा ने कहा कि शाकिर अली ने जीवन भर सैद्धांतिक जीवन जीते हुए प्रेरक लेखन किया। विनोद साव ने उन्हें सह्रदय व्यक्ति बताते हुए सबको जोड़ने वाला मिलनसार व्यक्ति माना। राकेश बम्बार्डे ने कहा कि उनका लेखन हमेशा याद किया जायेगा। नासिर अहमद सिकंदर ने कहा कि उनकी कविता कर्म को व्याख्यायित किया। शोक सभा में लक्ष्मी नारायण कुम्भकार, गजेंद्र झा, अजय चन्द्रवँशी, घनश्याम त्रिपाठी आदि ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी।