
रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय ने झारखंड के 19 आकांक्षी जिलों में लगभग 2000 डेयरी पशुओं में बांझपन की जांच करके उनका इलाज किया। उनके गोबर में परजीवियों की मात्रा की जांच की।
इन पहलुओं पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में लगभग 5000 किसानों ने भाग लिया। सभी 19 जिलों में ऐसे दो जागरुकता शिविर आयोजित किये गये। प्रत्येक शिविर में लगभग 250 किसानों ने भाग लिया और क़रीब 100 पशुओं का इलाज किया गया।
कार्यक्रम का आयोजन भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय और पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा प्रायोजित पशुधन जागृति अभियान के तहत झारखंड सरकार के पशुपालन विभाग के सहयोग से किया गया। कृषि विज्ञान केंद्रों के पशु वैज्ञानिक भी इसमें सहयोगी रहे।
झारखंड के 19 आकांक्षी जिलों में साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, चतरा, पलामू, बोकारो, गढ़वा, दुमका, रामगढ़, गिरिडीह, हजारीबाग, लातेहार, रांची, लोहरदगा, सिमडेगा, खुंटी एवं गुमला शामिल हैं।
पशुचिकित्सा संकाय के डीन डॉ सुशील प्रसाद ने गाय एवं भैंस में बांझपन के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत सरकार प्रायोजित इस परियोजना के तहत लगाए गए शिविरों का मुख्य उद्देश्य डेयरी व्यवसाय को प्रोत्साहित करना तथा मिल्क उत्पादन बढ़ाना है।
संकाय के सहायक प्राध्यापक डॉ बसंत कुमार, डॉ थानेश उरांव, डॉ उमेश कुमार तथा डॉ मधुरेंद्र कुमार बच्चन ने आजीविका संवर्धन में दुग्ध उत्पादन और डेयरी सेक्टर की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने उन्नत प्रजनन रणनीति, वैज्ञानिक पोषण, चारा उत्पादन तथा वैक्सीनेशन एवं नियमित कृमि नियंत्रण द्वारा विभिन्न रोगों से बचाव पर जोर दिया।
गांवों में किसान-वैज्ञानिक इंटरेक्शन कार्यक्रम भी आयोजित किये गये। पशुपालकों की डेयरी फार्मिंग से जुड़ी जिज्ञासा का उत्तर दिया गया। प्रत्येक कैंप में इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स द्वारा उपलब्ध करायी गयी दवाएं, फीड सप्लीमेंट और मिनरल मिक्सर किसानों को वितरित किया गया।
अल्पविकसित जिलों को तेजी से विकास के मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से नीति आयोग के अनुश्रवण में आकांक्षी जिला कार्यक्रम देश में चलाया गया है। देश के कुल 112 ऐसे जिलों की सर्वाधिक संख्या झारखंड में है।
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