झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में सूकर पालन में बेहतर उद्यम की संभावना : डॉ प्रसाद

कृषि झारखंड
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  • सूकर पालन की वैज्ञानिक विधि पर 5 दिवसीय तीसरे प्रशिक्षण का समापन

रांची I बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा संकाय में आईसीएआर-भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएबी), गढ़खटंगा, रांची के सौजन्य से आयोजित सूकर पालन की वैज्ञानिक विधि विषय पर 5 दिवसीय तीसरा प्रशिक्षण कार्यक्रम गुरुवार को संपन्न हुआ। मौके पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में लोहरदगा, रामगढ़ एवं बोकारो जिले के 50 प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया। उनसे प्रशिक्षण के अनुभवों को साझा किया।

समारोह के मुख्य अतिथि डीन वेटनरी डॉ सुशील प्रसाद ने झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों सूकर पालन में ग्रामीणों के लिए एक बेहतर उद्यम की संभावना बताया। बीएयू द्वारा विकसित संकर सूकर नस्ल ‘झारसुक’ के प्रसार से राज्य में सूकर पालन के क्षेत्र में ग्रामीणों का रूझान बढा है। पौष्टिक गुणों की वजह से राज्य में सूकर मांस की मांग काफी बढ़ी है। देशी सूकर नस्ल के स्थान पर संकर सूकर नस्ल को पालकर प्रदेश के किसान दोगुनी से चार गुनी अधिक लाभ प्राप्त कर रहे है। राज्य के आदिवासी लोगों में परंपरागत सूकर पालन काफी प्रचलित है। संकर नस्ल एवं वैज्ञानिक प्रबंधन से गांवों में सूकर पालन में काफी बेहतर प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। राज्य के ग्रामीण शिक्षित बेरोगार युवकों के लिए सूकर पालन व्यवसाय एक बेहतर साधन साबित हो सकता है।

सूकर पालन परियोजना प्रभारी डॉ रविन्द्र कुमार ने बताया कि व्हाट्सएप ग्रुप से सूकर पालकों को जोड़कर नियमित परामर्श सेवा दी जा रही है। बीएयू के मार्गदर्शन में राज्य के करीब 350 सेकंड लाइन सूकर ब्रीडरों द्वारा 1 लाख 32 हजार सूकर के बच्चे और करीब 2,310 टन सूकर मांस का उत्पादन किया गया है। सूकरपालकों को प्रशिक्षण के बाद भी व्यवसाय की शुरुआत करने के लिए विवि वैज्ञानिक से परामर्श प्राप्त किया जा सकता है।

प्रशिक्षण के आयोजन निदेशक डॉ एके पांडे ने प्रशिक्षण से प्रतिभागियों को लाभ, उनका फीडबेक एवं विषय मूल्यांकन की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आईसीएआर-आईआईएबीके सौजन्य से आयोजित तीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में रांची, लोहरदगा, रामगढ़, बोकारो एवं चतरा जिले के 148 किसानों को प्रशिक्षण मिला। मौके पर डॉ पंकज कुमार एवं डॉ भूषण कुमार भी मौजूद थे।