कम लागत, किसानों की मांग और आसानी से अपनाने योग्य तकनीकी विकसित करें : कृषि सचिव

कृषि झारखंड
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  • बीएयू में दो दिवसीय 42वीं खरीफ रिसर्च काउंसिल की बैठक आयोजित

रांची। शोध कार्य से तकनीकी ज्ञान को समृद्ध और नये खोजों से राज्य के विकास को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। शोध कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य समाज और लोगों को सही दिशा एवं उनके कल्याण में निहित है। विगत दो वर्षो में विवि के वैज्ञानिकों ने झारखंड के उपयुक्त 22 से अधिक फसल किस्मों को चिन्हित एवं विकसित कि‍या है। दशकों बाद स्टेट वेरायटल रिलीज कमेटी ने विभिन्न फसलों की प्रजातियों को किसानों के लिए अनुशंसित किया है। उक्त बातें बि‍रसा कृषि विवि (बीएयू) की 42वीं खरीफ रिसर्च काउंसिल के उद्घाटन समारोह में बतौर विशिष्ट अतिथि कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता सचिव अबु बकर सिद्दीख पी ने कही।

व्यापक एवं अपार संभावनाएं हैं

सचिव ने कहा कि राज्य में कृषि के हर एक क्षेत्र में व्यापक एवं अपार संभावनाएं है। राज्य में करीब-करीब हर प्रकार के फसलों की खेती की जा रही है, जिसे ज्यादा गंभीरता के साथ आगे बढ़ाने की जरूरत है। कृषि वैज्ञानिकों को शोध के माध्यम से कम लागत और किसानों की मांग एवं उनके द्वारा आसानी से अपनाये जाने वाली तकनीकी से कृषि विकास को आगे ले जाना होगा। तभी बिरसा कृषि विश्वविद्यालय का कार्य सार्थक होगा।

प्रोन्‍नति के प्रति संवेदनशील सरकार

सचिव ने कहा कि कृषि क्षेत्र में बीएयू राज्य का गौरव है। विवि के मार्गदर्शन में राज्य कृषि को काफी बढ़ावा मिला है। कृषि वैज्ञानिक राज्य को तकनीकी मार्गदर्शन देने में काफी तत्पर है। विभाग को वैज्ञानिकों का निरंतर सहयोग मिल रहा है। राज्य सरकार और कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग एवं समन्वय से ही राज्य के कृषि विकास को गति मिलेगी। विवि के शिक्षक एवं वैज्ञानिकों की प्रोन्नति और पेंशनर्स के सप्तम पुनीरिक्षित पेंशन के प्रति सरकार संवेदनशील है।

दर्जनों फसल प्रजाति विकसित की

अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि विगत वर्षों में विवि के शोध कार्यक्रमों से तकनीकी में उत्तरोत्तर गुणात्मक सुधार हुआ है। सीमित वैज्ञानिक बल के बावजूद विवि ने दशकों बाद अनेकों बड़ी शोध उपलब्धियों को हासिल की है। लगातार दो वर्षो में दर्जनों फसल प्रजाति विकसित कर राज्य के किसानों को समर्पित की गई। औषधीय क्षेत्र में विवि को पहली बार पेटेंट मिला। एलोवेरा और गिलोय के कार्यो में राष्ट्रीय पहचान मिली।

नैनो तरल यूरिया, बायोडाइवर्सिटी पार्क एवं जैविक खेती आधारित सब्जी खेती प्रणाली आदि नये शोध आयामों की शुरुआत की गई। शोध एक निरंतर प्रक्रिया है। हमारे वैज्ञानिकों को राज्य के किसानों के हित में उन्नत फसल प्रजाति के लगातार विकास और किसानों को उन्नत एवं शुद्ध बीज की उपलब्धता के दिशा में प्रयत्नशील रहना होगा। सही एवं शुद्ध बीज से काफी हद तक किसानों की समस्या का काफी हद तक समाधान संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों के मनोबल एवं उर्जा बनाये रखने में उनकी समस्याओं के सही समय पर निदान की आवश्यकता है।

धान की सीधी बुआई करें किसान

मौके पर एग्रीकल्चर एक्सपर्ट बीएयू के पूर्व निदेशक अनुसंधान डॉ बीएन सिंह ने झारखंड की कृषि पारिस्थिकी के मद्देनजर रोपाई के बदले धान की सीधी बुआई (एरोबिक विधि) को प्राथमिकता देने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ससमय एवं उपयुक्त वर्षा नहीं होने से धान का उत्पादन एवं उत्पादकता प्रभावित होती है। वर्ष 2009 में राज्य में सुखाड़ की स्थिति में धान की सीधी बुआई तकनीक काफी कारगर हुई थी। विगत वर्ष पंजाब एवं हरियाणा के करीब 10 लाख हेक्टेयर में एरोबिक विधि से खेती में रोपाई धान विधि के सामान उपज मिला। इस सफलता से दोनों राज्यों ने करीब 13 लाख हेक्टेयर में एरोबिक विधि से से धान की खेती का टारगेट रखा है।

पशुपालन अत्‍यंत लाभकारी उद्यम

वेटनरी एक्सपर्ट पूर्व डीन वेटनरी डॉ एके ईश्वर ने पशुपालन को कृषि क्षेत्र का अत्यंत लाभकारी उद्यम बताया। कहा कि पशुपालन क्षेत्र में निरंतर शोध से पशुपालन व पशु चिकित्सा तकनीकी में सुधार करने की आवश्यकता है।

मौके पर कुलपति ने खरीफ रिसर्च हाईलाइट्स -2022, खाद्य प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त मशीनें और डॉ बीएन सिंह द्वारा लिखित एरोबिक विधि से धान की उन्नत खेती नामक पुस्तकों का विमोचन किया।

उपलब्धियों की समीक्षा की गई

स्वागत करते हुए निदेशक अनुसंधान डॉ एसके पाल ने कहा कि खरीफ रिसर्च काउंसिल की बैठक के इस मंच से वैज्ञानिकों की चर्चा, विचार, मंथन एवं निष्कर्ष किसानों के लिए सार्थक साबित होगी। इस बैठक में विभिन्न शोध परियोजनाओं में पिछले खरीफ शोध कार्यक्रमों की। उपलब्धियों की समीक्षा और मूल्यांकन एवं भावी खरीफ शोध कार्यक्रमों की रणनीति तय की जा सकेगी।

मौके पर आईआईएबी निदेशक डॉ ए पटनायक और निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ जगरनाथ उरांव ने भी अपने विचार रखे। बैठक के तकनीकी सत्र की रूपरेखा एवं धन्यवाद अपर निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने दि‍या। कार्यक्रम का संचालन बिरसा हरियाली रडियो की समन्यवयक श्रीमति शशि सिंह ने कि‍या।

कार्यक्रम में ये भी थे मौजूद

इस अवसर पर हार्प पलांडू के प्रधान डॉ एके सिंह, तसर संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ के सत्यानारायण, सहायक निदेशक (योजना) शैलेन्द्र कुमार एवं विवि के डॉ एमएस यादव, डॉ सुशील प्रसाद, डॉ एमएस मल्लिक, डॉ एमके गुप्ता, डॉ नरेंद्र कुदादा, डॉ डीके शाही, डॉ सोहन राम, डॉ एस कर्माकार एवं डॉ केएस रीसम, किसानों में सिबन कुमार महतो एवं शैलेश मुंडा  सहित विवि के विभिन्न विभागों, कृषि विज्ञान केन्द्रों, क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों के वैज्ञानिक भी मौजूद थे।