फेक न्यूज का प्रसार रोकने में हर कोई दे अपना योगदान : अरिमर्दन

झारखंड
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रांची। पीआईबी-आरओबी रांची के अपर महानिदेशक अरिमर्दन सिंह ने कहा कि सूचना क्रांति के इस दौर में फैक्ट चेक और फेक न्यूज जैसे शब्द ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं। कोरोना महामारी के दौरान में फेक न्यूज से होने वाली हानि और उसके रोकने के उपायों पर हर व्यक्ति को चिंतित होना चाहिए। वे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पीआईबी-आरओबी रांची और एफओबी डालटनगंज के संयुक्त तत्वावधान में 9 जून को ‘कोविड-19 : अफवाह नहीं, सही जानकारी फैलाएं’ विषय पर आयोजित वेबिनार में बोल रहे थे।

अपर महानिदेशक ने कहा कि यह अजीब विडंबना है कि चटपटी और सनसनीखेज, भ्रामक खबरें सोशल मीडिया पर ज्यादा तेजी से फैलती हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि फेक न्यूज और इससे होने वाले नुकसान के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जानकारी दी जाए। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइन का पालन सोशल मीडिया मध्यस्थों को करना होगा। सोशल मीडिया में शेयर की जा रही खबरों को लेकर कोई शिकायत होने पर संबंधित माध्यम के शिकायत निवारण अधिकारी को बताया जा सकेगा और मैसेज के सोर्स की भी जानकारी मिल सकेगी।

समन्वय कर रहे क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी गौरव पुष्कर ने पॉवर प्वाईंट प्रेजेंटशन के माध्यम से बताया कि कैसे फेक न्यूज लोगों के मन में डर और भय का माहौल बना रहा है। फेक न्यूज के कारण निराधार और गलत खबरें लोगों तक पहुंच रही है। इससे समाज के साथ-साथ देश को भी नुकसान हो रहा है।

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्र ने कहा कि फेक न्यूज कोरोना से कम बड़ी महामारी नहीं है। फेक न्यूज से बचने का और इसे फैलने से रोकने का एक सरल उपाय यह है कि जैसे ही ऐसी खबर किसी के पास आए तो बिना जांचे परखे उसे फैलने से रोके।

सीएनबीसी आवाज बिजनेस न्यूज चैनल मुंबई के पत्रकार एवं एंकर मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि‍ फेक न्यूज से बचने के लिए हमें वापस पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों की ओर लौटना होगा। अगर हम लोग फेक न्यूज के बारे में सचेत नहीं हुए तो भविष्य के लिए यह खतरे की घंटी है। ऐसा देखा गया है कि अनपढ़ लोग ही फेक न्यूज की चपेट में नहीं आते हैं, बल्कि कई बार पढ़े लिखे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं।

एमिटी यूनिवर्सिटी, झारखंड के मास कम्युनिकेशन के विभागाध्यक्ष सुधीर कुमार ने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में भ्रामक सूचनाओं की महामारी का दौर भी चल रहा है। आजकल देश की एक बड़ी जनसंख्या के पास स्मार्टफोन है, जिसके द्वारा हर कोई सिटीजन जर्नलिस्ट बना हुआ है। फोटो या वीडियो की सत्यता परखने के लिए हमारे पास ऑनलाइन कई ऐसे टूल्स मौजूद हैं, जिनकी मदद से उनकी सच्चाई का पता लगाया जा सकता है।

झारखंड के युवा पत्रकार सन्नी शरद ने कहा कि न्यूज पोर्टल या न्यूज चैनल का लोगों द्वारा पसंद किये जाने का आधार उसकी विश्वसनीयता है। 100 प्रतिशत सही खबरों के बीच में अगर एक अपुष्ट खबर चल गई तो वह उस न्यूज पोर्टल या चैनल की पहचान को शक के दायरे में ले आती है। आज जरूरत इस बात कि‍ है कि करोना महामारी से जुड़ी खबरों को प्रसारित करने से पहले उसे कई दफे जांचा-परखा जाए।

पलामू के जनसंपर्क अधिकारी विजय कुमार ने कहा कि एक जमाना था जब घर घर में आकाशवाणी की पहुंच थी। आज वह दौर है जब घर घर में स्मार्टफोन के माध्यम से सोशल मीडिया ने अपनी जगह बना ली है। अतः हमें खबरों को शेयर करने से पहले बहुत सचेत रहने की आवश्यकता है।

प्रश्नकाल के दौरान रानी सिंह ने सुझाव दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अगर कोई ऐसा उपाय निकाले कि प्रसारित फेक न्यूज को हर जगह से डिलीट किया जा सके तो बहुत अच्छा होगा। साथ ही फेक न्यूज फैलाने वालों के लिए सजा का प्रावधान भी हो।

वेबिनार का यू-ट्यूब पर भी लाइव प्रसारण किया गया, जिसे सैकड़ों लोगों ने लाइव देखा।  वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर और संपादक एवं पत्रकार भी शामिल हुए।