विनीता श्रीवास्तव
‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के उत्सव का वैचारिक केंद्र बिंदु है ‘पर्यावरण से जुड़ा परिवर्तन’- (यूनाइटेड नेशन की वेबसाइट के अनुसार “रिस्टोर+रीइमेजेन+रीक्रिएट”)। यानी प्रकृति से जुड़ाव निरंतर बनाए रखना और प्राकृतिक व्यवस्थाओं को सशक्त करना। वैश्विक सरकारों से लेकर निगमों और नागरिकों तक-सभी को इस प्रयास से जुड़ने की प्रेरणा दी जा रही है। अगले 10 वर्षों में पृथ्वी की बिगड़ी हुई प्राकृतिक प्रणालियों को फिर से बहाल करना विश्व के सभी देशों का उद्देश्य बन जाएगा। हमारे बीमार ग्रह के उपचार में अपना योगदान देने के लिए भारतीय रेलवे की अग्रणी भूमिका विश्लेषण, टिप्पणी और प्रशंसा की हकदार है।
इस महत्वपूर्ण दशक के शुभारंभ पर संयुक्त राष्ट्र ने आह्वान किया है प्रकृतिक तंत्र बहाली का| संक्षेप में कहा गया है-यह हमारा क्षण है। हम समय का चक्र उल्टा तो नहीं चला सकते, लेकिन पेड़ उगा सकते हैं। शहरों-बगीचों को हरित कर सकते हैं। अपने आहार को बदल सकते हैं। नदी-तटों को साफ कर सकते हैं। हम वह पीढ़ी हैं, जो प्रकृति के साथ शांति बना, सक्रिय हो, चिंतित नहीं। बोल्ड हो, डरपोक नहीं।
#GenerationRestoration यह हैशटैग एक दिवस के लिए सोशल मीडिया में तूफान तो उठाएगा, पर एक दिवस के बाद अक्सर यह यादें धूमिल हो जाती हैं। भारतीय रेल की योजनाएं लंबे समय तक अपना असर दिखाती रहेंगी, क्योंकि पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर कई नवीन कदम उठाए जा रहे हैं। शांति से, पर पूरी तन्मयता से भी। भारतीय रेलवे दुनिया की सबसे बड़ी ‘ग्रीन रेलवे’ बनने के लिए मिशन मोड में काम कर रहा है। वर्ष 2030 से ‘नेट जीरो कार्बन उत्सर्जक’ बनने की दिशा में बढ़ रहा है।
रेलवे नए भारत की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल, कुशल, लागत-प्रभावी, समयनिष्ठ और यात्रियों के साथ-साथ माल ढुलाई के आधुनिक वाहक होने के समग्र दृष्टिकोण से निर्देशित है। संपूर्ण तंत्र बड़े पैमाने पर विद्युतीकरण, जल और कागज संरक्षण से लेकर रेल पटरियों पर पशुओं को घायल होने से बचाने के लिए कदमों के साथ पर्यावरण की मदद करने पर विचार कर रहा है।
रेलवे विद्युतीकरण पर्यावरण के अनुकूल है। प्रदूषण को कम करता है। वर्ष 2014 के बाद से लगभग दस गुना बढ़ गया है विद्युत कर्षण। रेलवे ने ब्रॉडगेज मार्गों के शत-प्रतिशत विद्युतीकरण के लिए दिसंबर, 2023 तक शेष ब्रॉडगेज (बीजी) मार्गों का विद्युतीकरण करने की योजना बनाई है। यात्री सुविधा भी बनी रहे और पर्यावरण का भी ख्याल हो, इसके लिए यात्री गाड़ियों में नवीन तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है-जैसे हेड ऑन जनरेशन, बायो टॉयलेट, एलईडी लाइट इत्यादि।
भारत में जैसे युवा जनसंख्या बढ़ती जाएगी, सामग्री और सेवाओं के उपभोक्ता और भी ज्यादा मुखर होते जाएंगे। जाहिर है इस आपूर्ति के लिए भारतीय रेल को और भी तत्परता से देशव्यापी नेटवर्क सशक्त करना होगा। इसके लिए डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) का हरित रूप उजागर हो रहा है। पूर्ण रूप से माल-ढुलाई के लिए समर्पित यह रेल का जाल है, जो देश के हर कोने को जोड़ेगा। जल्द से जल्द जरूरत का सामान पहुंचा देगा। DFC एक दीर्घकालिक कम कार्बन रोडमैप के साथ कम कार्बन ग्रीन परिवहन नेटवर्क होगा, जो इसे और अधिक ऊर्जा कुशल और कार्बन के अनुकूल प्रौद्योगिकियों, प्रक्रियाओं और प्रथाओं को अपनाने में सक्षम बनाएगा। भारतीय रेल लुधियाना से दानकुनी (1,875 किमी) और दादरी से जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (1,506 किमी) तक ईस्टर्न कॉरिडोर (ईडीएफसी) जैसे दो DFC फ्रोजेक्ट्स को लागू कर रहा है। सोननगर-दानकुनी (538 किमी) हिस्से को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर निष्पादन के लिए तैयार किया गया है।
कोरोना महमारी के दौरान विश्व भर के ‘सप्लाई चैन’ यानी ‘आपूर्ति की व्यवस्थाओं’ का कोई बटन दब गया हो-रिसेट बटन। पूरी तरीके से आधारभूत बदलाव लाए जा रहे हैं। हर व्यवस्था की फिर से समीक्षा हो रही है। उद्योगों और परिवहन के ‘महामारी रिसेट’ ने विश्व स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला को रेखांकित किया है। भारतीय रेल का नेटवर्क तुलना में सड़क परिवहन से अधिक पर्यावरण के अनुकूल है।
महामारी में खाद्यान्न और ऑक्सीजन ढुलाई की सक्षम आवाजाही : अप्रैल, 2021 से मई, 2021 की अवधि के दौरान भारतीय रेलवे ने 73 लाख टन खाद्यान्न और 241 ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई हैं। गजब का प्रयास था 922 लोडेड टैंकरों को ले जाना, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में 15,046 टन ऑक्सीजन पहुंच पाया समय से। लोगों की जानें बच गई। अधिकांश वितरण श्रृंखलाओं की थोक आपूर्ति के लिए, रेलवे पसंदीदा परिवहन बना हुआ है।
रेलवे सिर्फ पटरियों और ट्रेन नहीं है। कहते हैं, रेलवे स्टेशन वह बिंदु है जहां ‘ट्रेन शहर से मिलता हैं।’ पर्यावरण के अनुकूल ‘ग्रीन सर्टिफिकेट’ लेकर कई स्टेशन बदलाव की दिशा में आगे हैं। स्टेशन का संचालन, बिजली पानी की व्यवस्था, कूड़ा हटाना, सफाई रखना-यह सब समीक्षा के दायरे में आता है, जब किसी भी स्टेशन को ग्रीन सर्टिफिकेट मिलती है। ग्रीन सर्टिफिकेशन में मुख्य रूप से पर्यावरण पर सीधा असरदार पैरामीटर्स के आकलन को शामिल किया गया है, जैसे ऊर्जा संरक्षण उपाय, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी, जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन, सामग्री संरक्षण, रीसाइक्लिंग आदि। 19 रेलवे स्टेशनों ने 3 प्लेटिनम, 6 गोल्ड और 6 सिल्वर रेटिंग सहित ग्रीन सर्टिफिकेशन भी हासिल किया है। 27 और रेलवे भवन, कार्यालय, परिसर और अन्य प्रतिष्ठान भी 15 प्लेटिनम, 9 स्वर्ण और 2 रजत रेटिंग सहित प्रमाणित हैं। इसके अतिरिक्त 600 से अधिक रेलवे स्टेशनों को पिछले दो वर्षों में ISO पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली के कार्यान्वयन के लिए प्रमाणित किया गया है। इसी तरह ISO 14001 प्रमाणन के लिए 718 स्टेशनों की पहचान की गई है।
औद्योगिक क्रांति युग की एक स्थायी छवि भाप लोकोमोटिव थी। भारतीय रेलवे ने प्राचीन इंजनों को संग्रहालयों में शामिल करते हुए आजादी के बाद नए सिरे से नेटवर्क का निर्माण किया| इस विरासत को आत्मसात किया है। समय के साथ भारतीय रेलवे बांग्लादेश, श्रीलंकाई और पाकिस्तान रेल नेटवर्क में विभाजित हो गई। नेटवर्क भी बंट गया और डिब्बे इंजन भी। इसके बाद भारतीय रेल का तंत्र बहुत तेज गति से विकसित हुआ है। एक तरफ तकनीकी बदलाव तो दूसरी तरफ पर्यावरण के अनुकूल व्यवस्थाएं। इन दोनों के सहारे भारतीय रेल अपने परिदृश्य को हरित करता जा रहा है।
(लेखिका रेलवे बोर्ड की कार्यकारी निदेशक (धरोहर) हैं)