सस्ती लोकप्रियता के लिए वित मंत्री दे रहे ऐसा बयान, खेद जताएं : शैक्षिक महासंघ

झारखंड
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रांची। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के झारखंड प्रदेश प्राथमिक प्रकोष्ठ ने वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव के उस बयान की भर्त्सना की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का माहौल नहीं है। संगठन ने मंत्री से इस गैर जिम्मेदाराना बयान के लिए खेद व्यक्त करने की मांग की है। साथ ही, सरकार के प्रतिष्ठित उच्‍च शैक्षणिक संस्‍थानों में सरकारी स्‍कूल से पढ़े बच्‍चों के लिए 90 फीसदी तक सीटें आरक्षित करने की मांग की।

संगठन के संयोजक आशुतोष कुमार, सह संयोजक श्री विजय बहादुर सिंह एवं प्रदेश मीडिया प्रभारी अरुण कुमार दास ने कहा कि प्राइवेट स्‍कूलों में मात्र 10 से 15 फीसदी बच्चे ही शिक्षा ग्रहण करते हैं। वहां पढ़ाई की सभी अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके अतिरिक्त वे बच्चे साधन संपन्न परिवार के होते हैं। लगभग सभी बच्चों के अभि‍भावक भारी रकम देकर निजी ट्यूशन भी उपलब्ध कराते हैं। वहीं 85 से 90% बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ते हैं। यहां ना शिक्षक हैं ना पर्याप्त संसाधन। ऊपर से शिक्षकों से पढ़ाई के अतिरिक्त तमाम गैरशैक्षणि‍क कार्य कराये जाते हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों की निम्न आर्थिक पृष्ठभूमि होती है। इसकी वजह से पारिवार के आर्थिक कार्यों में भी हाथ बंटाना दैनिक कार्यों में समाहित होता है। वे अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी में भी अपनी सहभागिता निभाते हैं। इन सभी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद आज भी सरकारी विद्यालय के बच्चे किसी भी प्रतिभा में कमतर नहीं हैं।

संगठन के पदधारियों ने कहा कि राज्य एवं देश के सफल इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, व्यवसायी, अधिवक्ता समेत अनेकों महान विभूतियां सरकारी व्यवस्था में ही शिक्षा ग्रहण किये। देश को सींचा है। ऐसे में वित्त मंत्री का यह बयान कि‍ सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माहौल नहीं है, यह उन महान विभूतियों का अपमान है, जिन्होंने सरकारी स्‍कूलों में शिक्षा ग्रहण कर भारत का नेतृत्व किया। देश को एक नई दिशा देने का काम किया।

संगठन ने कहा कि वर्तमान समय में सरकारी शिक्षक जिन परिस्थितियों में विद्यालय में पढ़ाने का काम कर रहे हैं, यह अपने आप में एक चुनौती है। सरकारी विद्यालय में वैसे बच्चे आते हैं, जो आर्थिक दृष्टि से काफी कमजोर होते हैं। उन बच्चों को निजी विद्यालय नामांकन नहीं लेते हैं। सरकारी शिक्षक ऐसे गरीब बच्चों को समुचित शिक्षा देकर उनके अंदर ज्ञान की लौ जगाते हैं। यह भी देखा जाता है कि सरकारी विद्यालयों में आधारभूत संरचना एवं गैर शैक्षणिक  कार्य में लगाये जाने के बावजूद भी शिक्षक शिक्षण कार्य करते हैं। बेस्ट परफॉर्मेंस देने का प्रयास करते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षक कोरोना जैसी आपदा में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने जीवन को दांव पर लगाकर काम कर रहे हैं। यह उनका भी अपमान है।

संगठन के पदधारियों ने कहा कि खुद सरकार के अंग होकर वित्त मंत्री ने सरकारी व्यवस्था में पढ़ रहे बच्चों को जिस तरह से हतोत्साहित किया है, इसका दूरगामी प्रभाव होगा। गरीब बच्चों को शिक्षा देने का एकमात्र साधन सरकारी व्यवस्था के विद्यालय हैं। ऐसे में इन विद्यालयों में पढ़ रहे लाखों बच्चों का यह अपमान है। वित मंत्री अपनी सस्ती लोकप्रियता एवं आम जनमानस में शिक्षकों के प्रति ऐसी दुर्भावना को प्रचारित करने के स्थान पर राज्य के उन गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए तनिक बेहतर सोच के साथ विद्यालयों में पठन पाठन के लिए अनुकूल माहौल दें। अपनी विफलता का ठीकरा निरीह शिक्षकों पर नहीं फोड़ें।

महासंघ सरकार ने आग्रह कि‍या है कि सरकारी विद्यालयों में मंत्री से लेकर संतरी एवं अधिकारी से लेकर आदेशपाल तक के बच्चों को को सरकारी विद्यालयों में पढ़ना सुनिश्चित कराये। सभी सरकारी उच्च संस्थानों आईआईएम,आईआईटी, एनआईटी, मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटीज आदि में सरकारी विद्यालय से पढ़कर आने वाले बच्चों के लिए उनके संख्या के अनुरूप 85% से 90% स्थानों को आरक्षित करने का भी आह्वान कि‍या। वित्त मंत्री से इस गैरजिम्मेदाराना बयान के लिए खेद व्यक्त करने की मांग कि‍या।