जलाशयों में झींगा पालन से आदिवासी की जीविका में हो रहा सुधार

झारखंड
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रांची। झारखंड के मसरिया (गुमला), केलाघाग (सिमडेगा) ओर घाघरा (हजारीबाग) में ‘झारखंड के कम उपयोग वाले जलाशय संसाधनों में स्कैंपी झींगा मत्स्य पालन बुद्धि प्रौद्योगिकी की माध्यम से आदिवासी समुदाय की आजीविका में सुधार’ विषय पर प्रायोजित परियोजना को मत्स्य विभाग क्रियान्वित कर रहा है। आईसीएआर-सीआईएफआरआई (बैरकपुर, कोलकाता) इस परियोजना को प्रायोजित कर रहा है।

भारत में पहली बार गुमला जिले के मसरिया में एक नई तकनीक ‘राउंड फ्लोटिंग पेन’ की स्थापना 28 नवंबर, 2024 को की गई। इस पेन का उद्घाटन डिपार्टमेंट ऑफ फिशरी गुमला की डीएफओ सुश्री कुसुमलता और आईसीएआर-सीआईएफआरआई ने किया। टीम का नेतृत्व प्रधान वैज्ञानिक सह परियोजना पीआई डॉ एके दास ने किया। सीआईएफआरआई के निदेशक डॉ बीके दास के मार्गदर्शन से किया गया।

उद्घाटन कार्यक्रम में डैम के नजदीकी स्थित पीएम श्री नवोदय विद्यालय के प्रधानाध्यापक, विद्यालय के स्टॉफ ओर विद्यालय के दो सौ छात्र भी उपस्थित रहे। राउंड फ्लोटिंग पेन में 30 दिन का पोस्ट लार्वा साइज का दो लाख झींगा बीज छोड़ा गया है। इसमें 28 नवंबर को 75,000 और 4 दिसंबर को 85,260 पीस रोजेंनबर्गी प्रजाति का झींगा बीज का संचयन किया गया है।

झींगा मछली बीज जैसे ही 10 से 20 ग्राम का हो जाएगा, वैसे ही मुख्य जलाशय में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। ये फ्लोटिंग पेन झींगा मछली बीज को बढ़ाने में मदद करेगा। साथ ही, खाऊं मछली और जंगली मछली से बचाएगा जैसे कि मारेल, थाई मांगुर, सिंघी, कवई, गरई ओर बोवारी इत्यादि।

बता दे कि इस तकनीक के माध्यम से मसरिया जलाशय में काम करने वाले आदिवासी समुदाय की जीविका में लंबे समय तक उन्नत बनी रहेगी।

समग्र परियोजना गतिविधियों की निगरानी गुमला उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी और मत्स्य विभाग झारखंड के मत्स्य निदेशक एचएन द्विवेदी के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।

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