बिहार के जाति आधारित सर्वे का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, HC के आदेश को चुनौती, की गई ये मांग

नई दिल्ली देश
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नई दिल्ली। बिहार में जातीय जनगणना मामले पर पटना हाईकोर्ट का फैसला बिहार सरकार के पक्ष में आया था, जिसे सत्ता पक्ष के सभी नेता एक बड़ी जीत की तरह देख रहे थे, लेकिन अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

याचिका में पटना हाईकोर्ट के सर्वे जारी करने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है। अखिलेश कुमार नामक एक याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

हालांकि, उनकी इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कब करेगी, इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। यहां बता दें कि बिहार सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही कैविएट अर्जी दाखिल कर रखी है।

बिहार में जाति आधारित जनगणना को रोकने के लिए एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसे पटना हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। कोर्ट द्वारा दिए गए इस निर्णय के बाद नीतीश सरकार का प्रदेश में जातिगत जनगणना करवाने का रास्ता साफ हो गया था।

बता दें कि याचिकाकर्ताओं ने जातिगत जनगणना रोकने की अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए नीतीश सरकार को बड़ी राहत दी थी। जाति आधारित जनगणना प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए पांच अलग-अलग याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई थीं। जिस पर कोर्ट में कई दिनों तक सुनवाई चली थी। सभी दलीलों को सुनने के बाद पटना हाई कोर्ट ने नीतीश सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था।

बता दें कि मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने जातीय आधारित जनगणना पर सवाल उठाते हुए उसे तत्काल रोकने के लिए दलील दी थी। याचिका दाखिल करने वाले का कहना था कि जनगणना करवाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। अगर ऐसा बिहार सरकार करती है, तो व्यक्ति की निजता के अधिकार का हनन होगा।

इस दलील पर नीतीश सरकार ने अपना पक्ष रखा था। जिसमें बिहार सरकार का पक्ष रख रहे वकील की ओर से कहा गया था कि यह जातिगत जनगणना नहीं, बल्कि सर्वेक्षण होगा। सर्वेक्षण में जो 17 सवाल पूछे जा रहे हैं, इससे किसी की निजता के अधिकार का हनन नहीं होता है।

कोर्ट में बिहार सरकार ने अपना पक्ष मजबूती से रखा और कोर्ट ने भी बिहार सरकार को राहत देते हुए जातिगत जनगणना के मामले में बड़ी राहत दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कब सुनवाई करता है, सबकी निगाहें इसी ओर टिकी हैं।

बिहार में अधिकतर राजनीतिक दल जातिगत गणना की मांग लंबे समय से कर रहे थे। इस मांग को लेकर उनका कहना है कि जाति गणना होने से राज्‍य में रहने वाले दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सही आबादी का पता चल पाएगा। इस गणना होने से समाज में उनकी स्थिति को सुधारने के लिए विशेष योजनाएं बनाने में आसानी होगी।

अगर सही जातीय जनसंख्या का पता होगा, तो राज्य में उनके मुताबिक प्रभावी योजनाएं बनाई जाएंगी। बता दें कि बिहार विधानसभा और विधान परिषद में 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना कराने से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया था। इस प्रस्‍ताव को भाजपा, राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दिया था।

7 जनवरी, 2023 से बिहार में जाति गणना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसके तहत विभागीय कर्मचारी घर-घर पहुंचकर डेटा इकठ्ठा कर रहे हैं। गणना में कर्मचारियों के साथ शिक्षक और आंगनवाड़ी सेविकाओं को भी लगाया गया है। गणना के तहत पहले चरण में मकानों पर नंबर डाले गए। वहीं, दूसरे चरण में लोगों से उनकी जाति पूछकर गणना की जा रही है।

लंबे समय से बिहार समेत देश के कई राज्यों में जाति गणना की मांग उठ रही थी। साल 2011 में हुई गणना के बाद जातीय आधार पर रिपोर्ट बनाई गई थी, लेकिन माहौल बिगड़ने के डर से उसे जारी नहीं किया गया था। बता दें कि बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी जातिगत गणना हो चुकी है।