- केंद्र सरकार की योजना के तहत झारखंड के चार जिलों में बनेगा सीड हब
- बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में दलहन-तेलहन उत्पादन पर विशेष व्याख्यान
रांची। झांसी स्थित रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ एसके चतुर्वेदी ने बीज उत्पादन कार्यक्रम में स्नातक अंतिम वर्ष और मास्टर डिग्री के छात्रों को भी संलग्न करने पर जोर दिया है, ताकि उनके माध्यम से उन्नत फसल प्रजातियों का संदेश पूरे राज्य में फैल सके। उन्होंने कहा कि दलहन, तिलहन एवं अन्य फसलों में बेहतर उत्पादन क्षमता वाली रोगरोधी प्रजातियों की कमी नहीं है। उनके प्रति किसानों में जागरुकता बढ़ाने की जरूरत है। डॉ चतुर्वेदी शुक्रवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में बिरसा जयंती के अवसर पर दलहन-तेलहन उत्पादन पर विशेष व्याख्यान दे रहे थे।
डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि झारखंड के रांची और पूर्वी सिंहभूम जिला में तिलहन के क्षेत्र में पिछले 15 वर्षों में सराहनीय कार्य हुआ है। इसे अन्य जिलों में भी फैलाया जा सकता है, सिर्फ इच्छाशक्ति बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रांत की मध्यम भूमि में 100 से 110 दिनों में परिपक्व होने वाली सरसों की किस्म पूसा 25 और पूसा 26 लगायी जा सकती है।
डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि केंद्र सरकार की योजना के तहत राज्य के चार जिलों में सीड हब बनाया जाना है। यदि इन चारों जिलों में लक्ष्य के अनुरूप एक-एक हजार क्विंटल तिलहन का बीज उत्पादन किया जाए तो 50% की दर से प्रतिस्थापन के लिए भी बीज उपलब्ध हो जाएगा। उन्होंने कहा कि झारखंड में सिंचित और वर्षाश्रित-दोनों परिस्थितियों में उत्पादकता लगभग बराबर है। इसलिए वर्षाश्रित खेती पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे उत्पादन लागत में कमी आएगी।
डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि दलहन उत्पादन के अंतर्गत झारखंड में देश की 2 प्रतिशत भूमि रबी और 3 प्रतिशत भूमि खरीफ में आच्छादित रहती है। झारखंड राष्ट्रीय उत्पादन में लगभग चार प्रतिशत का योगदान करता है। झारखंड प्रांत में ज्यादातर किसान चना फसल को हरा चना के रूप में बेच देते हैं। उसका बीज नहीं रखते। इसलिए उन्हें प्रति वर्ष 20 हजार क्विंटल गुणवत्तायुक्त बीज की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि गुणवत्तायुक्त बीज के उठाव में कहीं कोई परेशानी नहीं है, अगर राज्य सरकार नहीं लेती है तो राष्ट्रीय बीज निगम बीज की खरीद के लिए हमेशा तैयार है।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ एससी दुबे ने कहा कि बिरसा मुंडा में संगठन कौशल और रण कौशल अद्वितीय था। उन्होंने तीर-धनुषधारी उनके लडा़कों ने तलवार और बंदूक से लैस अंग्रेजी पुलिस से लोहा लिया। किसी लड़ाई में पराजित नहीं हुए। छत्रपति शिवाजी महाराज के नक्शे कदम पर चलते हुए गोरिल्ला युद्ध का इस्तेमाल किया।
डॉ दुबे ने कहा कि जंगल, जमीन और प्रकृति की। समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन के लिए वह सतत प्रयासरत और संघर्षरत रहे। समाजसेवा के माध्यम से लोगों का दिल जीतकर अपना संगठन खड़ा किया। सात्विकता, धार्मिकता, आध्यात्मिकता और नशामुक्ति पर आधारित बिरसाइत धर्म का सूत्रपात किया।
स्वागत कुलसचिव डॉ नरेंद्र कुदादा और धन्यवाद डॉ जगरनाथ उरांव ने किया। मंच पर निदेशक प्रशासन एजाज अनवर भी उपस्थित थे। वानिकी संकाय के छात्र पंकज और वेटनरी संकाय की छात्रा प्रतिभा ने भी बिरसा भगवान के जीवन दर्शन पर अपने विचार रखे। संचालन शशि सिंह ने किया।
छात्र-छात्राओं ने सुबह में आकर्षक शोभायात्रा भी निकाली। यात्रा कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय परिसर से प्रारंभ हुई और बिरसा भगवान की प्रतिमा तक गई।
विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक प्रभारी डॉ अरुण कुमार तिवारी के समन्वयन में छात्र-छात्राओं ने कृषि महाविद्यालय प्रेक्षागृह में गीत, संगीत, नृत्य और नाटक का रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
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