प्रशांत अंबष्ठ
बोकारो। वक्त ने दगा दे दिया। पूंजी डूब गई। कर्ज का बोझ भी चढ़ गया। यह घटना जिले के गोमिया प्रखंड अंतर्गत पचमो पंचायत के झुमरा पहाड़ के तलहटी रहावन गांव के शिक्षित आइटीआइ स्नातक बेरोजगार युवक सतोष कुमार के साथ घटी। उसने डेढ़ एकड़ जमीन में एक लाख रुपये की लागत से तरबूज की खेती की। लॉकडाउन और बेमौसम बारिश ने ऐसा दगा दिया कि लागत पूंजी तो वापस मिलने की दूर पांच हजार रुपये तक नहीं मिल पाये। खेत में ही आधा से अधिक तरबूज सड़ गये। कुछ कूड़ा के भाव बिके। कुछ गांव-घर में बांट दिया।
संतोष ने रामगढ़ स्थित इंडस्ट्रियल इंस्टिच्यूट से आइटीआइ किया है। इसके बाद स्नातक किया। एमए में एडमिशन के लिए 12 हजार रुपये रखे थे। महिला स्वयं सहायता समूह से मां चंपा देवी ने 50 हजार रुपये कर्ज लिया था। उसे तरबूज की खेती में उसने लगा दिया। उसने योजना बनाई थी कि इसकी बिक्री से मिलने वाले पैसे से एमए में एडमिशन लेगा। महिला स्वयं सहायता से लिया कर्ज वापस कर देगा। उसके बाद अन्य फसलों की खेती करेगा। हालांकि लॉकडाउन और बेमौसम बारिश की वजह से उसके अरमानों पर पानी फिर गया। एमए में एडमिशन नहीं करा पाया। महिला स्वयं सहायता समूह से लिया कर्ज वापस करना भी मुश्किल लग रहा है।
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संतोष मुंबई में एक औद्योगिक प्रतिष्ठान इडूरेंश टेक्नोलॉजी में काम करता था। उसे वहां करीब 12 हजार रुपये मासिक मिल रहे थे। इस आमदनी से वह माता-पिता को कुछ भी नहीं दे पा रहा था। उसने सोचा की घर लौटकर अपनी जमीन पर खेती करेगा। उससे होने वाली आमदनी से खुद का और माता-पिता की देखभाल भी करेगा। इसी उम्मीद में वह वर्ष, 2019 में मुंबई से वापस अपने गांव लौट आया। एक एकड़ जमीन में टमाटर लगाकर कृषि कार्य शुरू किया। इससे कुछ आमदनी भी हुई। इसी हौसले से तरबूज की खेती की, पर समय ने दगा दे दिया।
संतोष अब कर्ज की भरपाई के लिए फिर दूसरे प्रदेश जाने की तैयारी कर रहा है। सतोष ने बोकारो जिला कृषि पदाधिकारी और गोमिया के प्रखंड के बीटीएम से कृषि कार्य में हुई क्षति पर आंकलन कर मुआवजा दिलाने की मांग की है।