- विश्वविद्यालय में रबी अनुसंधान परिषद की 44वीं बैठक
रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय अब जलवायु लचीले और बायोफोर्टीफाइड फसल प्रभेदों के विकास पर काम करेगा, ताकि खरीफ मौसम की अवशेष नमी का रबी मौसम में लाभकारी इस्तेमाल किया जा सके। इसी प्रकार पानी के न्यूनतम प्रयोग वाली कंजर्वेशन कृषि को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसमें दलहनी एवं तेलहनी फसलों पर विशेष जोर होगा। बीएयू के कुलपति डॉ एससी दुबे ने शनिवार को विश्वविद्यालय की रबी अनुसंधान परिषद की 44वीं बैठक को संबोधित करते हुए उपरोक्त विचार व्यक्त किये।
डॉ दुबे ने कहा कि विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक मानव संसाधन की बहुत कमी है। इसलिए प्रत्येक वैज्ञानिक को प्रयास करना चाहिए कि हर वर्ष बाहरी एजेंसियों द्वारा वित्त पोषित एक शोध परियोजना वे लायें, ताकि विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसिएट और सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में अतिरिक्त मानव संसाधन उपलब्ध रहे। उन्होंने कहा कि सिंचाई की कमी के बावजूद रबी मौसम में फसल आच्छादन क विशेषकर दलहनी, तेलहनी एवं सब्जी फसलों का क्षेत्र बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
कुलपति ने निर्देश दिया कि विश्वविद्यालय का प्रत्येक विभाग उच्च स्तरीय राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रति वैज्ञानिक दो शोधपत्र प्रकाशित करे। स्थानीय किसानों की जरूरत एवं प्राथमिकताओं के अनुरूप एक प्रौद्योगिकी रिलीज करने का प्रयास करे।
कुलपति ने कहा कि आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग को एक अध्ययन करना चाहिए कि झारखंड की कृषि योग्य भूमि के कितने भाग में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित फसल प्रभेद लगाये जा रहे हैं, ताकि अध्ययन के परिणामों से राज्य सरकार को अवगत कराया जा सके। उसके अनुरूप और सरकारी सहयोग के लिए प्रयास किया जा सके। जैव विविधता संरक्षण प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के पास काफी फंड है। वैज्ञानिकों को इस दिशा में परियोजना प्रस्ताव समर्पित करना चाहिए।
रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (झांसी) के अनुसंधान निदेशक डॉ एसके चतुर्वेदी ने झारखंड के कृषकों की सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप प्राकृतिक कृषि के लिए समेकित कृषि प्रणाली विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने पिछले 10 वर्षों में कितना बीज उत्पादन किया, राज्य सरकार से कितना इंडेंट मिला और कितने बीज का उठाव हुआ, इससे संबंधित प्रमाणिक आंकड़ा तैयार करना चाहिए।
डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि शोध प्रयोग और बीज उत्पादन में केवल पिछले 10 वर्षों के अंदर जारी किए गए फसल प्रभेदों का ही इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसे प्रभेदों की सूची केंद्रीय वेरायटी रिलीज कमेटी की वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि बीज केवल विश्वसनीय स्रोतों से ही प्राप्त करना चाहिए, तभी अंकुरण और फसल विकास अपेक्षित मात्रा में हो पाएगा।
बीएयू के अनुसंधान निदेशक डॉ पीके सिंह ने स्वागत करते हुए रबी अनुसंधान उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। कहा कि पिछले एक वर्ष के अंदर विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, टाटा स्टील, भारत सरकार और इक्रीसैट, हैदराबाद से लगभग 9.42 करोड रुपए की शोध परियोजना स्वीकृत हुई है। उन्होंने कहा कि झारखंड में बागवानी फसलों का अच्छादन राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
भारतीय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, रांची के निदेशक डॉ सुजय रक्षित, बीएयू के पूर्व कुलपति डॉ जीएस दुबे, पलांडु स्थित आईसीएआर संस्थान के प्रमुख डॉ एके सिंह, पूर्व अनुसंधान निदेशक डॉ ए वदूद और शुष्क भूमि कृषि परियोजना के मुख्य वैज्ञानिक डॉ डीएन सिंह ने भी विचार विमर्श में भाग लिया। डॉ सीएस महतो ने धन्यवाद किया। संचालन शशि सिंह ने किया।
विश्वविद्यालय सेवा से अगले दो-तीन महीने में अवकाश ग्रहण करने वाले डॉ नरेंद्र कुदादा, डॉ जयलाल महतो एवं डॉ पीके झा को उनके लाइफटाइम योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
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