- आइ-फॉरेस्ट की राज्य स्तरीय कार्यशाला
- धनबाद की 33% खदानें ही लाभदायक हैं
रांची। पर्यावरण थिंक टैंक आइ-फॉरेस्ट ने रांची में ‘धनबाद में न्यायसंगत परिवर्तन (जस्ट ट्रांजिशन) और झारखंड में हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) भविष्य’ पर एक राज्य-स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें दामोदर घाटी के न्यायसंगत परिवर्तन रोडमैप, राज्य की नवीकरणीय ऊर्जा (रिनुअल एनर्जी) क्षमता और इसके नीतिगत परिस्थिति को दर्शाते हुए तीन रिपोर्ट जारी की।
भारत का पारंपरिक ऊर्जा केंद्र झारखंड आज ऊर्जा परिवर्तन के कगार पर है। भारत की कोयला राजधानी धनबाद करीब 43 मिलियन टन कोयला उत्पादन करता है। यह झारखंड के कुल कोयला उत्पादन का 25% है।

एक अनुमान बताते हैं कि इसकी दो-तिहाई खदानें 2030 तक बंद हो जायेंगी। आसपास के बोकारो और रामगढ़ जिले में भी संसाधनों की कमी एवं खदानों से लाभ कम होने के मामले आ रहे हैं।
इस मौके पर मुख्य अतिथि राज्यसभा सदस्य महुआ माजी ने कहा कि गैर पारंपरिक ऊर्जा से होने वाले नुकसान का आकलन भी करना चाहिए। ऊर्जा के जो भी क्षेत्र हैं, उसका कहीं ना कहीं नुकसान है। झारखंड में हजारों एकड़ जमीन पर कोयला निकाला जाता है। इससे लाखों लोग जुड़े हैं। उनका भविष्य भी इसी से है।
ऐसे में एक अनुसंधान की जरूरत है, जो गैर पारंपरिक ऊर्जा की संभावना पर विशेष फोकस करे। झारखंड में भी पूर्व से जो गैर पारंपरिक ऊर्जा के स्रोत रहे हैं। उसका नुकसान भी पहले देखा गया है।
मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने इस मौके पर कहा कि हम इस बारे में पर्याप्त बात नहीं करते कि कोयला खनन और कोयला जलाना पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक है। सारंडा जैसे समृद्ध वन क्षेत्र में 700 पहाड़ियां हैं। खनन के कारण कृषि और पर्यावरण भी प्रभावित होती है।
खराब पर्यावरण अंततः नौकरियों को प्रभावित कर सकता है। सामाजिक अशांति पैदा कर सकता है। हमें स्वच्छ ऊर्जा की ओर रुख करना होगा। अत्यधिक उपभोग की अपनी संस्कृति को कम करना होगा। पर्यावरण की रक्षा का यही बेहतर तरीका हो सकता है।
वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव अबु बकर सिद्दीख पी ने कहा कि झारखंड भारत का पहला राज्य है, जिसने जस्ट ट्रांजिशन टॉस्क फोर्स का गठन किया। हम न्यायसंगत परिवर्तन की जरूरत को समझते हैं। न्यायसंगत और परिवर्तन दोनों शब्द समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
परिवर्तन को कोई नहीं रोक सकता, लेकिन ‘न्यायसंगत’ शब्द को समझना जरूरी है। इसका अर्थ है समता और सभी के लिए न्याय है। इसे लागू करना ही चुनौती है. इसके लिए एक सहभागी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है। जहां हम सभी मिलकर काम करें।
श्रम, रोजगार एवं कौशल विभाग के सचिव जीतेंद्र सिंह ने कहा कि बात केवल एक आर्थिक परिवर्तन की नहीं है। यह एक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का भी मामला है। यदि हम ऊर्जा पारिस्थिति तंत्र को तैयार किए बिना अपने लोगों को हरित कौशल का प्रशिक्षण देते हैं, तो इससे विस्थापन होगा।
यदि हम अपनी ऊर्जा में विविधता लाते हैं। अपने लोगों को बहुत देर से प्रशिक्षित करते हैं, तो इससे सामाजिक अशांति भी पैदा हो सकती है। इस परिवर्तन के लिए एक समग्र, स्थायी परिवर्तन के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
आइ-फॉरेस्ट के अध्यक्ष और सीइओ चंद्रभूषण ने कहा कि दामोदर घाटी ने अतीत में देश को कोयले से ऊर्जा प्रदान की है। भविष्य में भी यह भारत को ग्रीन हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा से ऊर्जा प्रदान कर सकती है। इसे प्राप्त करने के लिए हमें इसकी क्षमता का पुनर्मूल्यांकन करना होगा। दामोदर घाटी को भारत की रूर घाटी के रूप में जाना जाता है।
जर्मनी का रूर एक औद्योगिक क्षेत्र है, जहां न तो ताप विद्युत है और न ही कोयल आधारित ऊर्जा. इसकी अर्थव्यवस्था विविध है। उन्होंने इसकी योजना 20 से 30 वर्षों की अवधि में बनाई थी। यदि हमें दामोदर घाटी का कायाकल्प करना है, इसके लिए एक ठोस योजना की जरूरत है. जिसे अभी शुरू किया जाना चाहिए।
झारखंड जस्ट एनर्जी टॉस्क फोर्स के चेयरमैन अजय कुमार रस्तोगी ने भी इस मौके पर विचार रखा। इससे पूर्व आइ-फॉरेस्ट की निदेशक श्रेष्ठा बनर्जी ने विषय प्रवेश कराया। झारखंड में कोयला खनन बंद होने के बाद की स्थिति से अवगत कराया।
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