- पीवीटीजी समुदाय के 500 से अधिक छात्रों ने लाभ उठाया
जमशेदपुर। टाटा स्टील फाउंडेशन की ‘आकांक्षा’ पहल के माध्यम से पीवीटीजी समुदाय के 500 से अधिक छात्रों ने शिक्षा का लाभ उठाया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से प्रेरित होकर आगे बढ़ीं रश्मि बिरहोर टाटा स्टील फाउंडेशन की ‘आकांक्षा’ पहल का हिस्सा रही हैं। रश्मि का सफर इस कार्यक्रम की दशक-लंबी यात्रा का एक सशक्त प्रमाण है।
बिरहोर जनजाति से ताल्लुक रखनेवाली रश्मि बिरहोर कक्षा 12वीं और स्नातक परीक्षा पास करने वाली पहली लड़की है। उसने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। झारखंड के रामगढ़ जिले से शुरू हुआ उनका यह सफर आगे बढ़कर शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है।

आकांक्षा पहल की शुरुआत वर्ष 2012 में की गई थी। तब से लेकर अब तक फाउंडेशन ने 17 स्कूलों के साथ साझेदारी कर लगभग 524 पीवीटीजी समुदाय के बच्चों को बुनियादी एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंचने में मदद की है। एक अन्य प्रेरणादायक उदाहरण है छोटा बांकी गांव (पूर्वी सिंहभूम) की बालिका बिरहोर का।
बालिका ने मैट्रिक परीक्षा में 82 प्रतिशत अंक प्राप्त कर अपने समुदाय में पहली पीढ़ी की मेधावी विद्यार्थी बनने का गौरव हासिल किया। कई लोगों को प्रेरित किया है। महामारी के चलते कक्षा 12वीं की परीक्षा में कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद बालिका ने अच्छा प्रदर्शन किया। आगे चलकर बेंगलुरु के नारायणा हृदयालय में नर्सिंग की पढ़ाई का चयन किया। वर्तमान में वह अपना पाठ्यक्रम पूरा कर रही है।
इस सफर में उसे अपने भाई का भरपूर समर्थन मिला, जिन्होंने न केवल उसे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया, बल्कि माता-पिता को भी सहमत किया कि वे अपनी बेटी को घर से दूर पढ़ने का मौका दें। उसके सपनों को साकार करने में मदद करें। हालांकि वह अकेली नहीं है। पिछले एक दशक में रश्मि और उसकी जैसी कई प्रेरणादायक कहानियां सामने आई हैं, जो बुनियादी शिक्षा के महत्व को एक बार फिर रेखांकित करती हैं।
झारखंड में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (पीवीटीजी) की संख्या सबसे अधिक है, जिनमें से लगभग 62 प्रतिशत संथाल परगना क्षेत्र में रहते हैं। दलमा क्षेत्र में तीन प्रमुख समुदाय निवास करते हैं (सबर, बिरहोर और पहाड़िया)। अधिकांश पीवीटीजी समुदाय बेहद दुर्गम इलाकों में रहते हैं। विकास की मुख्यधारा से बहुत दूर, और जंगलों से मिलने वाले संसाधनों के सहारे जीवनयापन करते हैं।
सरायकेला-खरसावां के घाट दुलमी गांव की सरला बिरहोर ने 2023 में होली क्रॉस चौका से मैट्रिक परीक्षा में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। सरला उन शुरुआती छात्रों में से एक है जो ‘आकांक्षा’ पहल से तब जुड़ी थीं, जब वह महज किंडरगार्टन में थीं। वह ना केवल अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दृढ़संकल्पित है, बल्कि अपने भाई-बहनों को भी प्रेरित कर रही है कि वे जीवन की राह बदलने और एक नया भविष्य गढ़ने के लिए शिक्षा को अपना हथियार बनाएं।
पुरुलिया जिले के फूलझोरे गांव के बिजय सबर ने सिदू कान्हू शिक्षा निकेतन से मैट्रिक परीक्षा में 60 प्रतिशत अंक हासिल किए। अब शिक्षक बनने का सपना देख रहे हैं। वह हालांकि अपने परिवार में पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी नहीं हैं। उनकी बहन ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर ली है। अब सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही है।
पूर्वी सिंहभूम के धूसरा गांव के महावीर सबर अपने परिवार में पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं, जो फुटबॉल के प्रति अपने जुनून के साथ-साथ पढ़ाई में भी आगे बढ़ रहे हैं। उनके भाई बेहद गरीबी के चलते पांचवीं कक्षा के बाद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके थे। मगर महावीर सभी मुश्किलों का सामना कर आगे बढ़ने और शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।
छोटा बांकी गांव की शकुंतला बिरहोर ने अपनी शैक्षणिक यात्रा की शुरुआत भारत सेवा संघ आश्रम से की, जो धीरे-धीरे ‘आकांक्षा’ पहल तक पहुंची, जब उन्होंने चक्रधरपुर के कार्मेल स्कूल में दाखिला लिया। उनके पिता एक बढ़ई हैं। शकुंतला ने बायोसाइंस को अपना प्रमुख विषय चुना, जिससे उन्हें अंततः चेन्नई के अपोलो स्कूल ऑफ नर्सिंग में प्रवेश पाने का मौका मिला। भाषा संबंधी शुरुआती मुश्किलों के बावजूद शकुंतला ने हिम्मत नहीं हारी। अब वह जनरल नर्सिंग और मेडिसिन के अपने दूसरे वर्ष में पढ़ाई कर रही है।
सरायकेला-खरसावां जिले के लुपुंगडीह गांव के सुशील सबर सभी मुश्किलों का सामना करते हुए शिक्षा की ताकत से अपने जीवन को सार्थक बनाने में लगे हुए हैं। वह एक दिहाड़ी मजदूर परिवार से आते हैं और इतिहास विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त कर आगे चलकर सेना में भर्ती होने का सपना देखते हैं। सुशील के इस प्रयास से प्रेरित होकर उनके भाई-बहन भी पढ़ाई को प्राथमिकता दे रहे हैं और उन्हीं के नक्शेकदमों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं।
ये सभी उपलब्धियां एक या दो साल में नहीं हासिल की गईं; इसके लिए महीनों का समय लगा – झिझक तोड़ने, विश्वास स्थापित करने और जीवन में बदलाव लाने वाले विचारों का आदान-प्रदान करने में। शुरुआत में अधिकांश छात्र भाग जाते थे या बात करने से इनकार कर देते थे, क्योंकि भाषा भी एक बाधा थी। मगर धीरे-धीरे वे छात्रावास के माहौल में ढलने लगे, पढ़ाई में मन लगाने लगे और अपने सहपाठियों के साथ सीखने लगे, जिससे यह अनुभव और भी समृद्ध एवं रोमांचक बन गया।
टाटा स्टील फाउंडेशन ‘आकांक्षा’ पहल में समग्र दृष्टिकोण अपनाता है, जिसमें बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन, सुरक्षित आवास और सुगम परिवहन जैसी मूलभूत सुविधाएँ सुनिश्चित की जाती हैं। इससे वे पूरी तल्लीनता के साथ व्यक्तिगत विकास और शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल कर अपने सपनों को साकार कर पाते हैं।
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