
रांची। झारखंड के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सहयोग से छह दिवसीय वनरक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ 17 फरवरी को बीएयू के वानिकी संकाय में हुआ। यह प्रशिक्षण 22 फरवरी, 2025 तक चलेगा। इसमें झारखंड के विभिन्न जिलों के 120 वन रक्षकों को सभी महत्वपूर्ण विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाएगा।
कार्यक्रम का उद्घाटन वानिकी संकाय के डीन डॉ. एम.एस. मलिक, कुलसचिव डॉ. एस. चट्टोपाध्याय, वनरक्षक प्रशिक्षण प्रभारी डॉ. ए.के. चक्रवर्ती, राज्य वन प्रशिक्षण संस्थान, महिलौंग के निदेशक वी.एस. दुबे ने किया।
प्रशिक्षण के दौरान हाई-टेक नर्सरी, टिशू कलचर, एग्रोफॉरेस्ट्री की जानकारी दी जाएगी। झारखंड में कृषि वानिकी किसानों के लिए फसलों और पेड़ों को एक साथ उगाने का एक लाभकारी तरीका है, जिससे भूमि का अधिकतम उपयोग और अतिरिक्त आय होती है। रिमोट सेंसिंग तकनीक से वन रक्षकों को जंगलों की स्थिति और कृषि भूमि का विश्लेषण करने में मदद मिलती है, जो वन प्रबंधन में सहायक है। झारखंड में बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए बांस प्रशिक्षण जरूरी है। इससे वन रक्षकों को बांस के उचित उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन के बारे में जानकारी मिलती है, जो किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बन सकता है।
क्वालिटेटिव प्लांटिंग मटेरियल का चयन और रोपण जरूरी है, ताकि जंगलों का स्वास्थ्य और विकास सुनिश्चित हो। यह झारखंड में विविध पौधों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। वन आधारित जनजातीय आजीविका, इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम तथा औषधीय एवं सुगंधित पौधों पर विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिए जाएंगे। इसके अलावा, क्षेत्रीय भ्रमण के माध्यम से वनरक्षकों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाएगा, जिससे वे आधुनिक वन प्रबंधन तकनीकों को बेहतर तरीके से समझ और लागू कर सकें।
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