आईआईटी ने विकसित की इको-फ्रेंडली मोबाइल शवदाह प्रणाली

टेक्नोलॉजी देश नई दिल्ली
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नई दिल्‍ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रोपड़ ने गतिशील विद्युत शवदाह प्रणाली का एक मॉडल विकसित किया है। यह अपनी तरह की पहली तकनीक का उपयोग करने का दावा करता है। इसमें लकड़ी का इस्तेमाल करने के बावजूद धुआंरहित शवदाह होता है। इसमें शवदाह के लिए जरूरी लकड़ी की आधी मात्रा का ही इस्तेमाल होता है। दहन वायु प्रणाली का उपयोग करने के चलते यह पर्यावरण के अनुकूल भी है।

यह बत्ती-स्टोव प्रौद्योगिकी पर आधारित है। इसमें जब बत्ती जलती है, तब पीली चमकती है। इसे बत्तियों के ऊपर स्थापित दहन वायु प्रणाली की मदद से धुआंरहित नीली लौ में परिवर्तित किया जाता है।

औद्योगिक परामर्श और प्रायोजित अनुसंधान एवं उद्योग सहभागिता (आईसीएसआरएंडआईआई) के डीन आईआईटी प्रोफेसर डॉ हरप्रीत सिंह ने इस प्रणाली को विकसित किया है। उन्होंने कहा कि शवदाह प्रणाली या भट्ठी 1044 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होता है, जो पूर्ण रोगाणुनाश सुनिश्चित करता है।

ठेले के आकार की भट्ठी में पहिये लगे होते हैं। बिना अधिक प्रयासों से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। यह ठेला प्राथमिक और माध्यमिक गर्म हवा प्रणाली के लिए दहन वायु से युक्त है। प्रोफेसर हरप्रीत ने आगे कहा, ‘सामान्य लकड़ी आधारित शवदाह के लिए जरूरी 48 घंटे की तुलना में इसमें शीतलन समय सहित शरीर का निपटान 12 घंटे के भीतर हो जाता है।‘ कम लकड़ी का इस्तेमाल कार्बन फुटप्रिंट को भी आधा कर सकता है।

प्रो हरप्रीत ने कहा कि दुर्दम्य ऊष्मा भंडारण की अनुपस्थिति में इसे कम शीतलन समय की जरूरत होती है। ताप की हानिन हो और कम लकड़ी की खपत के लिए ठेले के दोनों ओर स्टेनलेस स्टील का ताप अवरोधन लगा हुआ है। इसके अलावा राख को आसानी से हटाने के लिए इसके नीचे एक ट्रे भी लगा हुआ है।

प्रोफेसर हरप्रीत ने बताया कि उन्होंने शवहाद के लिए टेक-ट्रेडिशनल मॉडल को अपनाया है, क्योंकि यह भी लकड़ी का उपयोग करता है। ऐसा लकड़ी की चिता पर शवदाह की हमारी मान्यता और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

इस मॉडल को बनाने वाले चीमा बॉयलर्स लिमिटेड के एमडी हरजिंदर सिंह चीमा ने कहा, ‘वर्तमान में महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अगर इस प्रणाली को अपनाया जाता है तो यह उन लोगों के करीबी एवं प्रियजनों के सम्मानजनक शवदाह प्रदान कर सकते हैं, जो लकड़ी की व्यवस्था करने का वित्तीय बोझ वहन नहीं कर सकते हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि चूंकि यह वहनीय है, इसलिए संबंधिक प्राधिकारियों की अनुमति से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। मौजूदा संदर्भ में जो मामले हैं, उसे देखते हुए इससे लोगों को श्मशान में जगह की कमी से बचने में भी मदद मिलेगी।