पटना। इस साल की शुरुआत में स्वास्थ्य मंत्रालय ने इंडिया टीबी रिपोर्ट जारी किया। इसके अनुसार, 2020 में टीबी के 18.05 लाख मामले दर्ज किए गए। यह महामारी की वजह से वर्ष, 2019 की तुलना में 24% कम था। सरकार का लक्ष्य भारत में 2025 तक टीबी को खत्म करना है। हालाकि भारत को टीबी मुक्त बनाने के लिए जल्द जांच करना (डायग्नोसिस), मामले को सूचित करना, ट्रैकिंग, संपर्क निगरानी (कॉन्टैक्ट मॉनिटरिंग) और मरीजों को बिना रुकावट इलाज करने जैसे कदम उठाने होंगे।
टीबी को जड़ से खत्म करना संभव
पीएमसीएच के फिजिशियन डॉ पंकज कुमार सिंह कहते हैं कि समय पर जांच और सही इलाज से टीबी को जड़ से खत्म किया जा सकता है। इस बीमारी को रोका जा सकता है। इसके बाद भी इसकी वजह से भारत में हर साल 4,00,000 से अधिक लोग अपनी जान गंवा देते हैं। सरकार और टीबी योद्धा पहले से ही टीबी के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन इस घातक बीमारी को हराने और टीबी को खत्म करने के लिए देश के हर नागरिक के सामूहिक प्रयास की जरूरत है। इस बीमारी के लिए जागरुकता, इसके लक्षणों के बारे में जानना और कोई लक्षण दिखने पर जल्द से जल्द किसी योग्य डॉक्टर के पास जाना सबसे जरूरी है।
टीबी हवा से फैलती है
डॉ सिंह के मुताबिक टीबी हवा से फैलती है। इस बीमारी से संक्रमित व्यक्ति द्वारा छोड़ी गई सांस से कोई भी दूसरा व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। टीबी के बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं। लोगों में कुछ समय बाद एक्टिव (सक्रिय) टीबी के लक्षण विकसित हो सकते हैं, जब उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो। लोग सक्रिय रोग विकसित किए बिना टीबी बैक्टीरिया को फैलने से रोक सकते हैं। इसे गुप्त टीबी कहा जाता है और हालांकि यह संक्रामक नहीं है। आमतौर पर इसमें लक्षण नहीं दिखते हैं, इसके बावजूद ये सक्रिय टीबी में तब्दील हो सकता है।
कई अंगों को प्रभावित करती है
डॉक्टर के मुताबिक हालांकि टीबी सबसे अधिक फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यह शरीर के कई दूसरे अंगों जैसे लिम्फ नोड्स, गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट, हड्डियों, मस्तिष्क और यहां तक कि प्रजनन तंत्र को भी प्रभावित कर सकता है।
टीबी रोगियों से बचने की जरूरत
ऐसी टीबी जिसकी जांच नहीं की गई है या इलाज नहीं किया गया है, आपके स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है। आपके और समुदाय के लोगों में इस रोग के फैलने की आशंका को बढ़ा सकता है। चूंकि बिना लक्षणों वाली टीबी की बीमारी संक्रामक नहीं होती है, इसलिए इस बीमारी वाले लोग अपने रोजाना के कामकाज को जारी रख सकते हैं। हालांकि, पल्मोनरी (फेफड़े) टीबी रोग के रोगियों को घर पर रहने और दूसरों के साथ निकट संपर्क से बचने की जरूरत है। याद रखें, कुछ हफ्तों की दवा के बाद, आप से संक्रमण फैलने का खतरा नहीं होता। लेकिन, इलाज का पूरा कोर्स (आमतौर पर लगभग 6 महीने) पूरा करना बहुत जरूरी है अन्यथा यह फिर से उभर सकता है, और उससे भी बदतर स्थिति में। इस तरह, उसका इलाज और मुश्किल हो सकता है।
डॉक्टर की सलाह मानें
टीबी की दवा तब तक जारी रखनी हैं, जब तक आपका डॉक्टर ऐसा करने के लिए कहते हैं। इसलिए टीबी से डरें नहीं या इसको लेकर किसी तरह के पूर्वाग्रह से बचें। इसका पूरी तरह से इलाज संभव है।
ऐसे में कराना चाहिए टीबी की जांच
दो सप्ताह से अधिक समय से खांसी हो (आमतौर पर कभी-कभी बलगम के साथ खून आ रहा हो), बुखार, भूख और वजन में कमी, रात को पसीना, या अत्यधिक थकान महसूस हो रही हो तो, आप टीबी से पीड़ित हो सकते हैं।
कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला कोई भी व्यक्ति (अर्थात जिनकी रोगों से लड़ने की क्षमता कम है) को टीबी होने का खतरा अधिक होता है। इनमें कुपोषित, एचआईवी पॉजिटिव, मधुमेह से पीड़ित, इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाओं जैसे स्टेरॉयड या ऑटोइम्यून डिसऑर्डर्स (जैसे रुइमेटॉयड आर्थराइटिस) के लिए दवाएं ले रहे और कैंसर के लिए कीमोथेरेपी लेने वाले लोग शामिल हैं।
टीबी के मरीजों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को भी इससे संक्रमित होने का खतरा होता है। टीबी के मरीजों के साथ अपना ज्यादातर समय बिताने वाले लोगों को इस बीमारी की चपेट में आने की संभावना अधिक होती है। समय पर निदान बीमारी को बढ़ने में मददगार हो सकता है।
टीबी रोगियों या जिनको टीबी होने अधिक खतरा है, उनके संपर्क में रहना भी जोखिमपूर्ण है। अगर परिवार के किसी सदस्य को टीबी हो चुका है तो उसके संभावित संपर्क में आ चुके शिशुओं, बच्चों और किशोरों का परीक्षण भी किया जाना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।