
- ट्राइबल स्टडी सेंटर विकास में पेसा कानून पर बैठक आयोजित
रांची। महाराजा मदरा मुंडा ब्याख्यानमाला के अंतर्गत ट्राइबल स्टडी सेंटर विकास भारती बिशुनपुर में पेसा कानून 1996 पर बैठक आयोजित की गई। इसमें कई क्षेत्रों के गणमान्य लोग जो पेसा कानून या पंचायतों के साथ कार्य कर रहे हैं, उनके विचार आमंत्रित किये गए। आदिवासी छात्र संघ के मुख्य संयोजक डॉ जलेश्वर भगत ने पंचायत के उपबंधों पर तकनीकी रूप से प्रकाश डाला।
पेसा के संदर्भ में महाराष्ट्र के नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए डॉ भगत ने कहा कि पेसा शाषित राज्यों में झारखंड सबसे मुश्किल राज्यों में से है, क्योंकि यहां पर अलग-अलग समुदायों के अलग अलग निहितार्थ हैं। इसी कारण नियमों के ना होते हुए भी झारखंड में स्मार्ट सिटी की अवधारना पर कार्य हो रहा है, जिसमें 281 अनुसूचित क्षेत्र के गांव को विलोपित किया जाना है।
डॉ भगत ने जोर देते हुए कहा कि पेसा कानून की धारा 4(एम) और 4(0) में जनजातीय व्यवस्था स्पष्ट रूप से दिया हुआ है। इसलिए उसी के अनुरूप उपबंधों के विस्तार के लिए जो 22 सदस्यीय कमिटी बनी थी जिसके अहम सदस्य शिबू सोरेन भी थे, को मान लेना चाहिए।
आईएसडीजी के मुखिया देवाशीष मिश्रा ने कहा कि सरकार में विभिन्न स्तरों पर झारखंड राज्य पंचायत अधिनियम और पेसा कानून को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जो प्रारूप चल रहा है, उसमें ग्राम सभा की शक्तियां शून्य हो चुकी है। ग्राम सभा में वैधानिक शक्तियां तो हैं, किंतु शासकीय शक्तियां नगन्य है। उन्होंने यह भी कहा कि पंचायती राज व्यवस्था का वर्तमान प्रारूप विशेष ग्राम सभा के वैधानिक व्यवस्था बनने में बाधक बना हुआ है।
आदिवासी कुर्मी समाज की ओर से बोलते हुए मुकेश खंडरवार और विकास कुमार महतो ने कहा कि कुर्मी समाज पेसा का विरोधी नहीं है, लेकिन पेसा के व्यावहारिक क्रियान्वयन में समाज के सभी वर्गों का ख्याल रखा जाना चाहिए। साथ ही, झारखंड के मूलवासी कुर्मी समाज को भी उतना ही वैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए जितना की जनजाति समाज को मिलता रहा है। क्योंकि आदिवासी मूलवासी जो अनुसूचित क्षेत्र से बाहर रह रहे हैं, वह भी भूमि व खान अधिनियम भूमि अधिनियम इत्यादि कानून के दोषपूर्ण क्रियान्वयन का शिकार हो रहे हैं। अपने गांव समाज कल्याण से बेदखल होने को विवश हो रहे हैं।
जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक संदीप उरांव ने बल देकर कहा कि पेसा कानून की क्रियान्वयन में प्रथागत रूढ़िवादी कानून को शक्ति देना होगा। अन्यथा जनजातीय समाज अपने जल जंगल जमीन के अधिकारों और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का संरक्षण खो बैठेगी।
पेसा कानून पर सरकार के रवैया को चुनौती देने वाले डॉ कुमार माल्टो ने कहा कि पेसा कानून को भारत के राष्ट्रपति द्वारा मान्यता दी गई है। इसमें अनुसूचित क्षेत्र में रहने वाले जनजाति के समुदायों और मूलवासियों को कानून की सुरक्षा दी गई है। पेसा के प्रावधान सभी जाति वर्ग के लोगों के लिए है, जो झारखंड में प्रथागत तरीके से निवास करते आ रहे हैं। इस कानून के लागू होने से विधायिका अन्य संस्थाओं को घबराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह पूर्व की तरह सरकार और समाज के लिए कार्य करते रहेंगे।
पेसा कानून के लागू हो जाने से केवल यहां की रूढ़िवादी व्यवस्था और समुदाय सरकार के साथ कार्यक्रमों के निर्माण और उसके क्रियान्वयन में सीधे-सीधे भागीदार हो जाएंगे, जिससे सरकार और संसाधनों का सीधा लाभ झारखंड के सभी वर्गों तक पहुंच पाएगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ट्राइबल स्टडी सेंटर के निदेशक डॉ प्रदीप मुंडा ने कहा कि बैठक का उद्देश्य पैसा पर स्थिति को स्पष्ट करना है। उन्होंने कहा कि सरकार में सक्षम लोगों के माध्यम से इन बातों को रखा जाएगा। पेसा कानून के लागू होने में हो रहे विलंब को समाप्त करने का प्रयास किया जाएगा।
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