नई दिल्ली। मेघालय के कोंगथोंग गांव, मध्य प्रदेश के लाड़पुरा और तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव को भी यूनाइटेड नेशन्स वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन अवॉर्ड के लिए ‘बेस्ट टूरिज्म विलेज’ की कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया है. आज हम आपको देश के इन तीनों बेमिसाल गांवों के बारे में बताने जा रहे हैं।
कोंगथोंग (मेघालय): कोंगथोंग, शिलांग से 60 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है और अपने प्राकृतिक सौंदर्य तथा विशिष्ट संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। कोंगथोंग ‘व्हिस्लिंग गांव’ (सीटी वाला गांव) के नाम से भी मशहूर है, क्योंकि यहां का हर बच्चा एक विशेष प्रकार की आवाज निकालता है, जो सुनने में सीटी जैसी लगती है।
हालांकि स्थानीय लोगों का बताना है कि वास्तव में यह परम्परा सीटी बजाने से नहीं जुड़ी है। दरअसल यहां बच्चे के जन्म से ही उसके साथ एक विशेष प्रकार की ‘ध्वनि’ या गीत को जोड़ जाता है। यह ध्वनि उसके साथ जीवनभर रहती है, जिसे वह निकाल कर वह एक तरह से अपनी पहचान जाहिर करता है। यह परंपरा आज भी जारी है।
लाड़पुरा (मध्य प्रदेश): अपनी खास सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाने वाला लाधपुरा खास गांव मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की ओरछा तहसील में है. यहां बुंदेलखंड के ग्रामीण परिवेश के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य व रहन-सहन और बुंदेलखंडी व्यंजनों के स्वाद से रूबरू हुआ जा सकता है.
मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग की पहल पर लाड़पुरा गांव को प्रदेश के पहले पर्यटन गांव के रूप में विकसित किए जाने से यहां के लोग पर्यटन व्यवसाय से जुड़कर अपने परिवार के साथ गांव के विकास की भागीदार बन रहीं है.
लाड़पुरा में मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड के सहयोग से ग्रामीण महिलाओं द्वारा 7 होमस्टे और 3 ई-रिक्शा का संचालन किया जा रहा है । – 1110 लोगों की आबादी वाले इस गांव केकरीब 80 प्रतिशत लोग शिक्षित हैं। इसमें लाड़पुरा गांव को यूएन डब्ल्यूटीओ अवार्ड में नामांकित किया गया। इससे गांव में खुशी का माहौल है।
पोचमपल्ली (तेलंगाना): भारत की सिल्क सिटी के रूप में विख्यात तेलंगाना नलगोंडा जिले में स्थित पोचमपल्ली अपने खास किस्म के रेशम और रेशमी साडि़यों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। रेशम के अलावा यहां की संस्कृति, पंरपरा, विरासत, इतिहास और सुंदरता आदि भी यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती है। यह सुंदर शहर, पहाडि़यों, खजूर के पेड़ों, झीलों, तालाबों और मंदिरों के बीच स्थित है।
101 दरवाजा हाउस पोचमपैल्ली की सबसे विख्यात ऐतिहासिक इमारत है। माना जाता है कि यह इमारत लगभग 150 साल पुरानी है और इसका निर्माण, गांव के मुख्य राजस्व द्वारा करवाया गया था।