सरला बिरला विश्वविद्यालय में दीनदयाल जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन

झारखंड
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रांची। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर सरला बिरला विश्वविद्यालय की ओर से बिरला नॉलेज सिटी में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर डॉ. नीलिमा पाठक ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बताया।

पंडित जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि संघर्षमय जीवन के बावजूद पंडित जी ने उच्च शिक्षा हासिल की। आजीवन संघ प्रचारक रहते हुए एकात्म मानववाद का चिंतन किया।

केएसएएस लखनऊ के सहायक प्राध्यापक डॉ. आलोक कुमार द्विवेदी ने भारत की ज्ञान परंपरा के बारे में बोलते हुए कहा कि ज्ञान और आचरण ही पाश्चात्य जगत से हमें अलग करता है। भारतीय छात्रों के लिए ये बेहद जरुरी है कि वे भारतीय ज्ञान परंपरा को समझें और जानें। भारतीय ज्ञान परम्परा मूल रूप से समाज और राष्ट्र को पोषित करती है।

इस अवसर पर राज्यसभा सांसद डॉ. प्रदीप कुमार वर्मा ने संगोष्ठी में सभी का स्वागत करते हुए पंडित जी की जीवनी की तीन भागों में व्याख्या की। उनके जीवन के पहले भाग में एक भारतीय अभावग्रस्त छात्र के प्रतिनिधि के रूप, मेधा और बुद्धि का प्रयोग करते अध्ययन करनेवाले, दूसरे भाग में एक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और पत्रकार के रूप में सबको चकित करने वाले पंडितजी और जीवन के तीसरे भाग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ कर राजनीति में प्रवेश कर कार्य करनेवाले दीनदयाल जी के तीन रूपों को उन्होंने उपस्थित श्रोताओं के समक्ष रखा। जनसंघ की स्थापना, अखंड भारत की विचारधारा और उपासना पद्धति पर उनके चिंतन पर भी उन्होंने प्रकाश डाला।

विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने पंडितजी के संघर्षपूर्ण जीवन और उनकी कर्मठता पर प्रकाश डालते हुए कई प्रेरक कहानियों को साझा किया। उनके परिवार की गरीबी, माता-पिता के देहांत और गरीबी के चलते उनके जीवन की विपरीत परिस्थितियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन सबके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी अपने जीवन काल में कई प्रेरणादायी कार्य किए। कई अच्छे नौकरी के अवसर मिलने के बावजूद उन्होंने आगे की शिक्षा पर ध्यान दिया और जरुरत पड़ने पर शिक्षा से ज्यादा संबंधों को प्रधानता दी।

पत्रकारिता में उनके योगदान और पाञ्चजन्य में उनकी जिम्मेवारियों पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। कई चुनौतियों के सामना करने के बावजूद वे अख़बार के प्रकाशन के लिए कभी पीछे नहीं हटे। इसके साथ ही उन्होंने भारतीयता और भारतीय ज्ञान परम्परा के महत्व को बताया। अपने वक्तव्य में उन्होंने पंडित जी के विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यावहारिक चिंतन पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. वी. के सिंह, डीन, डेवलपमेंट एंड प्लानिंग ने धन्यवाद ज्ञापन किया। मंच का संचालन डॉ. विद्या झा ने किया। इस अवसर पर विवि के महानिदेशक प्रो गोपाल पाठक एवं कुलपति प्रो सी जगनाथन समेत विवि के शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारी उपस्थित रहे।

विवि के प्रतिकुलाधिपति बिजय कुमार दलान ने इस संगोष्ठी के आयोजन पर हर्ष व्यक्त किया है।

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