शहद का इस्तेमाल शरीर में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित करता है : डॉ नुमान

झारखंड
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शहद के महत्व, मधुमक्खी पालन और इससे जुड़े अन्य उत्पादों पर चर्चा

रांची। विश्व मधुमक्खी दिवस पर पत्र सूचना कार्यालय, प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची एवं बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन किया गया। इसमें मधुमक्‍खी पालन की कला एवं इम्यूनिटी बढ़ने में शहद का महत्‍व विषय पर चर्चा की गई।

पीआईबी व आरओबी, रांची के अपर महानिदेशक डॉ अरि‍मर्दन सिंह ने कहा कि मधुमक्‍खी सामाजिक कीट है। इसके शहद एवं अन्य उत्पाद पराग, मोम, रायल जेली, वीवेनम एवं प्रोपेलीज का काफी अधिक औषधीय महत्‍व है। झारखंड की करंज आधारित शहद की पूरे देश में काफी मांग है। झारखंड में उत्पादित शहद में नमी की मात्रा कम होने की वजह से अच्छी कीमत मिलती है। मांग भी ज्यादा है।

कीट वैज्ञानिक डॉ मिलन चक्रवर्ती ने कहा कि मधुमक्‍खी पालन से किसानों को दोहरा लाभ मिलता है। मधुमक्‍खी फसलों का मित्र कीट है। इसके परपरागण क्रिया का खाद्यान, फल व सब्जी आदि के उत्पादन में सर्वाधिक महत्‍व है। फसलों के समीप मधुमक्‍खी पालन से फसल उपज में 15-20 प्रतिशत ओर तेल की मात्रा व गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। मधुमक्‍खी पालन के लिए अक्टूबर-नवंबर और फरवरी-मार्च का महीना उपयुक्त है। प्रशिक्षण लेकर न्यूनतम 5 बक्से से इसकी शुरुआत की जा सकती है। इसमें मधुमक्‍खी (मौन) की एपीस मेलीफेरा व एपीस सेरेना नामक पालतु प्रजाति का प्रयोग किया जा सकता है। शहद तीन प्रकार के होते है, र हनी, रेगुलर हनी एवं शुद्ध हनी है। इनमें शुद्ध हनी सुगर युक्त नहीं होती और सबसे उत्तम मानी जाती है।

कीट वैज्ञानिक डॉ विनय कुमार ने मधुमक्‍खी के बिना अनाज, फल, फूल आदि का उत्पादन को असंभव बताया। उन्‍होंने कहा कि यह किसानों के लिए काफी बहुउपयोगी कीट है। कश्मीर व शिमला के सेब उत्पादक किसान, सेब की खेती में मधुपालकों को उचित पारिश्रमिक मूल्य देकर बागों में मधुमक्‍खी पालन कराती है। किसानों को मधुमख्खी से फसलोत्पादन में लाभ के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। इस आयोजन को बेहद सार्थक पहल एवं राज्य में शहद जांच प्रयोगशाला केंद्र स्थापित करने की जरूरत बताई। यह उद्यम प्रदेश में अग्रणी रोजगारपरक साधन साबित हो सकती है। 

केवीके विकास भारती, गुमला के वैज्ञानिक डॉ पंकज सिंह ने किसानों को इस उद्यम के प्रति जागरूक करने पर बल दिया। कहा कि मधुमक्‍खी पालक नेशनल बी बोर्ड में रजिस्ट्रेशन करा सकते है। प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत 10-12 लाख के बैंक लोन से इस उद्यम की शुरुआत की जा सकती है। प्रो रंजित कुमार सिंह ने बताया कि साहेबगंज के 70 प्रतिशत आदिवासी आबादी के बीच यह उद्यम काफी प्रचलित है। यह व्यापक रोजगार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है।

आयुष, पटना के पूर्व निदेशक डॉ नुमन अहमद ने कहा कि अनेकों विटामिन व मिनरल्स से युक्त शहद इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ काफी स्वास्थ्यवर्धक है। शहद का एक-दो चम्मच ही प्रतिदिन इस्तेमाल करनी चाहिए। अदरख व शहद के सेवन से खांसी, बरसिंह भस्म व शहद के सेवन से दमा, सांस की बीमारी व खांसी तथा लहसुन को कुछ दिनों तक शहद में मिलाकर रखने के बाद उपयोग से ब्लड प्रेशर की समस्या से निजात पाया जा सकता है।  जले-कटे स्थान पर शहद का लेप और मक्‍खी का डंक गठिया रोग में लाभकारी है। अनेकों होमियोपैथी दवा के निर्माण में शहद व इनके अन्य उत्पाद काफी उपयोगी है।

सउदी अरब से भाग ले रहे मो मोहसिन ने बताया कि सउदी के हर एक घरों में शहद का उपयोग होता है। विश्व का हर शहद का ब्रांड यहां के बाजार में उपलब्ध है। कोरोनाकाल में शहद की मांग काफी बढ़ गयी है। यहां की पूरी आबादी इम्यूनिटी बढ़ाने में इसका उपयोग करने लगी है।

मधुमक्‍खी पालक एवं ट्रेनर्स अशोक कुमार ने बताया कि प्रदेश में यह लाभकारी उद्यम के रूप में उभर रहा है। प्रदेश में बहुतायत करंज आधारित शहद उत्पादित किया जाता है। बड़े मधुमक्‍खी पालक छत्तीसगढ़ में सरगुजा, मुज्जफरपुर में लीची, लातेहार में वन तुलसी एवं मध्य प्रदेश में सरसों आधारित शहद उत्पादन की परपरागण क्रिया के लिए बक्से का पलायन करते है। एक राज्य से दूसरे राज्य में बक्से के पलायन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक मधुमक्‍खी पालक को पहचान-पत्र निर्गत करने, आपदा में नुकसान की भरपाई के लिए बीमा की सुविधा व शहद का समतुल्य समर्थन मूल्य मुहैया कराने से यह उद्यम प्रदेश में फल फूल सकता है। इसके औषधिय गुणों को देखते हुए बच्चो को मिड डे मिल में देकर कुपोषण से बचाव किया जा सकता है। इससे इस उद्यम को बढ़ावा मिलेगा।

वेबीनार का संचालन आरओबी, रांची के शाहि‍द रहमान ने किया। इसमें एफओबी, दुमका एवं पलामू के प्रतिनिधि, किसान एवं छात्र एवं उद्यम से जुड़े प्रतिनिधियों ने भाग लिया।