सीएसआर के जरिये समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभा रही टाटा स्‍टील

झारखंड
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  • निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व और स्थिरता के बीच होता है तालमेल

जमशेदपुर। केंद्र सरकार ने कंपनियों के लिए निगमित सामाजिक दायित्‍व (सीएसआर) को अनिवार्य कर दिया है। इसके तहत लाभ का कुछ हिस्‍सा उन्‍हें इस मद में खर्च करना होता है। टाटा स्टील फाउंडेशन के जरिये टाटा स्‍टील ने अपने सीएसआर कार्यक्रम को धरातल पर उतार रही है।

टाटा स्‍टील फाउंडेशन के कुछ सीएसआर कार्यक्रम राष्ट्रीय पटल को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं। यह इसलिए नहीं हैं कि कंपनी के पास संसाधन हैं, बल्कि इसलिए कि यह उचित कार्य है। यह कंपनी की सोच का हिस्सा है। कंपनी लीडरशिप पोजिशन के लिए गहन कार्यक्रमों के साथ-साथ व्यावसायिक कार्यों से भी जुड़ी है, जो आवश्यक संवेदनशीलता का निर्माण करते हैं। इसके बाद व्यावसायिक निर्णय लेते समय समुदायों के लाभ के लिए काम करते हैं।

सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों से साझेदारी

टाटा स्‍टील को व्यापार में स्थिरता और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता परिप्रेक्ष्य शामिल करने वाली पहली कंपनी के रूप में जाना जाता है। हालांकि राह में कई अड़चनें हैं। देश के कुल निजी विकास पूंजी आवंटन का केवल 8 प्रतिशत पूर्वी भारत को मिलता है, जबकि इस क्षेत्र में बहुत ही स्पष्ट और तत्काल आवश्यकता है। यही वह संसाधन फासला है, जिसका कंपनी विकास के दृष्टिकोण से सामना कर रही है। पूर्वी भारत के लिए अधिक संसाधन हासिल करना अब कंपनी के लिए एक फोकस एरिया है। यहां से बहुत सारी रणनीतियां निकलती हैं। इसलिए कंपनी अब सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों के साथ साझेदारी करना शुरू कर दी है। नये भौगोलिक क्षेत्रों में परियोजनाओं को ले जाने में पार्टनर बनने और इस कार्यक्रम में प्रभाव बढ़ाने वाले विशिष्ट तत्वों को जोड़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहित की है।

बच्‍चों को स्‍कूल वापस लाने का कार्यक्रम

कंपनी ने अपने ‘1000 स्कूल प्रोग्राम’ के माध्यम से स्कूल छोड़ने वालों बच्चों को वापस लाने के लिए दिल्ली स्थित एनजीओ एस्पायर के साथ भागीदारी की है। एनआईआईटी फाउंडेशन के माध्यम से कंप्यूटर और स्पोकेन इंगलिश पर प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।

हालांकि टाटा स्टील अपने परिचालन क्षेत्र में निवेश कर रही है, लेकिन वर्तमान में देश के इस हिस्से में निजी पूंजी लगाने वालों की सीमित रुचि है। सीएसआर फंड वाले बड़े संस्थान भौगोलिक रूप से विशेष स्थानों से बंधे नहीं हैं। वे अक्सर झारखंड नहीं आना चाहते, क्योंकि उनके पास काम करने का कोई व्यवहार्य विकल्प नहीं है। कंपनी ने हाल ही में रैलिस इंडिया को भारत के इस हिस्से में काम करने के लिए साइन-अप किया था, जबकि परंपरागत रूप से वे पश्चिमी और मध्य भारत में काम करते हैं। ऐसे समय में कंपनी सीएसआर और सस्टेनेबिलिटी के बीच तालमेल बैठा रही है।

विद्यार्थियों को प्री-मैट्रिक कोचिंग प्रदान की

हो सकता है कि सीएसआर गतिविधियों को करते समय सभी कंपनियां व्यावसायिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास करे। अपनी मुख्य दक्षताओं का लाभ उठाये, तथापि उन्हें सामुदायिक लाभों को सर्वोपरि रखना होगा। सीएसआर पहल को स्थानीय और राष्ट्रीय संदर्भों के साथ निकटता से जोड़ा जाना चाहिए। कंपनी जहां स्थित है, उसके अनुसार प्रासंगिक होना चाहिए। 2020 में टाटा स्‍टील ने 397 विद्यार्थियों को प्री-मैट्रिक कोचिंग प्रदान की है, जिसमें से सभी विद्यार्थी ने परीक्षा उत्तीर्ण की।

वाटर फिल्टरेशन प्लांट स्थापित किया

कंपनी ने भेलगढ़ में एक वाटर फिल्टरेशन प्लांट स्थापित किया है, जो वेस्ट बोकारो के 23 परिधीय गांवों के 15,000 से अधिक घरों में पेयजल उपलब्ध कराता है। क्षेत्र के समुदाय के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा सुविधाएं और माहौल प्रदान करने के उद्देश्य से सामुदायिक केंद्रों की स्थापना के साथ कई बुनियादी ढांचागत विकास कार्य भी शुरू किए गए हैं।

पीएसए ऑक्सीजन प्लांट की शुरुआत की

कोविड-19 का मुकाबला करने और भविष्य के लिए तैयार होने के अपने प्रयासों में वेस्ट बोकारो डिवीजन ने इस साल अगस्त में टाटा सेंट्रल हॉस्पिटल, वेस्ट बोकारो में अत्याधुनिक प्रेशर स्विंग एडजॉर्प्शन (पीएसए) ऑक्सीजन प्लांट शुरू किया गया। यह पीएसए ऑक्सीजन प्लांट 726 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी क्षमता 833 लीटर प्रति मिनट है। टाटा स्टील फाउंडेशन के सहयोग से टाटा सेंट्रल हॉस्पिटल वेस्ट बोकारो में कोविड-19 की स्थिति की निगरानी कर रहा है। सर्वोत्तम संभव तरीके से समुदाय की सेवा करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। वेस्ट बोकारो और इसके आसपास के लोगों का टीकाकरण किया गया है और आने वाले दिनों में टाटा स्टील फाउंडेशन आसपास के गांवों में घर-घर जाकर टीकाकरण करेगा।

समुदाय के प्रति जेआरडी टाटा की ये थी सोच

वर्ष, 1973 में भारत रत्न जेआरडी टाटा ने एक बार कहा था कि प्रबंधन का ‘टाटा दर्शन’ हमेशा से और आज पहले से कहीं अधिक यह रहा है कि औद्योगिक क्रियाकलापों को नहीं केवल उनके मालिकों के हित में, बल्कि समान रूप से उपने कर्मचारियों, उपने उत्पादों के उपभोक्ताओं, स्थानीय समुदायों के और अंत में पूरे देश के हितों में प्रबंधित किया जाना चाहिए। हम समुदायों की जरूरतों के अनुरूप अपने प्रयासों को जोड़कर अभी भी इसी सोच पर चलते हैं।