यूनिसेफ ने शिक्षकों, बीपीओ और बीईईओ के लिए की कार्यशाला

झारखंड
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  • बच्चों में बढ़ते गैर-संचारी रोग और इसकी रोकथाम में स्वस्थ खानपान की भूमिका पर चर्चा

रांची। यूनि‍सेफ, झारखंड ने नव भारत जागृति केंद्र के सहयोग से शिक्षकों के लिए ‘बच्चों में बढ़ते गैर-संचारी रोग और स्वस्थ खानपान से इसकी रोकथाम एवं नियंत्रण विषय पर एक कार्यशाला 3 अप्रैल को आयोजित की। इसका उद्देश्य शिक्षकों को बच्चों को प्रभावित करने वाले गैर संचारी रोगों जैसे मधुमेह, मोटापा और उच्च रक्तचाप के प्रति जागरूक करना था। बच्चों में स्वस्थ खानपान की आदतों को विकसित करने में शिक्षकों की भूमिका के बारे में उन्हें प्रशिक्षित करना था, ताकि बच्चों में बढ़ रहे गैर-संचारी रोगों के खतरों से उन्हें बचाया जा सके।

कार्यशाला में रांची जिले के सात प्रखंडों के 70 से अधिक सरकारी स्कूलों के शिक्षकों, प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारियों और प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला में यूनि‍सेफ, झारखंड के विशेषज्ञों ने तकनीकी सत्र के माध्यम से शिक्षकों को गैर-संचारी रोगों के कारण, निदान और इसकी रोकथाम में शिक्षकों की भूमिका से उन्हें अवगत कराया।

इस अवसर पर यूनि‍सेफ की झारखंड प्रमुख डॉ. कनीनिका मित्र ने बच्चों को गैर-संचारी रोगों के खतरों से बचाने में स्वस्थ खानपान और बेहतर जीवनशैली के महत्व एवं शिक्षकों की भूमिका पर बल दि‍या। कहा कि बच्चों में स्वस्थ खानपान की आदतों को विकसित करने में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्वस्थ आहार की आदतें बचपन में ही विकसित होती हैं। बच्चों में इन आदतों के विकास में माता-पिता के साथ-साथ शिक्षकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। शिक्षकों की जिम्मेदारी केवल कक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी है कि बच्चे सही जीवन शैली के साथ बड़े हों, ताकि वे स्वस्थ जीवन जी सकें।

डॉ मित्र ने कहा, “स्कूल केवल पढ़ाई का केंद्र भर नहीं है, बल्कि वहां उन्हें जो वातावरण और सीख मिलती है, जो आदतें और व्यवहार वे सीखते हैं, वह उनके जीवन भर काम आती हैं। स्वस्थ खानपान, नियमित व्यायाम तथा समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर शिक्षक बच्चों में गैर-संचारी रोगों के खतरों को कम करने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।”

यूनिसेफ, झारखंड की संचार विशेषज्ञ आस्था अलंग ने कार्यशाला के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। कहा कि बच्चों की स्वास्थ्य चुनौतियों को हल करने में समाज और शिक्षकों की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा, “इस कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षकों को बचपन के गैर-संचारी रोगों, उनके कारणों तथा रोकथाम की रणनीतियों के साथ-साथ बच्चों के पोषण एवं जीवनशैली की भूमिका पर उन्हें प्रशिक्षित करना है, ताकि इन जानकारियों के माध्यम से न केवल शिक्षक बच्चों में गैर-संचारी बीमारियों के लक्षणों को पहचानने में सक्षम बनेंगे, बल्कि इसके रोकथाम में भी अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करेंगे।”

यूनि‍सेफ के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. वनेश माथुर और पोषण विशेषज्ञ प्रीतीश नायक ने तकनीकी प्रस्तुतिकरण के माध्यम से शिक्षकों को बच्चों में बढ़ रहे गैर-संचारी रोगों के खतरे और उसकी रोकथाम की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बच्चों को गैर-संचारी रोगों से बचाने के लिए समय पूर्व  इसकी पहचान एवं उपचार के साथ-साथ बच्चों की जीवनशैली में सुधार एवं संतुलित आहार के समावेश के साथ-साथ शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया।

कार्यशाला के दौरान शिक्षकों ने भी अपने विचार और छात्रों के बीच स्वस्थ आहार की आदतों को बढ़ावा देने के अपने अनुभवों एवं चुनौतियों को साझा किया। उन्होंने स्कूल गतिविधियों में स्वास्थ्य शिक्षा के महत्व और इसके व्यावहारिक पहलुओं पर चर्चा की तथा बच्चों में बेहतर पोषण के लिए स्थानीय खाद्य विकल्पों के उपयोग पर विचार-विमर्श किया।

इस कार्यशाला ने बच्चों में सही खानपान को विकसित करने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध खाद्य विकल्पों के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्कता को भी रेखांकित किया, ताकि बच्चों के लिए पोषक आहार को सुनिश्चित कर उन्हें गैर-संचारी रोगों के खतरों से बचाया जा सके।

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