चतरा। खोरठा विकास मंच के तत्वावधान में जिले के टंडवा में खोरठा साहित्य व भाषा के बाल्मीकि श्रीनिवास पानुरी की जन्म शताब्दी मनाई गई। श्रीनिवास का जन्म 25 दिसंबर, 1920 को धनबाद के बरवाअडा में हुआ था। 60-70 के दशक में अलग झारखंड राज्य की मांग तेज हो चुकी थी। उस वक्त उन्होंने स्थानीय भाषा खोरठा और यहां के लोगों के शोषण को कविता, गीत, नाटक, कहानियों में व्यक्त किया।
रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय क्षेत्रीय भाषा के शोधार्थी उमेश प्रसाद ने बताया कि खोरठा लगभग 1.50 करोड़ की संख्या में चार राज्यों मे बोली जाती है। झारखंड, बिहार, ओडिशा, बंगाल और असम में खोरठा बोली जाती है। झारखंड के लगभग 17 जिलों में खोरठा भाषा बोली जाती है।
उमेश के अनुसार श्रीनिवास ने ना सिर्फ खोरठा भाषा आंदोलन की शुरुआत की थी, बल्कि उच्च कोटि के 30-35 साहित्य ग्रंथों की रचना कर खोरठा साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने अनेकों विधाओं में रचनाएं की है। उनकी मृत्यु 7 अक्टूबर, 1985 को हुआ। स्व. पानुरी खोरठा के आदि कवि माने जाते हैं। उन्होंने वैसा ही बहुआयामी प्रयास किये, जैसा हिंदी के लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने किये थे।