- सचिव तक पहुंची जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार की शिकायत
रांची। जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत शिक्षा सचिव तक पहुंची है। पीड़ित शिक्षक और कर्मचारियों का कहना है कि एमएसीपी और सेवासंपुष्टि के नाम पर अवैध वसूली की जा रही है। पैसा लेने के लिए वहां के कार्यालय का एक लिपिक घर तक पहुंच जा रहा है। इस बारे में रांची उपायुक्त, दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल के क्षेत्रीय संयुक्त शिक्षा निदेशक को भी जानकारी दी गई है। आर्थिक दोहन से बचाने की गुहार लगाई है।
पत्र में पीड़ितों ने लिखा है कि एमएसीपी विद्यालय कर्मियों का हक है, जो बहुत दिनों से लंबित है। इसकी प्रक्रिया जिला स्थापना समिति द्वारा होनी है। फाइल में शिक्षक व कर्मियों का नाम डालने के लिए दिवाकर सिंह द्वारा रुपये की मांग की जा रही है, जबकि फाइल किसी दूसरे लिपिक की है। पीड़ितों का कहना है कि दिवाकर स्वयं को बड़ा बाबू बताते हैं। कहते हैं बिना मेरे हस्ताक्षर के फाइल आगे नहीं बढ़ेगी।

शिकायतकर्ता ने लिखा है कि दिवाकर सिंह को कुछ महीनों पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप में रांची जिला शिक्षा कार्यालय से निलंबित किया गया था। जिस कार्यालय से इनको निलंबित किया गया था, पुनः इनका पदस्थापन उसी कार्यालय में हो गया। यह भी एक जांच का विषय है।
पीड़ितों के मुताबिक दिवाकर किसी फाइल को बिना पैसे के करना हीं नहीं चाहते। यहां तक कि शिक्षक, लिपिक का मासिक वेतन में हस्ताक्षर करने के लिए भी पैसे मांगते हैं। पैसा नहीं देने पर वेतन बिल पास नहीं करते। इसके कारण कर्मी और शिक्षकों को सदैव विलंब से वेतन प्राप्त होता है।
शिकायकर्ता के अनुसार दिवाकर सीधे जिला शिक्षा पदाधिकारी के नाम पर पैसा मांगते हैं। कहते हैं कि साहब यहां 3 महीने के लिए आए हैं। पैसा कमाने आएं हैं। बिना पैसा के कोई काम नहीं करेंगे। ये कर्मी और शिक्षिकाओं से मेडिकल और मातृत्व अवकाश पास करने के लिए राशि की 10% की मांग करते है। कहते हैं कि कमीशन की राशि उपर तक जाती है।
दिवाकर कार्यालय के अंदर ही रुपये की वसूली करते हैं। सीसीटीवी फुटेज चेक करने पर रुपये लेते और धमकी देते हुए दिख जायेंगे। अपने सहकर्मियों को वसूली का हिस्सा नहीं देना पड़े तो चाय मिठाई की दुकान पर पैसा लेते है। अक्सर इनको चाय और मिठाई की दुकान पर देखा जा सकता है। ये जबरदस्ती शिक्षकों से चाय और नाश्ता के लिए पैसा भी मांगते है। 100-200 रुपये के लिए शिक्षक के घर भी पहुंच जाते है।
दिवाकर ने ऐसी व्यवस्था बना रखी कि कोई भी फाइल बिना इनके हस्ताक्षर के आगे नहीं बढ़ती। ये अपने सहकर्मियों से भी इसके एवज में रुपये लेते हैं। इस व्यवहार से इनके सहकर्मी भी परिचित हैं। परेशान रहते हैं। अगर अधिकारी अपनी बात भी रखते है, तो उल्टे कर्मी/ शिक्षकों को फोन पर धमकी मिलने लगती है। हालांकि दिवाकर ने आरोप को गलत बताया है।