रांची। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो, रीजनल आउटरीच ब्यूरो रांची तथा फील्ड आउटरीच ब्यूरो, धनबाद के संयुक्त तत्वावधान में “आजादी का अमृत महोत्सव: झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान” विषय पर आज गुरुवार को एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इसमें राज्य के प्रमुख इतिहास के व्याख्याताओं और विमर्शकों ने अपनी राय रखी।
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए पीआईबी-आरओबी रांची के अपर महानिदेशक अरिमर्दन सिंह ने अतिथि वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि देश की आजादी के 75 साल पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। यह कार्यक्रम केवल आजादी के आंदोलन के ऊपर नहीं, बल्कि उससे पहले और उसके बाद के कार्यों पर भी केंद्रित है। इन कार्यक्रमों द्वारा अगले 25-30 साल का लक्ष्य निर्धारित कर विकसित भारत का सपना पूरा करना है।
वेबिनार के मुख्य अतिथि वक्ता और झारखंड के जाने माने साहित्यकार महादेव टोप्पो ने सबसे पहले शहीदों का जोहार नमन किया और श्याम चरण हेंब्रम जी की कविता “भगनाडीहा में क्यों सिंघा बज रहा है?” से शुरुआत की। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले झारखंड की प्रशासनिक व्यवस्था स्थानीय राजाओं के साथ थी। अंग्रेज, भारत में अत्याचार करने आए थे, जैसे भी हो वह यहां से धन लूटना चाहते थे। झारखंड में भी अंग्रेजों को आदिवासियों के जल जमीन से मतलब नहीं था। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड का उन्हें क्रूर अनुभव था और उन्हें किसी भी हाल में पैसा कमाना था। झारखंड में बार्टर सिस्टम था, जिसे उन्होंने खत्म कर दिया और पैसे के रूप में कर मांगा। साहूकारों ने आदिवासियों की जमीन गिरवी रखी और लोगों को पैसा दिया और बदले में 200% का ब्याज वसूल किया गया।
इसी दौर में बुधु भगत जी ने गुरिल्ला युद्ध किया और इतिहास में संभवत पहला उदाहरण रहा होगा, जब एक ही परिवार से 100 से अधिक लोग शहीद हुए। इतिहासकार डॉ पुरुषोत्तम कुमार ने एक लेख में लिखा कि महात्मा गांधी जी ने संभवत अहिंसा टाना भगत आंदोलन से सीखा था। इस तरह देखें, तो आजादी की लड़ाई में आदिवासियों की भूमिका बहुत अहम रही है और आगे देश के विकास में भी आदिवासियों की भूमिका रचनात्मक और सार्थक रहेगी। डॉ उमेश कुमार, सहायक प्राध्यापक, पीजी विभाग, इतिहास, विनोद बिहारी महतो कोयलांचल यूनिवर्सिटी, धनबाद ने परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि मैं सर्वप्रथम झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों को जोहार करता हूं, जिन्होंने अपनी फसल और जमीन के लिए संघर्ष किया। अंग्रेजी शासकों का विरोध किया और साथ ही एक आदर्श समाज के लिए अपना बलिदान दिया। वर्तमान में इतिहासकारों ने इन आंदोलनों को अलग-अलग तरह से प्रस्तुत किया है। जो अंग्रेजों से सहानुभूति रखते थे, उन्होंने इन आंदोलनों को कानून को भंग करने वाला बताया और जो आदिवासियों से सहानुभूति रखते थे, उन्होंने बताया कि यह जनता के अनुभवों का प्रस्फुटन था। अंग्रेजों ने झारखंड में कई परिवर्तन किए। आदिवासियों को जमीन से निकाला, किसानों से राजस्व वसूली की, उन्हें बिचौलियों के चंगुल में फंसाया और आदिवासियों के असंतोष को नजरअंदाज किया। अंततः आदिवासियों ने आंदोलन प्रारंभ किया। भगवान बिरसा मुंडा ने धर्म की शुद्धता एवं पुरातन संस्था को स्थापित किया, किसानों को संगठित किया और सबको समान अधिकार दिया, तो अंग्रेजों ने उन्हें अपराधी करार दिया, जबकि झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों ने संघर्ष के लिए आदर्श का निर्माण किया और सभी आंदोलनकारियों ने अपनी पुरातन व्यवस्था को स्थापित करने का प्रयास किया।
वेबिनार को सुरेश सिंह मुंडा, सहायक प्राध्यापक और प्रमुख, इतिहास विभाग, आरएसपी कॉलेज, झरिया, धनबाद, डॉ. वीणा शर्मा, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग, बोकारो स्टील सिटी कॉलेज ने संबोधित किया। इससे पूर्व वेबिनार के आरंभ में क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी ओंकार नाथ पाण्डेय ने बताया कि पूरे देश में यह कार्यक्रम विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से आयोजित किए जा रहे हैं जैसे, ऑन ग्राउंड, वेबिनार, क्विज, पेंटिंग, गीत आदि और इन के माध्यम से हम अपने आजादी के दीवानों की भूमिका को याद कर रहे हैं। 12 मार्च 2021 डांडी मार्च यात्रा के दिन प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए इन कार्यक्रमों के जरिए अगले 75 हफ्ते तक अमृत महोत्सव मनाया जाएगा, जिसका समापन 15 अगस्त 2023 को होगा।
वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी ओंकार नाथ पाण्डेय ने किया। वहीं क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी महविश रहमान ने सहयोग प्रदान किया। वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया।