मुंबई के रेस्टोरेंट में झारखंड के किसानों की पैदावार रही आकर्षण का केंद्र

झारखंड कृषि
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रांची। ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (टीआरआई) ने 17 दिसंबर को बांद्रा के रेस्टोरेंट प्रोजेक्ट हम में एक मिलियनेयर फार्मर्स ब्रंच का आयोजन किया। यह कार्यक्रम टीआरआई के मिलियनेयर फार्मर्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (एमएफडीपी) का विस्तार था, जो किसानों को यह बताता है कि वे खेती से लाभदायक और स्थायी आजीविका कैसे उत्पन्न कर सकते हैं। इसका उद्देश्य उनके उपलब्धियों और खेती की उपज का जश्न मनाना था।

इस उत्सव का मुख्य आकर्षण ‘ब्रैकफ़स्ट विथ मिलियनेयर फ़ार्मर्स’ था, जिसमें ऐसे ताज़े, मौसमी उत्पादों से तैयार एक सुंदर स्प्रैड शामिल था। इन्हें सीधे किसानों के खेतों से प्राप्त किया गया था।

इस कार्यक्रम में भाग लेने वालों को झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के प्रेरणादायक किसानों से बातचीत करने का अवसर मिला। इनमें धुरलेटा गांव के हरिचरण उरांव, पुराना पानी की निक्की कुमारी और फडिलमार्चा की पिंकी कुमारी शामिल थे।

प्रोजेक्ट हम के सह-संस्थापक राघव सिम्हा ने कहा कि एक समुदाय के तौर पर, यह महत्वपूर्ण है कि हम किसानों और रेस्टोरेंट के बीच अच्छे संबंधों का विकास करने में निवेश करें। साथ ही, स्थायित्व से संबंधित चर्चा में कुछ ज़रूरी बातों को बढ़ावा दें। यह कार्यक्रम हमारे किसान को प्राथमिकता देने वाले समुदाय के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में एक कदम है।

लखपति किसानों ने स्थायित्व युक्त कृषि के अपने अनुभवों से महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान कीं, जिसमें जैविक खेती, मिश्रित फसलें और ड्रिप सिंचाई जैसे प्रमुख तौर-तरीके शामिल थे।

अपनी सफलता की कहानी के बारे में निक्की कुमारी ने बताया कि कैसे एमएफ़डीपी शामिल होने से उन्हें पारंपरिक खेती की मुश्क़िलों से निपटने में मदद मिली। वे एक सफल किसान बन गईं। प्राप्त हुए ज्ञान के चलते उन्होंने अपनी दो बेटियों को डीएवी स्कूल में भेजा। परिवार के ख़र्चों को सुचारू रूप से प्रबंधित किया। पहले सामने आने वाली वित्तीय कठिनाइयों को कम किया। उन्होंने एक ट्रैक्टर भी खरीदा, जिससे उनकी कृषि की दक्षता में और सुधार हुआ।

पिंकी को के समुदाय में ‘पिंकी दीदी’ के नाम से जाना जाता है। उन्‍होंने बताया कि कैसे एमएफ़डीपी. ने उन्हें पौधों की ग्राफ्टिंग का काम शुरू करने का अवसर दिया। इस तकनीक ने उनकी कृषि की उपज को तीन गुना बढ़ा दिया। उनके लिए उत्पाद बेचकर बड़ा लाभ कमाना संभव बनाया। उन्होंने कहा कि मुझे फसलें उगाना आता है, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारी फसलों से ऐसे पकवान बनाए जा सकते हैं।

हरिचरण ने आत्मनिर्भरता के महत्व पर ज़ोर दिया। “किसी और की भूमि पर काम करने के बजाय, हम अपनी ज़मीन की खेती करने में गर्व महसूस करते हैं और मेहनत और लगन के माध्यम से अपने स्वयं के मालिक बनते हैं,” उन्होंने कहा।

बापी गोराई ने कहा कि एमएफडीपी कार्यक्रम के माध्यम से, हम किसानों, विशेष रूप से युवा किसानों के लिए अवसर पैदा करके, टिकाऊ कृषि प्रथाओं के माध्यम से स्थायी परिवर्तन लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिन्हें क्षेत्र में अप्रयुक्त इन प्रथाओं को सीखने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता है।

टीआरआई का एमएफ़डीपी एक परिवर्तनकारी पहल है, जो किसानों की मदद करके कौशल के अंतर को पाटता है। इस कार्यक्रम ने अब तक झारखंड के जनजातीय क्षेत्रों के 41 किसानों को ‘लखपति किसान’ का दर्जा प्राप्त करने में सक्षम बनाया है।

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