बिहार के गौरव भिखारी ठाकुर को मिले पद्म भूषण: राजीव प्रताप रूडी

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• सांसद रूडी ने कहा: भिखारी ठाकुर को पद्म भूषण से अलंकृत करना राष्ट्र की कृतज्ञता होगी

• सांसद रूडी ने पीएम मोदी और गृहमंत्री शाह को भेजे पत्र, ऑनलाइन भी अनुशंसा की

• रूडी संसद में भी उठाएंगे यह मुद्दा, बिहार के सभी सांसदों से हस्ताक्षर लेकर करेंगे संयुक्त प्रयास

छपरा। सारण सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि भोजपुरी के महान लोकनाटककार, समाजचेतक और पिछड़े वर्ग के गौरव स्व. भिखारी ठाकुर जी को मरणोपरांत “पद्म भूषण” से अलंकृत करना राष्ट्र की सच्ची कृतज्ञता होगी। उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह को अलग-अलग पत्र भेजकर यह अनुशंसा की है। साथ ही अपनी ओर से इसे भारत सरकार के पोर्टल पर ऑनलाइन भी सबमिट किया है।

इस संदर्भ में सांसद श्री रुडी ने कहा कि स्व. भिखारी ठाकुर जी को मरणोपरांत पद्म भूषण दिलाने के इस प्रयास को वे संसद के आगामी सत्र में लोकसभा में भी पुरजोर ढंग से उठाएंगे। उन्होंने कहा कि इसके लिए बिहार के सभी माननीय सांसदों से मिलकर उनके हस्ताक्षर भी लेंगे, ताकि इसे एक संयुक्त प्रस्ताव के रूप में भारत सरकार के समक्ष रखा जा सके। उन्होंने भरोसा जताया कि सभी राजनीतिक दलों के सांसद इस सांस्कृतिक आग्रह में सहभागी बनकर भिखारी ठाकुर जी को यह गौरव दिलाने में सहयोग करेंगे।

सांसद श्री रूडी ने कहा कि भोजपुरी लोककला और संस्कृति के क्षितिज पर स्व. भिखारी ठाकुर वह अद्वितीय दीपशिखा हैं, जिन्होंने अपनी कलम और मंच की तपिश से समाज की कुरीतियों को झुलसा दिया और लोकमानस में जागरूकता की मशाल प्रज्ज्वलित कर दी। उनके नाटक, ‘बिदेसिया’, ‘बेटी-बेचवा’, ‘गबर घिचोर’, ‘विधवा विलाप’ केवल मनोरंजन नहीं थे, बल्कि दहेज प्रथा, नारी उत्पीड़न, प्रवासी जीवन की वेदना और सामाजिक विद्रूपताओं पर तीखे प्रहार भी थे।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भिखारी ठाकुर जी ने उस युग में भोजपुरी भाषा को साहित्य और मंच की गरिमा दी, जब इसे केवल जनभाषा माना जाता था। उन्होंने अपनी मंडली के साथ गांव-गांव जाकर लोकमंच को परिवर्तन का तीर्थ बना दिया। उनके गीतों व नाटकों में करुणा की कोमलता और सुधार की कठोरता साथ-साथ गूंजती रही।

सांसद श्री रूडी ने कहा कि ऐसे लोकमर्मज्ञ, समाज सुधारक और भोजपुरी की अमर विभूति को मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित करना न केवल उनके प्रति कृतज्ञ राष्ट्र की श्रद्धांजलि होगी, बल्कि हमारी लोकसंस्कृति को चिरंजीवी बनाए रखने की ऐतिहासिक पहल भी होगी। उन्होंने विश्वास जताया कि यह निर्णय भोजपुरी समाज के करोड़ों लोगों के आत्मगौरव को भी नया संबल देगा।

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