वट सावित्री व्रत कल, जानें इसका धार्मिक और पौराणिक महत्व?

झारखंड
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बाबा रामदेव पांडेय

रांची। कल यानी सोमवार (26 मई 2025) को वट सावित्री व्रत है। हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत का पालन करती हैं।

यह व्रत पति की दीर्घायु, दांपत्य जीवन की सुख-शांति और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से वट वृक्ष (बरगद) की पूजा करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं।

धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से जीवन में सुख, समृद्धि और संतति की प्राप्ति होती है। व्रती स्त्रियां वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं और पति के उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घ जीवन की कामना करती हैं।

इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई 2025, सोमवार को रखा जाएगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12:11 बजे से होगी और समापन 27 मई को सुबह 8:31 बजे होगा।

जानें व्रत का धार्मिक और पौराणिक महत्व?


महाभारत काल से जुड़ी कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने दृढ़ निश्चय, भक्ति और तप से यमराज से अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। यह प्रसंग वट वृक्ष के नीचे घटित हुआ था, जिससे इस वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। व्रत के दिन महिलाएं सात या इक्कीस बार वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं और कथा श्रवण करती हैं। यह व्रत स्त्री की निष्ठा, प्रेम और बलिदान का प्रतीक माना जाता है।

यहां जानें पूजा सामग्री की संपूर्ण सूची

वट सावित्री व्रत की पूजा पूर्णता के साथ संपन्न हो, इसके लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है:
वट वृक्ष की परिक्रमा हेतु कलावा या कच्चा सूत
बांस का पंखा
रक्षासूत्र
पान के पत्ते
श्रृंगार सामग्री: लाल चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, काजल, आलता, कंघी, मेंहदी, लाल साड़ी
भिगोए हुए काले चने
नारियल, बताशा, फल
व्रत कथा की पुस्तक
सावित्री-सत्यवान की तस्वीर
धूप, दीपक, अगरबत्ती
पूजा की थाली या टोकरी
सवा मीटर लाल या पीला कपड़ा
सिंदूर, रोली, अक्षत, कुमकुम, चंदन, सुपारी, फूल
जल से भरा कलश
मिठाई

सात प्रकार के अनाज
यदि पास में वट वृक्ष न हो, तो उसकी एक शाखा

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