मिट्टी, जल और वायु की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए गायों की संख्या बढ़ानी होगी: डॉ वर्मा

झारखंड
Spread the love

  • बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में पंचगव्य चिकित्सकों का सम्मेलन

रांची। झारखंड को अधिकाधिक हरा-भरा बनाने, मिट्टी, जल और वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा पठारी क्षेत्र में जल स्तर को ऊपर लाने के लिए गायों की संख्या बढ़ानी होगी। तीन सौ वर्ष पूर्व भारत में गाय की 360 प्रजातियां थी। अब मुश्किल से एक सौ बच गई हैं। इनके संरक्षण के लिए योजनाबद्ध प्रयास करना होगा, नहीं तो आने वाले समय में जीव-जंतु, वनस्पति सबके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा। उपरोक्त विचार कांचीपुरम, तमिलनाडु स्थित पंचगव्य विद्यापीठम के गुरुकुलपति गव्य सिद्धाचार्य डॉ निरंजन भाई वर्मा ने व्यक्त किए। वह बुधवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, पंचगव्य विद्यापीठम एवं झारखंड पंचगव्य डॉक्टर्स असोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में पशुचिकित्सा महाविद्यालय प्रेक्षागृह में आयोजित तृतीय पंचगव्य सम्मेलन को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।

डाॅ वर्मा ने कहा कि कोई खाद्य सामग्री हो, धातु हो या तरल पदार्थ हो अभियांत्रिकी के नियम के अनुसार उसकी प्रोसेसिंग करने से मात्रा और गुणवत्ता का नुकसान होता है। हालांकि गाय से प्राप्त गोमय, गोमूत्र और क्षीर (दूध) की प्रोसेसिंग करने से उसकी गुणवत्ता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। धरती पर जितनी अधिक गाय होगी, मिट्टी, जल, वायु, अग्नि और आकाश का उतना ही शुद्धिकरण होगा। देशी गाय अपनी सूर्यकेतु नाड़ी के माध्यम से सूर्य की किरणों की संपूर्ण ऊर्जा को अवशोषित कर स्वर्णक्षार बनाती है, जिसकी उपलब्धता हमें उसके दूध और गोमूत्र के माध्यम से प्राप्त होती है। गाय कोई भी ऐसी वनस्पति नहीं खाती जो मनुष्य के शरीर के लिए हानिकर हो। गाय के गोबर में गुरुत्वाकर्षण के नियम के विपरीत पानी के स्तर को ऊपर उठाने की क्षमता होती है। पंचगव्य के गुणों के आकलन के लिए नए प्रयोगशाला स्थापित करने होंगे। उन्होंने गो विज्ञान, चिकित्सा, जैविक खेती, पर्यावरण, स्वरोजगार, असाध्य रोगों की चिकित्सा आदि विषयों पर विस्तृत प्रकाश डाला।

भारत सरकार के अवकाशप्राप्त सचिव डॉ कमल टाओरी ने भारत के समृद्ध देशज ज्ञान पर अपना ऑनलाइन प्रस्तुतीकरण दिया। मार्केटिंग द अनमार्केटेड इंडिया नामक चर्चित पुस्तक लिखने वाले डॉक्टर टाओरी की नई पुस्तक मार्केटिंग द अनमार्केटेड झारखंड भी शीघ्र आनेवाली है।

अतिथियों का स्वागत बीएयू के पशु चिकित्सा संकाय के डीन डॉ सुशील प्रसाद ने किया। झारखंड प्रवेश पंचगव्य डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ मदन सिंह कुशवाहा, सचिव डॉ बालेश्वर प्रसाद, राज्य प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रंजीत कुमार सिन्हा, बीएयू के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ जगरनाथ उरांव, सम्मेलन के आयोजन सचिव सिद्धार्थ जायसवाल, एनआईटी जमशेदपुर के पूर्व डीन डॉ वीरेन्द्र कुमार आदि लोगों ने भी अपने विचार रखे।

कार्यक्रम का संचालन पशु प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग की डॉ नंदनी कुमारी ने किया। सम्मेलन में झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और तमिलनाडु के 100 से अधिक पंचगव्य चिकित्सक भाग ले रहे हैं। सम्मेलन वृहस्पतिवार को भी चलेगा।

आगंतुकों को चिकित्सकों द्वारा नाड़ी परीक्षण आधारित पंचगव्य चिकित्सा परामर्श प्रदान किया गया। पंचमहाभूत साधना और गो वंदना का भी कार्यक्रम हुआ। पंचगव्य चिकित्सा पद्धति में देशी गाय से प्राप्त दूध, गोबर, गोमूत्र, दही एवं घी तथा उनके मिश्रण एवं वनस्पति से तैयार औषधि से रोग प्रबंधन एवं नियंत्रण तथा प्रकृति के निकट रहने का परामर्श दिया जाता है। पंचगव्य विद्यापीठम, कांचीपुरम द्वारा पंचगव्य चिकित्सा में एक वर्ष का डिप्लोमा और दो वर्ष का मास्टर डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है।