टाटा स्टील फाउंडेशन ने आदिवासी भाषाओं पर की कार्यशाला

झारखंड
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  • 100 से अधिक आदिवासी भाषा के शिक्षकों ने कार्यक्रम में भाग लिया

जमशेदपुर। टाटा स्टील फाउंडेशन (टीएसएफ) ने ओडिशा के जाजपुर जिले में टाटा स्टील फेरो एलॉयज एंड मिनरल्स डिवीजन (एफएएमडी) के सुकिंदा क्रोमाइट माइन परिसर में ‘आदिवासी भाषाएं, उनका संरक्षण और संवर्धन’ पर एक जागरुकता कार्यशाला का आयोजन किया। इसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों में आदिवासी भाषाओं के संरक्षण और भाषा संबंधी विविधता को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करना था।

सुकिंदा, बामनीपाल और कलिंगानगर क्षेत्रों में स्थित टीएसएफ के आदिवासी भाषा शिक्षण केंद्रों से ओल-चिकी और वारंगचिती लिपियों के 100 से अधिक शिक्षकों ने इस कार्यशाला में भाग लिया। ये शिक्षक फाउंडेशन के आदिवासी भाषा शिक्षा को मजबूत बनाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो सांस्कृतिक धरोहर से गहरे जुड़ाव को प्रोत्साहित करता है और मूल लिपियों में साक्षरता का समर्थन करता है।

इस अवसर पर एक्जीक्यूटिव इंचार्ज (एफएएमडी) पंकज सतीजा ने कहा, “हमारे लिए भाषा हमारी पहचान और संस्कृति का आधार है। हमारे स्वदेशी समुदायों का गहन ज्ञान उनकी लोककथाओं और गीतों में बसा है। इन पहलों के जरिए हमारा प्रयास सिर्फ आदिवासी भाषाओं की धरोहर को संजोना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि उनकी भाषा, संस्कृति, पहचान और प्रकृति संरक्षण की परंपराओं का सम्मान और उत्सव मनाया जाए। हम चाहते हैं कि यह विरासत आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रहे और समृद्ध हो।”

कार्यक्रम की खास बात रही शिक्षकों के समूह द्वारा आदिवासी भाषाओं में प्रस्तुत किया गया एक प्रभावशाली नुक्कड़ नाटक। इस नाटक के माध्यम से शिक्षकों ने बाल श्रम रोकथाम, सभी के लिए शिक्षा का महत्व, मलेरिया, डेंगू, टीबी और कुपोषण जैसी बीमारियों के शुरुआती इलाज की आवश्यकता पर जागरुकता फैलाने के साथ-साथ बाल विवाह के दुष्प्रभावों पर भी जोर दिया। आदिवासी संस्कृति की रंगत में रची-बसी इस प्रस्तुति ने दर्शकों का न केवल मनोरंजन किया, बल्कि उन्हें महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर भी जागरूक किया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित एफएएमडी के चीफ (माइन्स) शंभू नाथ झा ने आदिवासी भाषाओं के संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित राज्य समन्वयक (बहुभाषी शिक्षा, भुवनेश्वर) डॉ. परमानंद पटेल ने आदिवासी समुदायों के लिए शैक्षणिक और सामाजिक अवसरों को और अधिक सशक्त बनाने पर बल दिया।

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