आदिवासी समाज के उत्थान में कृषि विवि की महती भूमिका : कुलपति

झारखंड
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  • बीएयू में विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मना

रांची। कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में सोमवार को विश्व आदिवासी दिवस समारोह पारंपरिक वेश-भूषा एवं नृत्य, ढोल एवं नगाड़े की थाप के साथ धूम धाम से मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह एवं विवि के वरीय पदाधिकारियों ने परिसर में स्थित कार्तिक उरांव एवं भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्पमाला अर्पित कर नमन किया। मुख्य समारोह का आयोजन कृषि संकाय स्थित आरएसी ऑडिटोरियम में किया गया। कुलपति ने दीप जलाकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। छात्राओं ने पारंपरिक स्वागत गीत से अतिथियों का स्वागत किया।

अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति ने समाज के सभी तबको को आदिवासी समाज से प्रकृति प्रेम की शिक्षा एवं सीख लेने की बात कही। उन्होंने विवि के प्रेरणा स्रोत डॉ कार्तिक उरांव एवं भगवान बिरसा मुंडा को याद किया। उनके बताये मार्गों पर चलकर आदिवासी समाज उत्थान पर चलने का संकल्प जताया। कहा कि राज्य का एकमात्र बिरसा कृषि विश्वविद्यालय यहां के आदिवासी एवं कमजोर तबकों के शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा सुधार में महती भूमिका निभा रहा है।

40 वर्षो में करीब 783 स्नातक डिग्री और 445 स्नातकोतर व पीएचडी डिग्री आदिवासी छात्र-छात्राओं ने हासिल की है। 125 से अधिक आदिवासी छात्र-छात्राओं का हर एक वर्ष नामांकन हो रहा है। राज्य एवं केंद्रीय कृषि सेवा, प्रशासनिक एवं वन सेवा, बैंकिंग सेवा एवं कृषि उद्योग के उपक्रम में कार्यरत है।

कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय के तकनीकी हस्तक्षेप से आदिवासी किसानों को उन्नत कृषि के प्रति जागरूक करने में सफलता मिली है। आदिवासी बहुल उलीहातु गांव में एग्रो टूरिज्म केंद्र स्थापित करने का कार्य चल रहा है। पूरे प्रदेश में बिरसा किसान का चयन कर बीज आच्छादन कार्यक्रम एवं तकनीकी हंस्तातरण कार्यक्रमों से जोड़ा गया है।

डायरेक्टर रिसर्च डॉ ए वदूद ने आदिवासी समाज के अस्तित्व के महत्‍व एवं योगदान की चर्चा करते हुए खुद से आगे बढ़ने और सभी अवसर एवं योजनाओं का लाभ लेने का परामर्श दिया।

डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने कहा कि आदिवासी समुदाय का पशुपालन से विशेष लगाव रहा है। इस समाज की संस्कृति एवं सभ्यता पर आधारित कार्ययोजना से ही विकास को आगे बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने इस दिशा में मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना को अत्यंत सकारात्मक पहल बताया।

डीन फॉरेस्ट्री डॉ एमएस मल्लिक ने आदिवासी समुदाय को आगे लाकर सामाजिक अनुबंध से जोड़ने की बात कही। उन्होंने विवि के ट्राइबल छात्रों के कोचिंग केंद्र संचालन में नाहेप परियोजना से सहयोग देने की बात कही।

डीन पीजी डॉ एमके गुप्ता ने कृषि एवं सम्बद्ध विषयों की उच्चतर शिक्षा में आदिवासी समुदाय की रुचि पर प्रकाश डाला। उच्चतर व्यावसायिक शिक्षा में आगे आने को प्रेरित किया। रजिस्ट्रार डॉ नरेंद्र कुदादा ने कहा कि दुनिया की करीब 7 हजार जनजातीय भाषाओं में 40 प्रतिशत भाषा विलुप्त होने के कगार पर है। इन भाषाओं को संरक्षित करने की दिशा में प्रयास करने की जरूरत है।

मुख्य वक्ताओं के विचार

छात्रा नीतू कुजूर ने आज के दिन को विभिन्न मानव मूल्यों को समर्पित दिवस बताया। कहा कि आदिवासी समुदाय प्रकृति का सबसे निकट प्राणी है। सेवा, सहयोग एवं प्रकृति पूजा इनकी अमूल्य धरोहर है।

कांके सरना समिति के अध्यक्ष रंजीत टोप्पो ने कहा कि आदिवासी समुदाय की सोच सार्वजानिक हित एवं उत्थान में निहित है। ग्रामीण आदिवासी परंपराओं पर चर्चा करते हुए कहा कि यह समाज सबों के हित में सोचती है।

केवीके वैज्ञानिक डॉ बंधनु उरांव ने आदिवासी समुदाय को देशज तकनीक एवं जैविक खेती का जनक बताया। कहा कि समुदाय को शिक्षा एवं अवसरों के प्रति सजग रहने एवं समाज की मुख्य धारा से जुड़कर विकास में भागीदारी समय की बड़ी मांग है।

एसटी/एससी सेल नोडल पदाधिकारी डॉ पंकज सेठ ने संस्कृति एवं सभ्यता की रक्षा के लिए विलुप्त हो रही जनजाति समुदाय के उत्थान पर विशेष प्रयास करने पर बल दिया। कहा कि सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों में समाज के बीच प्रचलित मान्यता एवं खेती तकनीक पर शोध किये जाने की आवश्यकता है।

स्वागत करते हुए डायरेक्टर एक्सटेंशन डॉ जगरनाथ उरांव ने दिवस के महत्‍व पर प्रकाश डाला। मंच संचालन श्रीमती शशि सिंह और धन्यवाद डॉ बसंत उरांव ने किया। मौके पर डॉ एसके पाल, डॉ डीके शाही, डॉ पीके सिंह, डॉ अंगदी रब्बानी, डॉ ऋषभ, डॉ राकेश कुमार, ई डीके रुसिया, विवि के शिक्षक, वैज्ञानिक, कर्मचारी और नगड़ी की आदिवासी पुरूष एवं महिला भी मौजूद थे।