बंद खदान स्थलों का फिर इस्तेमाल करेगा कोयला मंत्रालय

देश नई दिल्ली
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  • खदानों को बंद करने का फ्रेम वर्क दो चरणों में लागू किया जाएगा

नई दिल्‍ली। कोयला मंत्रालय भूमि के दोबारा इस्तेमाल के लिए एक मजबूत माइन क्लोजर फ्रेमवर्क को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है। मंत्रालय इस योजना के लिए विश्व बैंक से सहयोग और सहायता हासिल करने के लिए शुरूआती विचार-विमर्श कर रहा है। विश्व बैंक के साथ प्रस्‍तावित सहयोग के लिए एक प्रारंभिक प्रोजेक्ट रिपोर्ट मंजूरी के लिए वित्त मंत्रालय को भेज दी गई है।

कोयला मंत्रालय के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सेल के जरिए बंद खदान स्थलों को दोबारा इस्तेमाल की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी गई है। नए कार्यक्रम से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के लिए कोयला कंपनियों और कोयला नियंत्रक कार्यालय के साथ कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं। उनके विचार और सुझाव प्राप्त करने के लिए संबंधित मंत्रालयों और नीति आयोग के साथ अंतर-मंत्रालीय चर्चा भी हुई है।

भारतीय कोयला क्षेत्र के लिए खदानों को व्यवस्थित तरीके से बंद करने की अवधारणा नई है। खदान बंद करने के दिशा-निर्देश पहली बार 2009 में पेश किए गए थे। 2013 में इन्हें फिर से जारी किया गया। अभी भी ये विकसित होने की प्रक्रिया में हैं। चूंकि] भारत में कोयला खनन बहुत पहले शुरू हो गया था। हमारे कई कोयला क्षेत्र की खदानें वर्षों से भरी पड़ी हैं, जो लंबे समय से इस्तेमाल नहीं की गई है। इसके अलावा, कई खदानें बंद हो रही हैं! भविष्य में कई बंद हो जाएंगी। ऐसा भंडार की समाप्ति, भू-खनन की प्रतिकूल स्थिति, सुरक्षा, मुद्दे आदि के कारण है।

इन खदान स्‍थलों को ना केवल सुरक्षित और पर्यावरणीय रूप से स्थिर बनाया जाना चाहिए, बल्कि उन लोगों की अजीविका की निरंतरता बनाए रखने के भी प्रयास होने चाहिए, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खदानों पर निर्भर थे। साथ ही प्राप्त की गई जमीन को स्थानीय समुदाय और सरकार के लिए आर्थिक रुप से फायदेमंद बनाना चाहिए। इसके लिए पर्यटन, खेल, वानिकी, कृषि, बागवानी, टाउनशिप आदि तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए कोयला मंत्रालय ने वर्षों से मौजूद खदानों, हाल ही में बंद हुई खदानों और जल्द ही बंद होने वाली खदानों को कवर करने के लिए खदानों को बंद करने वाला एक देशव्‍यापी, व्‍यापक, समावेशी, फ्रेमवर्क तैयार करने की रुपरेखा बनाई है। इसके तहत दो महत्वपूर्ण घटक होंगे।

चरण 1 के तहत मौजूदा और लंबित कोयला खदानों को बंद होने के संबंध में एक विस्तृत फ्रेमवर्क बनाने के लिए भारतीय कोयला इकोसिस्‍टम का व्‍यापक मानचित्रण शामिल है। संस्‍थानों की तैयारी और क्षमता, खदानों की बंद करने की मौजूदा प्रक्रिया, कोयला खदानों के आसपास की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और पर्यावरणीय आधार इसमें शामिल होंगे। इस प्रक्रिया के जरिए जो परिणाम आएंगे, उनके आधार पर मौजूदा वैधानिक और संस्थागत ढांचे में सुधार का सुझाव दिया जाएगा और वित्तीय व्यवस्था के साथ उपरोक्त तीन प्रमुख पहलुओं को शामिल करते हुए खदान बंद करने के लिए एक रोडमैप पेश किया जाए।

चरण 2 में अंतिम रोडमैप के अनुसार खदान बंद करने के कार्यक्रम को वास्तविक रुप से अमल में लाया जाएगा और इसमें शामिल होंगे i) बंद करने से पहले की योजना, ii) जल्द बंद और iii) क्षेत्रीय स्तर पर परिवर्तन के लिए रोडमैप। इसके जरिए यह सुनिश्चितकिया जाएगा कोई भी पीछे न छूटे। यह चरण चरण -1 के पूरा होने के बाद शुरू होगा और लंबे समय तक जारी रहेगा और अमल के दौरान सीखे गए अनुभवों के आधार पर, जरुरत पड़ने पर छोटे-छोटे बदलाव भी किए जा सकेंगे।

कार्यक्रम के पहले चरण के 10-12 महीनों तक जारी रहने की संभावना है। इसके शीघ्र ही शुरू होने की उम्मीद है। इस कार्यक्रम के दोनों चरणों की निगरानी के लिए कोयला नियंत्रक कार्यालय के प्रशासनिक नियंत्रण में एक विशेष प्रयोजन इकाई (एसपीई) का गठन किया जाएगा। कार्यक्रम के सफल निष्पादन के लिए कोयला कंपनियों को एसपीई के साथ समन्वय करने के लिए विभिन्न विषयों की एक समर्पित टीम भी बनाई जाएगी।

उम्मीद है कि अगले 3-4 वर्षों की अवधि के दौरान निरंतर अनुभवों से खदान बंद करने की एक व्यापक रूपरेखा का विकास होगा। खदान बंद करने वाले संस्थानों को पर्याप्त रूप से मजबूत किया जाएगा। खदान को बंद करने के लिए बेहतर नीति की आवश्यकता होगी, जो कि मध्यम से लंबी अवधि के आधार पर बनेगी। कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम सभी पुराने खदान स्थलों का स्थायी इस्तेमाल होगा, जो लंबे समय से बेकार पड़े हैं। इसके तहत ना केवल खदान स्‍थलों को स्‍थायी रूप से बहाल किया जाएगा, बल्कि खानों पर निर्भर परिवारों की आजीविका का भी ध्यान रखा जाएगा।