मयूरी गुप्ता
कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता है। हर इंसान में कुछ न कुछ कमी होती है। कुछ गुण विशेष भी होते हैं। आवश्यकता इस बात है कि उन गुणों को पहचानकर उसका समुचित उपयोग किया जाए। जिस तरह से एक छोटे से बीज में बड़ा वृक्ष बनने की क्षमता सुषुप्त रूप में होती है और उसे यदि उपयुक्त परिस्थिति, वातावरण एवं पोषण मिलता है तो वह अपने असली रूप में विकसित होने लगता है। ठीक उसी तरह हर मनुष्य के अन्दर संभावनाएं होती है, लेकिन उपयुक्त परिस्थिति, वातावरण पोषण नहीं मिल पाने के कारण वह अन्दर निहित क्षमताओं को उजागर नहीं कर पाता हे। यदि वह इन क्षमताओं का उपयोग करना सीख ले तो इससे परिचित हो सकता है।
अक्सर लोग कहते है फलां व्यक्ति में कई तरह की बुराईयां हैं। वह अच्छा इंसान नहीं है। ऐसा कहकर लोग उस व्यक्ति के अन्दर की अच्छाईयो को भी खत्म कर देते हैं। कोई भी इंसान बुरा नहीं होता है। उसकी आदतें बुरी होती हैं। हमें उस इंसान से नफरत नहीं, बल्कि उसकी बुराईयों से नफरत करनी चाहिए। मनुष्य अपनी क्षमता का शत प्रतिशत उपयोग नहीं करता है। यदि आत्म निर्माण में जुटा जा सके, बुरी आदतों को कूड़े की तरह समेटकर बाहर फेंका जा सके, दृष्टिकोण में मानवीय परिवर्तन गरिमा के अनुरुप आ सके, तो हर असंभव कही जाने वाली चीज संभव है।
सफलता हासिल करने के लिए दूसरों की मनुहार की जरूरत नहीं। यदि व्यक्ति अपनी समझ को तेज करता चले, अधिक बड़ी जिम्मेदारियां उठाता चलें तो समझना चाहिए कि इसी विकसित प्रबंध शक्ति के बल पर वह जहां भी रहेगा, सरताज बनकर रहेगा। यह आत्मशक्ति उसे साधारण से आसाधारण व्यक्ति बनाती है।
सच कहे तो हमें खुद पर ही विश्वास नहीं होता। सफलता या असफलता से धबराए नहीं, कठिन कार्यों को करने मे हिचकिचाए नहीं, जो दुविधा में रहते हैं वे कभी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। हम अपनी कीमत समझ ही नहीं पाते और सदैव खुद में ही कमियां ढूंढते एवं देखते रहते हैं। यह नहीं देख पाते कि इन कमियों के बावजूद हमारे अन्दर क्या खूबी है।
उदाहरण के तौर पर हम सड़क के किनारे अच्छे खासे स्वस्थ आदमी को भीख मांगते हुए देखते हैं। इस तरह के कई अन्य वाक्या हमारे समाज में देखने को मिलते हैं।
हमारे देश और समाज की यही दुर्भाग्य है कि ना हम अपनी और ना ही इस शरीर की कीमत को समझ पाते हैं। इस शरीर से भी मूल्यवान जीवात्मा है, जो सदैव हमारे साथ रहती है। यह परमात्मा का अंश है, जिसकी अभिव्यक्ति के लिए अमूल्य मानव शरीर हमें परमात्मा से उपहार में मिला है। इसीलिए जितना संभव हो सके, हमें इसका सदुपयोग करना चाहिए। अपने अंदर की क्षमता का उपयोग करना चाहिए। चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए। तभी हम अपनी शक्ति व क्षमताओं से परिचित हो सकेंगें।
लेखक : मोटिवेटर एवं कंटेंट राइटर (रांची, झारखंड)