डॉ सुनील कमल
हजारीबाग। झारखंड के हजारीबाग जिले के संत कोलंबस कॉलेज से नौ किलोमीटर की दूरी पर बहोरनपुर स्थित है। खुदाई में यहां पर बौद्ध विहार के कई अवशेष मिलने पर यह स्थल पिछले वर्ष चर्चा में आया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की खुदाई के दरम्यान मिली बुद्ध काल की कई सामग्रियां बीते इतिहास को बयां कर रही है। कुछ अंतराल के बाद खुदाई के कार्य बंद हो गए थे। पुनः खुदाई फरवरी, 2021 से शुरू की गई है। इस बार की खुदाई में और भी अदभुत अवशेष प्राप्त हो रहे हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान के सहायक पुरातत्वविद डॉ विरेंद्र कुमार, निदेशक डॉ राजेंद्र देहुरी, सहायक निदेशक नीरज मिश्रा, सहायक पुरातत्वविद दिनेश यादव के नेतृत्व में खुदाई का काम चल रहा है।
खुदाई में बुद्धकालीन परिसर मिला
अब तक प्राप्त अवशेष बड़े शांत मुद्रा में बयां कर रहे हैं कि बहोरनपुर बुद्ध की थाती रही है। शांत पहाड़ियों की तलहटियों में गौतम बुद्ध का विहार होना प्राचीन गाथा को दोहरा रहा है। सहायक पुरातत्वविद डॉ बीरेंद्र कुमार ने बताया कि यहां बुद्धकालीन परिसर मिला। परिसर में तीन कमरे, दो सहायक कमरे और गर्भ गृह के बीच में कमरा है। बीच की दीवार एक से दो मीटर के बीच है। ये कमरे पक्की ईंटों से बने हैं। इन ईंटों की जुड़ाई पक्की मिट्टी से हुई है। यहां पर घंटकोट्टा, मां तारा की खंडित प्रतिमा, लोहे की कील, लाल मिट्टी से बने मृदभांड के अवशेष, प्रस्तर खंडों के टुकड़े मिले हैं। इसमें कई तरह की नक्काशी की गयी है।
सिरविहीन माता की प्रतिमा मिली
खुदाई में पूर्वी और पश्चिमी टीले के बीच में प्रार्थना की जगह पायी गयी है। द्वार के उत्तरी कोना में सिर विहीन माता की प्रतिमा मिली है। मां तारा कमल फूल पर विराजमान है। ये दृश्य बज्रयान शाखा का प्रतीत होता है। कई अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं। ये अभिलेख पूर्व देवनागरी लिपि में वर्णित हैं। घुमावदार ईंटे भी प्राप्त हुए हैं। इनके आकर अलग-अलग हैं। अच्छे ईंटों को दीवार के अंतरभाग एवं वाह्य भाग में लगाते थे। टूटे फूटे ईंटों की दीवार के मध्य हिस्से में भरा जाता था। भूतल के फर्श को बनाने के लिए चूने, लाल मिट्टी एवं पत्थर के टुकड़ो को कूट कर तैयार करते थे। ये आज भी दिख रहे हैं। आज तक पांच कमरे होने की बात सामने आयी हैं। मतलब दूसरा टीला भी सामने आ गया है, जो पहले टीला के ठीक विपरीत है।
आठ मुद्राओं में मिली है मूर्तियां
बुद्ध एवं मां तारा की मिली मूर्तियां वाइट फाइन साएंड स्टोन से बनी है। सबसे बड़ी बात है कि यहां पर गौतम बुद्ध की आठ मुद्राओं में मूर्तियां प्राप्त हुई है। मसलन उनके गृह त्याग, ज्ञान, उपदेश, महापरिनिर्वाण एवं जातक कथाओं के वर्णित चार मुद्राओं बंदर को मधु खिलाते हुए, हाथी को वश में करते हुए, आकाश से पृथ्वी में अवतरित होते हुए साल के पेड़ की आकृति के रूप में सभी मुद्राओं में अवशेष प्राप्त हुए हैं। ये सभी अवशेष पालकालीन 9वीं से 12वीं सदी के मध्य की प्रतीत होते हैं।
बौद्ध विहार के होने का दावा कर रहा
हजारीबाग के विनोबा भावे विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग डॉ अशोक कुमार मंडल की राय में यह जगह ओल्ड बनारस रोड के रूप में रहा होगा। इसी रास्ते से बौद्ध धर्मावलंबी उतर प्रदेश जाते होंगे। मिल रहे अवशेष यहां पर बौद्ध विहार के होने का दावा कर रहे हैं। बहुत जल्द अन्य इतिहासकार, विभाग के प्राध्यापक, शोधरत विद्यार्थियों के साथ बहोरनपुर जाकर शोध कार्य को देखने के साथ-साथ अब तो हो चुके शोध की बारीकियों को भी जानूंगा।
इतिहास को संरक्षित करने पर जोर
विभाग के डॉ विकास कुमार, डॉ फ्रांसिस्का कुजूर, डॉ चंद्रशेखर सिंह ने भी बहोरनपुर के प्राचीन इतिहास के सच को संरक्षित करने पर जोर दिया। वे बहोरनपुर को इटखोरी के बौद्ध सर्किट के साथ जुड़ा हुआ पा रहे हैं। स्थानीय विधायक मनीष जायसवाल, उप विकास आयुक्त अभय कुमार सिन्हा आदि अन्य अधिकारियों से बहुत जल्द मांग करेंगे कि बहोरनपुर को ऐतिहासिक एवं पर्यटन प्लेस के रूप में स्थापित किया जाये। बहोरनपुर में इतिहास के शोधरत अभ्यर्थी जय कुमार, गंगेश्वरी, रूबी, सुनील वर्मा एवं अन्य शोधार्थी बहोरनपुर की खुदाई में ज्यादा से ज्यादा जानने की ललक लिए पुरातत्वविद जनों के साथ मुस्तैद दिखें।