रांची। प्रगतिशील लेखक संघ, झारखंड जन संस्कृति मंच और जलेस के संयुक्त तत्वावधान में ‘मंगलेश डबराल स्मृति‘ कार्यक्रम का आयोजन 21 दिसंबर को टीआरआई सभागार में किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में मंगलेश डबराल के साथ-साथ त्रिदिव घोष और वरिष्ठ झारखंड आंदोलनकारी-पत्रकार-चित्रकार बसीर अहमद के सम्मान में एक मिनट की मौन श्रद्धांजलि से दी गयी। इस अवसर पर वरिष्ठ हिन्दी आलोचक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रवि भूषण ने कहा की मंगलेश जी की कवितायें-रचनाएं हमें मनुष्य और संवेदनशील बनाती हैं। वे सम्पूर्ण रूप से एक ग्लोकल (ग्लोबल+लोकल) और मनुष्यता के कवि थे। शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ फिल्म के भी गहरे जानकार थे। इसकी सहज अभियक्ति उनकी रचनाओं में मिलती है।
वरिष्ठ साहित्यकार रणेंद्र ने गुजरात दंगे समेत कई चर्चित कविताओं का पाठ करते हुए उनके असमय निधन को देश के साहित्य जगत के आपूरणीय क्षति बताया। वरिष्ठ कथाकार पंकज मित्र ने भी उनकी कविताओं के पाठ के माध्यम से कहा कि उन्होंने भारतीय राजनीति और सत्ता के कामकाज पर पूरी निर्भीकता के साथ अपनी कविताओं से टिप्पणी की। वे हिन्दी साहित्य जगत के ऐसे विशिष्ट रचनाकार रहे, जिन्होंने अपने आला दर्जे के अनुवाद कौशल से विश्व की अनेकों महान रचनाओं का अनुवाद कर हमें उनसे परिचित कराया।
आदिवासी साहित्यकार महादेव टोप्पो ने मंगलेश जी से जुड़े आत्मीय संस्मरणों की चर्चा व उनकी ‘आदिवासी‘ कविता का पाठ किया। उन्होंने कहा कि उनकी रचनाओं से सदैव नयी ऊर्जा और रचना दृष्टि मिलती रही है। विषय प्रस्तुत करते हुए प्रलेस झारखंड के सचिव प्रो मिथिलेश ने कहा कि मंगलेश जी की रचनाएं इस दौर की भयावहता को पूरी तल्खी के साथ उजागर करते हुए सत्ता संस्कृति की जन विरोधी रवैये के खिलाफ हमें जागरूक बनाती है।
संचालन करते हुए जसम के अनिल अंशुमन ने कहा कि मंगलेश जी ने न सिर्फ सत्ता संस्कृति के खिलाफ लोगों को जागरूक बनानेवाली कवितायें लिखीं, बल्कि जरूरत पड़ी तो सत्ता-शासन के असहीष्णुता के खिलाफ बेखौफ होकर पुरस्कार वापसी के माध्यम से अपना विरोध दर्ज किया। वरिष्ठ हिन्दी आलोचक अजय वर्मा ने कहा कि वर्तमान समय में जब स्वयं को लोकतांत्रिक कहनेवली सरकार ने अपने ही नागरिकों के खिलाफ खुला युद्ध छेड़ रखा हो, मंगलेश जी जैसे कवि का जाना मानवीय के साथ-साथ रचनात्मक क्षति भी है।
स्मृति सभा में कवियत्री रेणु प्रकाश व किरण ने भी उनकी कविताओं का पाठ कर अपने विचार रखे। कार्यकम में राजधानी के कई वरिष्ठ व युवा संस्कृतिकर्मियों के अलावे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी उपस्थिति दर्ज कराई। सर्वसम्मति से तय किया गया कि वर्तमान केंद्र की सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में जारी किसान आंदोलन के समर्थन में 27 दिसंबर को अल्बर्ट एक्का चौक पर सांस्कृतिक माध्यमों से कार्यक्रम किया जाएगा।