विनय राकेश
जमशेदपुर। आए दिन समाचार पत्र और विभिन्न सोशल मीडिया पर यह प्रचारित किया जा रहा है कि भाजपा झारखंड में सभी ट्राइवल यानी एसटी सीटें हार गई? कैसे झूठा नैरेटिव सेट किया जाता है, इसका उदाहरण है। यह सही है कि 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा झारखंड में सभी पांच आदिवासी सीटें हार गई। जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के पास झारखंड के पांच एसटी सीटों में से दुमका, लोहरदगा और खूंटी सीटें थीं। चाईबासा कांग्रेस और राजमहल सीट झामुमो के पास थी। यह सत्य है कि भाजपा अपनी तीनों एससी सीट इस चुनाव में बचाने में विफल रही। मगर क्या उसे इन पांच सीटों पर आदिवासियों के वोट नहीं मिले?
क्या कांग्रेस और झामुमो को जो वोट मिले, उसमें अल्पसंख्यक समुदाय के वोट शामिल नहीं हैं? जैसा विश्लेषक नैरेटिव बना रहे हैं? दुमका में सीता सोरेन को 5 लाख 27 हजार से ज्यादा वोट मिले। नलिन सोरेन को 5 लाख 47 हजार के करीब, सीता सोरेन 22 हजार 577 वोट से हारीं। राजमहल मे भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी को 4 लाख 35 हजार वोट मिले, वहीं विजय हांसदा को 6 लाख 13 हजार वोट मिले। खूंटी संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा को 3 लाख 61 हजार के करीब और कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा को 5 लाख 12 हजार से ज्यादा वोट मिले। लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव को 3 लाख 43 हजार के करीब और कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत को 4 लाख 83 हजार वोट मिले। वहीं सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा को 3 लाख 51 हजार और झामुमो प्रत्याशी जोबा मांझी 5 लाख 20 हजार वोट मिले। सवाल है कि भाजपा उम्मीदवारों को क्या आदिवासियों के वोट नहीं मिले? उसी प्रकार इंडी गठबंधन प्रत्याशियों को आदिवासियों के अलावा अन्य वोट नहीं मिला, मगर यह नैरेटिव झारखंड में गढ़ा जा रहा है।