देहरादून। उत्तराखंड के जंगल इन दिनों धूं-धूं कर जल रहे हैं। वन विभाग के इंतजाम पुराने ढर्रे पर ही हैं। ये जरूर है कि उत्तराखंड सरकार के अनुरोध पर वायुसेना के दो हेलीकॉप्टर आग पर काबू पाने के अभियान के हिस्से बन गए हैं। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पूरे मामले की समीक्षा कर रहे हैं और वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत खुद ग्राउंड जीरो पर पहुंच कर अपनी टीम का हौसला बढ़ा रहे हैं।
इन स्थितियों के बीच, एकबार फिर वनाग्नि बुझाने के लिए सभी की नजरें आसमान की तरफ हैं। मौसम विभाग ने अगले चार दिन बारिश की संभावना जताई है। उत्तराखंड के कई स्थानों पर हल्की-फुल्की बारिश और कई जगह बादल छाने की सूचना है, लेकिन विकराल वनाग्नि पर प्रभावी असर करने वाली बारिश अभी कहीं नही है। कुमाऊं के मुकाबले गढ़वाल मंडल में दावानल के पैर ज्यादा मजबूती से जमे दिखाई दे रहे हैं। अप्रैल माह के पांच दिनों में अभी तक कुल प्रभावित इलाक़ा 413.5 हेक्टयर बताया गया है। इसमें 336 हेक्टेयर जंगल गढ़वाल मंडल के हैं। अग्नि की 261 घटनाएं हुई हैं, जिनमें से 193 गढ़वाल मंडल की हैं।
सरकार की चिंता इस बात की भी है कि जंगल की आग आबादी तक न पहुंच जाए। अभी कुछ वर्षों पूर्व की एक घटना सभी के जेहन में ताज़ा है, जबकि पौड़ी के एक गांव में जंगल की आग आबादी तक पहुंच गई थी और कुछ लोगों की मौत हो गई थी। सरकार का दावा है कि 12 हजार वनकर्मी आग बुझाने में जुटे हैं, लेकिन कई इलाके ऐसे भी है, जहां तक वन विभाग की उपस्थिति नहीं है। मसूरी -उत्तरकाशी मार्ग पर कई जगह जंगल की आग सड़क तक पहुंच रही है और लोग जोखिम उठा कर यात्रा कर रहे हैं लेकिन वन विभाग यहां गायब है। इस पूरे मामले में तमाम वो गैर सरकारी संगठन भी कठघरे में आ रहे हैं, जो फंड तो जंगलों के नाम पर लेते हैं, लेकिन आपातकालीन स्थिति में सरकार के सहयोगी नहीं बनते। हालांकि वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत का कहना है कि विभाग पूरी ताकत से इस स्थिति से निबटने में जुटा है।