- पूर्वी सिंहभूम जिले के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा की कहानी
जमशेदपुर। यह कहानी झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा की है। वे जीवन का 92वां बसंत देख चुके हैं। वृद्धावस्था में आजादी की लड़ाई से जुड़ी यादें जेहन में कुछ धुंधली हो गई है। हालांकि आजादी की लड़ाई में उनकी सहभागिता को लेकर सवाल पूछे जाने पर आज भी उतनी ही जोश से संघर्ष और देश की स्थिति पर सहज भाव से जवाब देते हैं। आजादी की लड़ाई में अमूल्य योगदान के लिए उन्हें देश और प्रदेश के विभिन्न मंचों पर सम्मानित किया गया। वर्ष, 2008 में देश की तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने राष्ट्रपति भवन में भी सम्मानित किया था।
चुरामनपुर गांव, थाना बक्सर, जिला बक्सर (बिहार) के रहने वाले अखौरी बालेश्वर सिन्हा बताते हैं कि जब वे 9वीं कक्षा में थे, तब 1942 में गांधीजी के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने में उनके प्रेरणास्रोत उनके चचेरे बड़े भाई अखौरी रामनरेश सिन्हा (एडवोकेट) का भी अहम योगदान रहा। उनके भाई आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय थे। कई बार आदोलन के दौरान जेल भी गये। अंग्रेज अफसर बराबर उनके घर बड़े भाई को पकड़ने आते थे। उनके नहीं मिलने पर घरवालों को तंग किया करते थे। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की उनकी इच्छा को तभी बल मिलती गई। हालांकि छात्रावस्था में होने कारण उनकी गतिविधियां सीमित थी।
वे अपने दो और साथियों के साथ घर-घर घूमकर अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा बांटने और जन-जागरण किया करते थे। इसी दौरान 1945 में बक्सर बाजार में जन-जागरण करते समय अंग्रेज पुलिस ने इन्हें टोली के कुछ लड़कों सहित गिरफ्तार कर लिया। तब इनकी उम्र करीब 18 वर्ष थी। बक्सर जेल में छह माह 20 दिन की सजा काटकर निकले तो फिर टोली के साथ सक्रिय हो गए। हालांकि इसके बाद दोबारा कभी अंग्रेज पुलिस के हाथ नहीं लगे।
अखौरी बालेश्वर सिन्हा बताते हैं कि मैं अपने चचेरे बड़े भाई के साथ 1942 के आदोलन में अहम भूमिका निभाने लगा था। बक्सर कचहरी में आग लगाने, टेलीफोन का तार काटने, रेलवे लाईन उखड़ने आदि कामों में अपनी टोली के लड़कों के साथ सहयोग करता था। महात्मा गांधी के नारे ‘करो या मरो’ के आह्वान पर देश में जो उत्साह की लहर पैदा हुई, वह अपने आप में मिसाल थी। आजादी की लड़ाई में अपने कई साथियों को खोने वाले अखौरी बालेश्वर सिन्हा की आंखें आज भी उन्हें याद कर नम हो जाती हैं। हालांकि आजादी मिलने की खुशी और देशवासियों के लिए गुलामी की जंजीरों को तोड़कर खुली हवा में सांस लेने के पल को लेकर आज भी काफी गौरवांवित होकर बताते हैं।
इंटरमीडिएट तक पढ़े अखौरी बालेश्वर सिन्हा 8 भाई और 2 बहन थे। इनके चार पुत्र एवं दो पुत्रियों का भरा पूरा परिवार है। वे बतातें है कि आजादी मिलने के बाद वे जमशेदपुर आए। यहां टाटा स्टील में नौकरी मिल गई। वहां से सेवानिवृत्त होने के बाद अब न्यू हाउसिंग कॉलोनी, आदित्यपुर में अपने पुत्र-पुत्रवधु के साथ रहते हैं।