जमशेदपुर। पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड अंतर्गत धरमबहाल कलस्टर में एसएचजी समूह की महिलाएं व्यापक स्तर पर मशरूम की खेती कर रही है। इससे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संबल प्रदान करने का काम कर रही हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन (एसपीएमआरएम) के तहत वित्तीय सहयोग प्रदान करते हुए महिलाओं को मशरूम उत्पादन के कार्य से जोड़ा गया है। धरमबहाल कलस्टर में इस परियोजना को शुरू करने का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं की आय बढ़ाने के लिए कृषि-बागवानी उत्पादकता और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल विकल्प विकसित करना है, जो अपनी आजीविका के लिए परिवार के कृषि कार्य पर निर्भर हैं ।
सात गांव की 46 महिलाएं जुड़ी
धरमबहाल क्लस्टर में 2 पंचायत काशीदा और धरमबहाल शामिल हैं। यहां के महालिदी, कालापत्थर, चेंगजोरा, तमकपाल, उपरपावड़ा, काशीदा, एदेलबेरा जैसे आदिवासी बहुल गांवों को क्लस्टर के सबसे पिछड़े गांवों के रूप में माना जाता है। वर्तमान में इस परियोजना से 7 गांवों के 46 महिलायें जुड़ी हैं, जिन्हें सालाना औसतन मशरूम उत्पाद के बिक्री से 35000-40000 रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो रही है।
कृषि उपज कैसे उपयोगी है
धरमबहाल कलस्टर में खरीफ मौसम के दौरान धान की खेती सबसे आम कृषि पद्धति है। अनाज की कटाई के बाद अधिकांश परिवारों में धान-पुआल को सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है। इसे मवेशियों के चारे, घर की मरम्मत आदि में उपयोग किया जाता था। धान का भूसा मशरूम उगाने के लिए सबसे आम कृषि उपज में से एक है। क्षेत्र के सभी परिवारों में उपलब्ध है। मशरूम एक उच्च उपज और तेजी से बढ़ने वाली फसल है। पोटेशियम, लौह, प्रोटीन इत्यादि का बड़ा स्रोत है। इसलिए, धरमबहाल रुर्बन क्लस्टर में कच्चे माल यानी धान के भूसे का उपयोग करके टिकाऊ आजीविका प्रबंधन के लिए क्षेत्र के गरीब एससी/एसटी और कमजोर वर्ग के लोगों के एसएचजी समूह के सदस्यों के लिए पोषण पूरक और नकद फसल के रूप में मशरूम की खेती शुरू की गई।
क्या कहते हैं लाभुक
स्वयं सहायता समूह की महिलायें बताती हैं कि अपने घर के काम, अन्य आय सृजन कार्यक्रम, सामाजिक कार्य आदि में बाधा डाले बिना आसानी से अतिरिक्त आय अर्जित कर रही हैं। उपलब्ध संसाधनों, जोखिम लेने की क्षमता, विपणन अवसर इत्यादि की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम का चयन किया, जिससे हमें संतोषजनक परिणाम लाने में मदद मिली है।
आत्मनिर्भर होने में सफल
रुर्बन मिशन से मशरूम प्रशिक्षण से पहले अधिकांश महिलाएं / लाभार्थी घरेलू गतिविधियों में लगी हुई थीं और कृषि गतिविधियों में पुरुष सदस्यों की सहायता भी करती थीं जिसमें मुख्य रूप से धान की खेती शामिल है, लेकिन मशरूम की खेती ने उनके सपनों को उड़ान दिया है। वे आत्मनिर्भर होने में सफल हुई हैं ।
मशरूम की खेती से जुड़ी गतिविधि
योजना का नाम- मशरूम की खेती
निवेशित सीजीएफ फंड (रुपये में)- 49,98,760.00
योजना का क्रियान्वयन
जागरुकता, क्षमता निर्माण/प्रशिक्षण, प्रदर्शन इकाई की स्थापना अर्थात शेड-रैक, खेती, कटाई, प्रसंस्करण, विपणन आदि।
प्रत्येक व्यक्तिगत लाभार्थी के लिए मड शेड का निर्माण (15 फीट x 10 फीट x 8 फीट का मिट्टी का घर)
कच्चे माल की खरीद, आपूर्ति की व्यवस्था
धान का भूसा, जो लगभग सभी किसान परिवारों में उपलब्ध है। स्पॉन, पॉलिथीन, फॉर्मेलिन, बाविस्टिन, लाइम जैसे अन्य कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित की गई।
विपणन व्यवस्था
बाजार में बिक्री के लिए मशरूम की औसत दर 80 से 160 रुपये के बीच होती है। संतुलित और पौष्टिक आहार बनाए रखने के लिए घर पर स्वयं की खपत के साथ-साथ मशरूम की बिक्री ज्यादातर फुलडुंगरी, मउभंडार, घाटशिला प्रखंड परिसर और आसपास के प्रखंडों एवं जिला मुख्यालय के हाट-बाजारों एवं पड़ोसी राज्यों में की जाती है। साथ ही टीआरसीएससी (Technology Resource Communication and Service Centre) अपने आउटलेट के माध्यम से मशरूम उत्पाद को जमशेदपुर और रांची में स्थित रिलायंस फ्रेश, बिग बाजार आदि को आपूर्ति करता है।