रांची। परमार्थ और उदार कृत ही यज्ञ का भावार्थ है। यज्ञ का मतलब दान, संगठन एवं देवत्व है। अग्नि हमारे शरीर में ज्ञानाग्नि, जठराग्नि और दर्शनाग्नि के रूप में समाहित है। गायत्री परम्परा में ज्ञान ही प्रसाद है। उक्त विचार गायत्री परिवार के रांची जिला युवा सह समन्वयक राजू कुमार ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय परिसर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर में आयोजित दो दिवसीय नौ कुंडीय नवचेतना जागरण गायत्री महायज्ञ के समापन समारोह में व्यक्त किये।
शांतिकुंज हरिद्वार के प्रतिनिधि लक्ष्मण एवं प्रमोद ने कहा कि यज्ञ अग्नि की विशेषताएं हैं सिर सदा ऊंचा करके रखना और कोई भी दबाव पड़ने पर नीचे नहीं झुकना। जो भी संपर्क में आए उसे अपने समतुल्य बना लेना, जो मिले उसका संचय न करके विश्व वसुधा के लिए बिखेर देना, अपने अस्तित्व में गर्मी और रोशनी की कमी नहीं पड़ने देना और अपने सामर्थ्य को लोकहित में नियोजित किए रहना।
भजन, कीर्तन, हवन, आरती एवं भण्डारा में होचर, अरसंडे, बोड़ेया, सुकुरहुट्टू बस्ती सहित रांची शहर के लगभग एक हजार लोगों ने भाग लिया। इस अवसर पर पशुपतिनाथ मंदिर प्रबन्धन समिति की संगीता विजया और गायत्री परिवार के यज्ञ एवं कर्मकांड विशेषज्ञ निरंजन सिंह का बहुमान किया गया।
खबरें और भी हैं। इसे आप अपने न्यूब वेब पोर्टल dainikbharat24.com पर सीधे भी जाकर पढ़ सकते हैं। नोटिफिकेशन को अलाउ कर खबरों से अपडेट रह सकते हैं। साथ ही, सुविधा के मुताबिक अन्य खबरें भी पढ़ सकते हैं।
आप अपने न्यूज वेब पोर्टल से फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स सहित अन्य सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते हैं। खबरें पढ़ सकते हैं। सीधे गूगल हिन्दी न्यूज पर जाकर खबरें पढ़ सकते हैं। अपने सुझाव या खबरें हमें dainikbharat24@gmail.com पर भेजें।
हमारे साथ इस लिंक से जुड़े
https://chat.whatsapp.com/H5n5EBsvk6S4fpctWHfcLK