परंपरागत पौधा किस्म संरक्षण पर किसानों को जागरूक किये जाने की जरूरत : डॉ केरकेट्टा

कृषि झारखंड
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  • बीएयू में पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण पर जागरुकता सह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित

रांची। भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन संचालित पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवी एंड एफआरए), नई दिल्ली तथा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), रांची के संयुक्त तत्वावधान सोमवार को एकदिवसीय जागरुकता सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि जेपीएससी अध्‍यक्ष डॉ मैरी नीलिमा केरकेट्टा ने कहा कि बदलते कृषि परिवेश एवं कृषि व्यवसायीकरण को देखते हुए किसानों, कृषि विशेषज्ञों एवं पौधा प्रजनकों को बौद्धिक संपदा के आधार के प्रति विशेष जागरूक रहने की जरूरत है। भारत सरकार के पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के अधीन किसानों, शोधकर्ताओं एवं पौधा प्रजनकों को काफी अधिकार मिले हुए है।

डॉ केरकेट्टा ने कहा कि किसान पीढ़ियों से कृषि पर आश्रित है। वह खेती से फसल पैदा करता है। अपने पारंपरिक फसल किस्मों के बीज का उपयोग, उन्हें संरक्षित और उनकी रक्षा करता है। इनमें बहुत सारे अच्छे गुण मौजूद होते है। उन्होंने कहा कि पीपीवी एंड एफआर अधिनियम इन परंपरागत किस्मों का पेटेंट समान पंजीयन कराने और इसे आगे बढ़ाकर लाभ हासिल करने का अवसर देता है। मौके पर अतिथियों में बीएयू द्वारा प्रकाशित पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण विषयक पुस्तिका का विमोचन किया।

अध्यक्षीय संबोधन में पीपीवी एंड एफआरए अध्यक्ष एवं आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक डॉ त्रिलोचन महापात्रा ने किसानों, कृषि विशेषज्ञों एवं पौधा प्रजनकों को बौद्धिक संपदा के संसाधनों का विशेष देखभाल, स्वामित्व एवं संरक्षण पर ध्यान दिये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विश्व व्यवसायीकरण कि दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसे में कृषकों के परंपरागत किस्मों एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किस्मों का प्राधिकरण में पंजीयन कराना जरूरी है।

डॉ महापात्रा ने प्रदेश के शोध संस्थानों में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किस्मों के पंजीयन की आवश्यकता जताई। उन्होंने कृषि छात्रों को पीपीवी एंड एफआरए विषय पर जागरूक करने और विशेष शिक्षा पर जोर दिया। कहा कि झारखंड राज्य में इस अभियान को आगे बढ़ाने में कृषि विज्ञान केन्द्रों की बड़ी भूमिका होगी। किसानों की बौद्धिक संपदा को चिन्हित, किसानों को जागरूक और कृषकों के अधिकार के लिए विशेष प्रयास किये जाने होंगे।  

विशिष्ठ अतिथि झारखंड के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ डीके सक्सेना ने कहा कि किसानों को बाजार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। प्रदेश के बहुतायत किसान छोटे एवं मझौले जोतदार है। देश का बीज उद्योग बाजार करीब 30 हजार करोड़ का है। ऐसे में परंपरागत बौद्धिक संपदा पर कृषक अधिकार के प्रति सक्रिय अभियान एवं जागरूकता आज की एक अहम् जरूरत है।

स्वागत करते हुए कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि झारखंड में भी इस अभियान को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि स्थानीय किसान बौद्धिक संपदा के अधिकार से वंचित नहीं हों। उन्होंने कहा कि सीमित मानव बल के बावजूद बीज उत्पादन में बीएयू के आतंरिक स्रोत में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बीएयू द्वारा हाल में विकसित दर्जनों उन्नत किस्मों का पंजीयन आवेदन 10 दिनों के भीतर प्राधिकरण को भेजने का निर्देश दिया। 

संचालन हरियाली रेडियो की समन्यवयक शशि सिंह तथा धन्यवाद निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र डॉ एस कर्माकार ने दी।

तकनीकी सत्र में पीपीवी एंड एफआरए के अधिकारी यूके दुबे ने पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार अधिनियम, 2001 एवं पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के बारे में विस्तृत से प्रकाश डाला। इस दौरान किसानों, वैज्ञानिकों एवं पौधा प्रजनकों ने चर्चा में भाग लिया। अध्यक्षता पीपीवी एंड एफआरए अध्यक्ष डॉ त्रिलोचन महापात्रा तथा सह अध्यक्षता कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने की।

सत्र के संयोजक डॉ विशाल नाथ पांडे, डॉ एस कर्माकार, डॉ सुजय रक्षित एवं प्रधान डॉ एके सिंह रहें। मौके पर डॉ अभिजित कार, डॉ एमपी मंडल, डॉ एसबी चौधरी, डॉ एमएस मल्लिक, डॉ पीके सिंह, डॉ डीके शाही, डॉ एमके गुप्ता के अलावा बीएयू के वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्रों के प्रधान/प्रभारी, सभी जिलों के किसान, छात्र – छात्राएं भी मौजूद थे।