झारखंड में मिल्लेट्स फसलों को बढ़ावा देने के लिए शीघ्र विशेष रणनीति बनाएगा बीएयू

कृषि झारखंड
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  • कर्टेन रेसर ऑफ़ इंटरनल ईयर ऑफ 2023 कार्यक्रम का प्रतिवेदन

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची के आरएसी ऑडिटोरियम में 17 सितंबर, 21 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के निर्देश पर कर्टेन रेसर ऑफ इंटरनल ईयर ऑफ मिल्लेट्स 2023 पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में आयोजित इस वर्चुअल माध्यम कार्यक्रम का लाइव प्रसारण किया गया। इस कार्यक्रम को ऑडिटोरियम में मौजूद सैकड़ो लोंगों ने देखा और सुना। इस अवसर पर बीएयू के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह के आलावा जनप्रतिनिधियों में रांची के सांसद संजय सेठ एवं कांके विधायक समरी लाल की भी उपस्थित थे।

मौके पर विश्वविद्यालय के डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव, रजिस्ट्रार डॉ नरेंद्र कुदादा, डायरेक्टर ऑफ रिसर्च डॉ अब्दुल वदूद, डीन पीजी डॉ एमके गुप्ता, डायरेक्टर स्टूडेंट वेलफेयर डॉ डीके शाही, एसोसिएट डीन (एग्रीकल्चर, गढ़वा) डॉ एसके पाल, एसोसिएट डीन (एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग) ई डीके रूसिया, एसोसिएट डीन (बायोटेक्नोलॉजी) डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती, चेयरमैन (कीट विज्ञान) डॉ पीके सिंह, चेयरमैन (जेनेटिक्स एंड ब्रीडिंग) डॉ सोहन राम, विभागाध्यक्ष (सामुदायिक विज्ञान विभाग) डॉ रेखा सिन्हा, यूनिवर्सिटी प्रोफेसर (साइल साइंस) डॉ राकेश कुमार, प्रोजेक्ट इन्वेस्टीगैटर (आईसीएआर – एआईसीआरपी ऑन एलटीएफई) डॉ पी महापात्र, प्रोजेक्ट इन्वेस्टीगैटर (आईसीएआर – एआईसीआरपी ऑन मिल्लेट्स) डॉ अरुण कुमार, प्रोजेक्ट इन्वेस्टीगैटर (आईसीएआर – एआईसीआरपी ऑन वीड कंट्रोल) डॉ शीला बारला के अलावा अनेकों फैकल्टी मेंबर्स एवं साइंटिस्ट ने भाग लिया।

इस अवसर पर कांके ग्रामीण क्षेत्र के 125 से अधिक महिला और पुरुष किसान एवं स्थानीय अनीता गर्ल्स हाई स्कूल की शिक्षिका, 100 से अधिक छात्रा भी मौजूद रहीं।

मौके पर ऑडिटोरियम में मौजूद जन समूह ने पूरे प्रदेश में मोटे अनाज को पोषक अनाज के रूप में मिल्लेट्स फसल की खेती को तत्काल प्रभाव से पूरे प्रदेश में बढ़ावा देने का संकल्प लिया गया।

आईसीएआर द्वारा आयोजित कर्टेन रेसर ऑफ इंटरनल ईयर ऑफ 2023 कार्यक्रम के उपरांत कुलपति की अध्यक्षता में झारखंड में मिल्लेट्स फसलों की संभावना पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मौके पर मौजूद रांची सांसद संजय सेठ द्वारा ऑडिटोरियम में मौजूद किसानों को विभिन्न सब्जी फसलों एवं मड़ुआ के उन्नत बीज का वितरण किया गया। कांके विधायक समरी लाल द्वारा स्थानीय अनीता गर्ल्स हाई स्कूल की शिक्षिका एवं छात्राओं को गम्हार, टीक एवं शीशम के पौध सामग्री का वितरण किया गया।

मुख्य अतिथि रांची सांसद ने सुपर फूड के रूप में मिल्लेट्स फसलों के उत्पाद के महत्‍व पर प्रकाश डाला। कहा कि वर्तमान में सुपर फूड के रूप में मिल्लेट्स फसलों के उत्पाद की भारी मांग है। भारत के भारतीय व्यंजनों में पुनः ज्वार, बाजरा, मड़ुआ आदि पसंद किया जाने लगा है। पोषक खाद्यान्न के महत्‍व को देखते हुए अब विभिन्न समारोहों में इसके व्यंजनों को पसंद किया जाता है। प्रदेश में वर्षा आधारित खेती को देखते हुए उन्नत तकनीकी से मिल्लेट्स फसल की काफी संभावना है। कृषि विश्वविद्यालय को इस दिशा में विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है।

विशिष्ठ अतिथि कांके विधायक समरी लाल ने कहा कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बच्चों के बीच कुपोषण विकराल समस्या है। ग्रामीण क्षेत्रों के किसान कृषि कार्य से अधिक लाभ को देखते हुए मोटे आनाज की पारंपरिक खेती से विमुख हो चले है। पोषण में मोटे आनाज की गुणवत्ता को देखते हुए पूरे प्रदेश में विशेष अभियान चलाने की जरूरत है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि मिल्लेट्स फसलों को वैश्विक स्तर पर विशेष महत्व दिया जा रहा है। यूएनओ द्वारा घोषित इंटरनल ईयर ऑफ मिल्लेट्स 2023 में भारत की अग्रणी भूमिका होगी। झारखंड में मिल्लेट्स फसलों की खेती को बढ़ावा देकर ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा एवं पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। विश्विद्यालय द्वारा विकसित मड़ुआ की तीन किस्मों यथा ए 404, बिरसा मड़ुआ – 2 तथा बिरसा मड़ुआ-3 और गुन्दली की किस्म बिरसा गुन्दली-1 से 20 से 30 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। मिल्लेट्स फसल की ये सभी किस्में किसानों के बीच काफी प्रचलित है। राज्य में ज्वार, बाजरा एवं कोदो फसल की भी काफी संभावना है।  उन्होंने विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग को मिल्लर्ट्स फसलों के उन्नयन के दिशा पर विशेष जोर देने पर बल दिया। इस दिशा में त्वरित शोध की जरूरत बताई। कहा कि बीएयू द्वारा प्रदेश में मिल्लेट्स फसलों को बढ़ावा देने के लिए शीघ्र ही विशेष रणनीति बनाई जाएगी।

इस अवसर पर डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव ने रोल ऑफ प्लांटेशन ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर एंड रूरल लाइवलीहुड विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारी भावी पीढ़ी की आजीविका एवं पोषण सुरक्षा के लिए टिकाऊ कृषि पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए पौध रोपण द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं मिल्लेट्स फसलों की खेती को बढ़ावा देकर दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए साधन विकसित किये जा सकते है।

न्यूट्री सीरियल्स एंड देयर रोल इन ह्यूमन हेल्थ विषय पर सामुदायिक विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ रेखा सिन्हा ने अपने विचारों को रखा। उन्होंने मड़ुआ के प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन से निर्मित विभिन्न उत्पादों एवं लाभों के बारे में बताया। इस दिशा में विभाग के द्वारा अनेकों प्रशिक्षणों का आयोजन किया जाता है, जिसके लाभ से प्रदेश की कृषक महिला उद्यम की ओर उन्मुख हो रही है।

मौके पर प्रोजेक्ट इन्वेस्टीगैटर (आईसीएआर – एआईसीआरपी ऑन मिल्लेट्स) डॉ अरुण कुमार ने कहा कि भारत के प्रयासों से 5 मार्च, 2021 को यूनाइटेड नेशन आर्गेनाइजेशन ने वर्ष 2023 को इंटरनल ईयर ऑफ मिल्लेट्स 2023 घोषित किया है। मिल्लेट्स फसल में विद्यमान पोषण गुणों के कारण कोरोनाकाल में इसे विशेष महत्व दिया जाने लगा है। भारत ने मिल्लेट्स फसल (मोटा अनाज) को पोषक आनाज के रूप में महत्व देने की बात कही है। उन्होंने झारखंड में मिल्लेट्स फसल की स्थिति एवं भावी संभावना पर विस्तार से प्रकाश डाला। कहा कि‍ कृषि विश्वविद्यालय के प्रयासों से प्रदेश में मिल्लेट्स फसल मड़ुआ पुनः किसानों के बीच लोकप्रिय हो रहा है। राज्य में मिल्लेट्स फसल के आच्छादन क्षेत्र में विस्तार और उत्पादन एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी की दिशा में सभी संभव गतिविधियों को कार्यान्वित किया जायेगा।

मौके पर शस्य वैज्ञानिक डॉ नैयर अली ने कहा कि देश की भावी कृषि विकास में टिकाऊ खेती का विशेष महत्‍व है, जबकि मिल्लेट्स फसलें स्वभावत : जैविक खेती का पर्याय है। मिल्लेट्स फसलों की खेती को बढ़ावा समय की बड़ी मांग है। इस दिशा में पूरे राज्य में शीघ्र अभियान चलाने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम का संचालन बड़े मनमोहक ढंग से श्रीमती शशि सिंह ने किया। धन्यवाद एसोसिएट डीन (एग्रीकल्चर, गढ़वा) एवं यूनिवर्सिटी प्रोफेसर (एग्रोनोमी) डॉ एसके पाल ने दी। डॉ पाल ने कहा कि देश के किसान अधिक लाभ वाली फसलों धान, गेहूं एवं मक्का की ओर आकर्षित है। वर्तमान परिवेश में मोटे आनाज के पोषण महत्व एवं बाजार में अधिक कीमत को देखते हुए किसानों को मोटे आनाज की परंपरागत खेती से जागरुकता अभियान समय की मांग है।