- वक्ताओं ने कहा – प्रत्येक कवि साहित्यकार का जन्मदिवस का आयोजन किया जाना चाहिए
रांची। नागपुरी भाषा परिषद, रांची और रांची विश्वविद्यालय के सौजन्य से केंद्रीय पुस्तकालय के सभाकक्ष में नागपुरी दिवस सह नागपुरी साहित्य के उद्भट कवि, साहित्यकार प्रफ्फुल कुमार राय की जयंती-प्रफ्फुल सम्मान समारोह का आयोजन 8 फरवरी को किया गया। इस अवसर पर पद्मश्री मधु मंसूरी हसमुख, पद्मश्री मुकुंद नायक और पद्मश्री से सम्मानित (घोषित) महावीर नायक उपस्थित थे।
कार्यक्रम में तीन पुस्तक का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। इसमें डॉ. उमेश नन्द तिवारी लिखित आधुनिक नागपुरी साहित्य की विविध बिधाएं, लेखक द्वय डॉ.उमेश नन्द तिवारी और डॉ राम कुमार, श्री राकेश रमण कृत खोईर खेला के विविध आयाम है। यह पुस्तक आने वाली पीढ़ी और नागपुरी प्रेमी छात्र-छात्राओं के लिए बहुत उपयोगी है।
नागपुरी दिवस के कार्यक्रम का संचालन, अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश कराते हुए रांची विश्वविद्यालय के नागपुरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. उमेश नन्द तिवारी ने बताया कि नागपुरी भाषा साहित्य में प्रफुल कुमार राय का बहुत योगदान था। उनके जन्म दिन को याद कर नागपुरी भाषा साहित्य के श्रीबृद्धि के लिए इस शुभ दिन को नागपुरी दिवस के रूप में स्व डॉ. भुवनेश्वर अनुज घोषित किए थे।
डॉ. तिवारी द्वारा बताया गया कि वर्ष 2025 के लिए प्रफ्फुल सम्मान पूर्व प्राध्यापक गोस्सनर महाविद्यालय सह नागपुरी भाषा साहित्य के साहित्यकार डॉ. राम प्रसाद और नागपुरी भाषा कि प्रसिद्ध गायिका श्रीमती यशोदा देवी को दिया जा रहा है। कार्यक्रम में नौ सहायक प्राध्यापक के साथ-साथ तीन पूर्व सेवानिवृत्त प्राध्यापकों को भी सम्मान दिया गया।
कार्यक्रम में नागपुरी भाषा परिषद् की महासचिव डॉ. शकुंतला मिश्र ने बताया कि आर्य भाषा परिवार में प्राचीन काल से ही नागपुरी भाषा का विशिष्ट स्थान रहा है। इस भाषा को साहित्य के रूप में स्थापित करने में कई विद्वतजनों का महति योगदान रहा है। उनमें प्रफ्फुल कुमार राय भी एक थे। इसके अथक प्रयास से ही कुछ अन्य विद्वतजन के सहयोग से जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा बिभाग स्थापित हुआ। बच्चे आज पाठ्यक्रम में नागपुरी भाषा में विभिन्न स्कूल कॉलेज में पढ़ रहे हैं। बहुतों को इस भाषा से रोजगार मिला हुआ है।
पद्मश्री मुकुंद नायक ने प्रफ्फुल कुमार राय को स्मरण कर बताया कि उनकी नागपुरी पद्य साहित्य का अनमोल मोती माना जाता है। वे नागपुरी के ऐसे गौरव शिखर हैं, जिसे काल का दीमक भी नहीं खा सकता है। इतिहास हीरे की तरह संजोये रखता है। झारखंड आंदोलन में भाषाई व सांस्कृतिक अगुवाई कर आंदोलन को गति प्रदान किया। आज का दिन अविस्मरणीय है।
पद्मश्री मधु मंसूरी हसमुख ने बताया कि प्रफुल्ल कुमार राय, नागपुरी साहित्य के यशस्वी, लोकप्रिय साहित्य स्रष्टा, महान गायक और कुशल मार्गदर्शक थे। अपनी रचना एवं कर्म के कारण वे नागपुरी और झारखंडी समाज के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे।
मुख्य अतिथि महाबीर नायक ने कहा कि झारखंड की रत्नगर्भा भूमि में जन्मे प्रफुल्ल कुमार राय नागपुरी भाषा, साहित्य जगत के ऐसे देदीप्यमान नक्षत्र थे, जिनका कार्य हम सभी के लिए अनुकरणीय है। प्रफुल्ल कुमार राय को छोड़ कर नागपुरी साहित्य का इतिहास नहीं लिखा जा सकता है। नागपुरी भाषा साहित्य के विकास के लिए उन्होंने अथक श्रम किया। अनेक साहित्य सृजन किया। वे एक साहित्यकार के साथ-साथ गायक, कुशल नेतृत्वकर्ता एवं प्रशासक भी थे।
कुलपति ने कहा कि प्रत्येक कवि साहित्यकार का जन्मदिवस का आयोजन ऐसे ही किया जाना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी याद रख सके। विशिष्ठ अतिथि डॉ. गुरुचरण साहु, रांची विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने बताया कि प्रफुल्ल कुमार राय द्वारा जिस साहित्य की रचना की गई, उसने नागपुरी भाषा को मजबूती के साथ खड़ा किया। इसी के कारण बड़े-बड़े विश्वविद्यालय में छात्र-छात्रा नागपुरी भाषा में शिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। सभी को मिलकर कोशिश करनी चाहिए कि वैश्विक स्तर पर झारखंडी भाषाओं का विकास सुनिश्चित हो।
रांची विवि के संकायाध्यक्ष (छात्र कल्याण संकाय) डॉ. सुदेश कुमार साहु ने बताया कि इनका जन्म 8 फरवरी, 1926 को गुमला जिला के सिसई पहाड़ बंगरू गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पांडे रामकिशोर राय और माता का नाम सुचित्रबाला देवी था। उन्होंने वाणिज्य स्नातक की पढ़ाई की। एक सरकारी कर्मचारी के रूप में अपना करियर सीसीएल से शुरू किया। वे एक लेखक के अलावा गायक भी थे। उनकी रचनाएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं। उन्होंने सोन झाइर (कहानियों का संग्रह), बरखा, बरखा खंड,अवसर नी मिले बुझू और किलकिला लिखे। नागपुरी भाषा में रचनाओं के प्रकाशन और 1960 में नागपुरी भाषा परिषद के गठन में उनकी प्रमुख भूमिका थी।
डॉ राम प्रसाद ने बताया कि प्रफुल्ल दा जैसे शख्स का मिलना मुश्किल है। ऐसे महापुरुष हमारे बीच कभी-कभार ही जन्म लेते हैं। उनके संघर्षों को हमारी नई पीढ़ी को जानना व समझना चाहिए। वे अपने आप में एक अथाह समुद्र थे, उनका मुकाबला नहीं।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुखदेव साहू ने किया। इस अवसर पर डॉ. गुरुचरण साहु, डॉ. राम प्रसाद. डॉ.शकुंतला मिश्र, डॉ. संजय कुमार षाड़ंगी, हरिनन्दन महली, धनेंद्र प्रवाही, रामदेव बड़ाईक, पूनम कुमारी, डॉ.रामजय नायक, करमी मांझी, नन्दकिशोर रजक, संगीता तिग्गा, अजय पाण्डेय, प्रमोद कुमार राय, डॉ. खालिक डॉ. राम कुमार, अहमद, सुश्री करमी मांझी, नवीन कुमार मिश्र, तनवीर मिरदाहा, सुभासिनी, एम. मोदस्सर, विकास कुमार सिन्हा, मनपुरन नायक, डॉ.आदित्य कुमार जयविंद नागेश्वर, डॉ. सुभाष साहु, डॉ. अंजू कुमारी साहु, रविन्द्र साहु, सुश्री पूनम कुमारी, नेहा कुमारी, ईजुद्दीन मिरदाहा, डॉ.अनुपमा मिश्रा, अवधेश सिंह, सुनीता कुमारी टोप्पो, बुधेश्वर बड़ाईक, श्रीमती सरोज कुमारी, इंद्रजीत राम,पूजा तिर्की, पूनम भगत, इंद्रभूषण भगत मौजूद थे।
इसके अतिरिक्त बेबी कुमारी, संगीता तिग्गा, नंदकिशोर प्रसाद,जलेश्वर महतो, प्रवीण कुमार सिंह, रवि कुमार, सोनू सपरवार,अनुप गाड़ी , संजय कुमार, उषा कुमारी,रश्मि शिखा कुमारी, अनिता कुमारी सिंह,श्रीमती राजमुनी कुमारी, सुषमा कच्छप, बिराज चिक बड़ाईक, सीमा कुमारी,अरविन्द कुमार, शहला सरवर, मनोज कुमार, नागपुरी करूणा कुमारी, देवेंद्र साहु, नमिता पूनम, प्रवीण सिंह, रावी कुमार, तबरेज, अनूप गाड़ी, नेहा कुमारी पूनम भगत, उषा कुमारी, सौरव आनंद बर्मन चन्द्रिका, नवल किशोर, कंचन मुंडा, तबरेज मंसुरी, मीना कुमारी, सीमा कुमारी, डॉ. जयकांत इंदवार, धीरज नायक, , शंकर नायक डॉ. रेखा कुमारी, डॉ. आलम आरा,डॉ. सुमन कुमार सहित बड़ी संख्या में भाषा प्रेमी, साहित्यकार, शोधार्थी और छात्र-छात्राएं मौजूद थे।
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