
- एक संगठित और सतत भविष्य की परिकल्पना की
जहांगीर रतनजी दादाभॉय टाटा को स्नेहपूर्वक जे.आर.डी. कहा जाता है। वे केवल एक महान उद्योगपति नहीं थे, बल्कि ऐसे दूरदर्शी व्यक्तित्व थे। उन्होंने एक ऐसे भविष्य की परिकल्पना की, जहां प्रगति, लोग और प्रकृति सामंजस्य के साथ आगे बढ़ें। टाटा समूह की प्रेरक शक्ति के रूप में उन्होंने पारंपरिक व्यावसायिक नेतृत्व से आगे बढ़कर एक मानवतावादी की भूमिका निभाई, जिसने भारत के सतत विकास, सामाजिक न्याय और समावेशी प्रगति की दिशा तय की।
एक ऐसे समय में जब सतत विकास महज़ एक चर्चा का विषय भी नहीं था, जे.आर.डी. टाटा ने इसे अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया। उन्होंने पर्यावरणीय जागरुकता, नैतिक नेतृत्व और समुदाय-केन्द्रित मूल्यों को टाटा समूह की कार्यसंस्कृति में गहराई से स्थापित किया। उनके प्रयासों ने उस आधार को मजबूत किया, जिसे आज हम “वन” (एक) दृष्टिकोण कहते हैं—जहाँ व्यावसायिक सफलता, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे से जुड़े और परस्पर निर्भर हैं।
पर्यावरणीय जागरुकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने 1974 में टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (अब द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट) की स्थापना के रूप में एक सशक्त संस्थागत स्वरूप लिया-उस समय जब नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर बहुत कम लोग ध्यान दे रहे थे।
उनकी दूरदृष्टि शिक्षा और सामाजिक सशक्तिकरण तक भी विस्तारित थी, जिसके परिणामस्वरूप टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना हुई। इन संस्थानों ने शैक्षणिक उत्कृष्टता को सामाजिक यथार्थ और राष्ट्रीय आवश्यकताओं की गहन समझ से जोड़ने का आदर्श स्थापित किया।
जेआरडी का नेतृत्व कभी भी केवल बोर्डरूम तक सीमित नहीं रहा। वे अक्सर बिना किसी पूर्व सूचना के स्टील वर्क्स के शॉप फ्लोर पर पहुंच जाते, कर्मचारियों से सीधे संवाद करते और उनकी समस्याओं को ध्यान से सुनते थे। एक बार प्लांट दौरे के क्रम में सुरक्षा व्यवस्था को देखकर उन्होंने तुरंत संरचनागत सुधार के आदेश दिए, उस समय जब सुरक्षा प्रोटोकॉल अभी औपचारिक रूप से लागू भी नहीं हुए थे।
उनका विश्वास हमेशा औपचारिकताओं से अधिक निष्पक्षता और क्षमता पर रहा। इसका उदाहरण वह प्रसिद्ध घटना है जब उन्होंने केवल डिग्री न होने के कारण रोकी गई पदोन्नति को रद्द कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा, “डिग्री केवल योग्यता का एक पैमाना है,” और यह साबित किया कि असली मूल्य प्रतिभा और परिश्रम का होता है, न कि केवल कागज़ी प्रमाणपत्रों का।
जेआरडी की राष्ट्र-निर्माण की सोच बेहद व्यापक थी। 1932 में भारत की पहली वाणिज्यिक एयरलाइन की स्थापना उनके लिए केवल विमानन तक सीमित नहीं थी; यह भारत को जोड़ने, आत्मगौरव जगाने और देश को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करने का एक सशक्त कदम था।
उनके नेतृत्व में टाटा के उत्पाद और सेवाएं गुणवत्ता और विश्वास का पर्याय बन गए, चाहे देश में हों या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर। जे.आर.डी. ने हमेशा यह माना कि उत्कृष्टता, नैतिकता और संवेदनशीलता अलग-अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
टाटा स्टील में जेआरडी की विरासत विस्तार के साथ-साथ दृष्टिकोण में भी स्पष्ट रूप से झलकती है। उन्होंने वैश्विक सहयोग और तकनीकी उन्नयन को लगातार बढ़ावा दिया और हमेशा समय से आगे की सोच रखी।
उनका मानना था कि प्रतिस्पर्धी और सशक्त बने रहने के लिए नवाचार और कौशल विकास अत्यंत आवश्यक हैं। आर्थिक चुनौतियों के दौर में भी वे अल्पकालिक लाभ से अधिक दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों पर ध्यान केंद्रित करने का संदेश देते थे—एक ऐसा सिद्धांत जो आज भी कंपनी की रणनीतिक सोच का आधार है।
उनका दृष्टिकोण संतुलित, सिद्धांतों पर आधारित और दूरदर्शी था-इस विश्वास से परिपूर्ण था कि टाटा स्टील की प्रगति हमेशा भारत के विकास के हित में होनी चाहिए।
उनकी संवेदनशीलता केवल कर्मचारियों तक सीमित नहीं थी, बल्कि टाटा के संचालन क्षेत्रों से जुड़े समुदायों तक भी गहराई से फैली हुई थी। उन्होंने स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में कई सामाजिक कल्याण पहलों को बढ़ावा दिया, जिसे आज हम कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के रूप में पहचानते हैं।
जेआरडी राष्ट्र की मूल भावना से भी गहराई से जुड़े थे। नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) और कई अन्य सांस्कृतिक पहलों के प्रति उनका समर्थन इस बात का प्रमाण था कि वे केवल आर्थिक विकास ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समृद्धि को भी उतना ही महत्व देते थे। उनका मानना था कि एक सशक्त राष्ट्र वही है जो अपनी विरासत का सम्मान करे और सृजनशीलता को निरंतर प्रोत्साहित करे।
कम बोलने वाले, लेकिन मजबूत सिद्धांतों वाले जेआरडी ऐसे लीडर थे, जो अपनी मिसाल खुद थे। उनके आचरण, सादगी और अनुशासन ने उन्हें सिर्फ उनके साथियों ही नहीं, बल्कि हर वर्ग के लोगों के दिलों में खास जगह दिलाई।
जेआरडी टाटा के नेतृत्व में टाटा सन्स ने 14 से 95 कंपनियों तक विस्तार कर लिया और समूह की परिसंपत्तियाँ 100 मिलियन डॉलर से बढ़कर 5 बिलियन डॉलर के पार पहुंच गई। हालांकि उनकी असली पहचान आंकड़ों में नहीं, उन मूल्यों में है जो उन्होंने टाटा समूह की नींव में गढ़े-संवेदना, दूरदर्शिता और सत्यनिष्ठा।
उन्होंने सिर्फ एक कारोबार नहीं खड़ा किया, बल्कि ऐसा रास्ता दिखाया जो जिम्मेदारी, समावेश और सतत विकास पर आधारित था। आज जब व्यावसायिक संगठन “वन” (एक) दृष्टिकोण की ओर बढ़ रही है, उनकी सोच हमें यह सिखाती है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो उद्देश्य को कार्य से जोड़कर हर जीवन को बेहतर बनाने वाला बदलाव लाए।
जेआरडी टाटा का जीवन आज भी आने वाली पीढ़ियों की लिए एक प्रेरणा है, जो यह सिखाता है कि दूरदर्शी सोच, नैतिक आचरण और सहानुभूति भरा नेतृत्व ही वह राह है, जो हमें एक सार्थक और संगठित भविष्य की ओर ले जाती है।
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