- लंबित रोजगार प्रकरणों के निराकरण, पुनर्वास और जमीन वापसी की मांग
कोरबा। छत्तीसगढ़ किसान सभा और भू-विस्थापित रोजगार एकता संघ के आह्वान पर 2 दिसंबर को खनन प्रभावित ग्रामीणों ने कुसमुंडा कोयला खदान को पांच घंटे तक बंद रखा। एसईसीएल की खदानों से प्रभावित भू-विस्थापित किसानों के लंबित रोजगार प्रकरणों का तत्काल निराकरण करने और उनका पुनर्वास करने तथा खमहरिया गांव की जमीन को किसानों को वापस करने आदि मांगों पर कुसमुंडा कोयला खदान को बंद रखा गया।
प्रबंधन द्वारा 10 दिनों में समस्या का निराकरण करने के आश्वासन के बाद बंद स्थगित किया गया। आंदोलनकारी ग्रामीण वर्ष 1978 से 2004 तक भूमि अधिग्रहण से प्रभावित प्रत्येक खातेदार को रोजगार देने, बिलासपुर मुख्यालय पेंडिंग सभी फाइलों को तत्काल निपटाने, पूर्व में अधिग्रहित खमहरिया गांव की जमीन मूल किसानों को वापस करने तथा भैसमाखार के विस्थापिटन का पुनर्वास करने आदि मांगों पर आंदोलन कर रहे थे।
पूर्व घोषणा अनुसार आज सुबह 5 बजे से ही ग्रामीणों द्वारा कुसमुंडा खदान के अंदर सतर्कता चौक के पास कोयले के सभी गाड़ियों को रोक दिया गया, जिससे कोल परिवहन पूर्ण रूप से बंद हो गया। अधिकारियों में हड़कंप मच गया। बिलासपुर मुख्यालय से वार्ता के बाद अधिकारियों ने सीएमडी कार्यालय में चर्चा कर रोजगार प्रकरणों का तत्काल निराकरण करने का आश्वासन दिया है, जिसके बाद बंद स्थगित किया गया।
उल्लेखनीय है कि लंबित प्रकरणों पर रोजगार देने की मांग को लेकर कुसमुंडा एसईसीएल के महाप्रबंधक कार्यालय के समक्ष दस से ज्यादा गांवों के किसान 1126 दिनों से अनिश्चित कालीन धरना पर बैठे हैं। वे बार-बार बंद, चक्का जाम, सत्याग्रह आदि आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन इस समस्या को हल करने के लिए एसईसीएल प्रबंधन ने कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया है।
किसान सभा के नेता जवाहर सिंह कंवर, प्रशांत झा, दीपक साहू, जय कौशिक तथा रोजगार एकता संघ के दामोदर श्याम, रेशम यादव, सुमेन्द्र सिंह ठकराल आदि ने संयुक्त बयान में कहा है कि एसईसीएल के अधिकारियों का ध्यान केवल मुनाफा कमाने पर है। खनन प्रभावित और विस्थापन पीड़ित ग्रामीणों की समस्याओं से उसे कोई सरोकार नहीं है। जिला प्रशासन की ताकत के सहारे वह ग्रामीणों के आंदोलन को कुचलना चाहती है। हालांकि भू-विस्थापित किसानों की एकजुटता के सामने कोई प्रबंधन की कोई भी चाल चलने वाली नहीं हैं।
नेताओं कहा है कि इस क्षेत्र में कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण के बाद पिछले 50 सालों से प्रभावितों को न रोजगार मिला है, न पुनर्नवास। सरकार की कॉरपोरेटपरस्त नीतियां गरीबों की आजीविका और प्राकृतिक संसाधनों को उनसे छीन रही है। यही कारण है कि कुछ लोग मालामाल हो रहे है। अधिकांश जिंदा रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं। खम्हरिया गांव के किसानों की जमीन वापस करने की मांग करते हुए उन्होंने कहा है कि चूंकि एसईसीएल ने अवॉर्ड की शर्तें ही पूरी नहीं की है, इसलिए अधिग्रहण अवैध है।
बंद को सफल बनाने में अमृत बाई, राजेश्वरी, सरिता, दीना नाथ, हरिहर, अनिल बिंझवार, कृष्णा,मानिक दास, फणींद्र, चंद्रशेखर, होरी, रघुनंदन, मुनीराम, सगुण, मंगल यादव, डुमन, राजकुमार, नौशाद, परस, गणेश, रमेश, विजय कंवर ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
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