एक मोती को तैयार होने में लगते हैं 18 से 24 महीने

झारखंड
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  • मात्स्यिकी महाविद्यालय में विद्यार्थियों ने लिया मीठे पानी में मोतीपालन पर प्रशिक्षण

गुमला। मात्स्यिकी महाविद्यालय के चतुर्थ वर्ष के विद्यार्थियों के लिए दो दिनी मीठे पानी में मोतीपालन पर प्रशिक्षण आयोजित किया गया। इसमें उन्हें मीठे जल में मोतीपालन के बारे में विस्तार से जानकारी देने के साथ-साथ प्रायोगिक परीक्षण भी दिया गया।

मोती एक प्राकृतिक रत्न है, जो सीप में पैदा होती है। मोती का निर्माण तब होता है, जब कोई बाहरी कण या आकृति जैसे रेत सीप के अन्दर प्रवेश करता हो या ऐसी कोई आकृति जिसपर सीप की लेयर बनाना हो, को किसी सीप में शल्यक्रिया से सीप के अंदर प्रवेश कराया जाता है। शल्य क्रिया स्थान के अनुसार तीन तरह से की जाती है। इसमें सतह का केंद्र, सतह की कोशिका और प्रजनन अंगों की सर्जरी शामिल है।

सर्जरी के लिए बीड या न्यूक्लियाई उपयोग में आते हैं, जो सीप के खोल या अन्य कैल्शियम युक्त साम्रगी से बनाए जाते हैं। सीप के अन्दर प्रवेश हुए बहरी कण अथवा आकृति को सीप बाहर नहीं निकाल पाता है, जिसकी वजह से सीप को चुभन होता है। इससे इसके मेंटल उत्तक के द्वारा एक लार जैसे लिक्विड का स्राव होता है जो रेत, बजरी एंव आकृति पर जमा होने लगता है। यह स्रावित पदार्थ सूखने के बाद चमकदार होता है। इसकी कई परतें जमा होकर मोती का स्वरूप लेती है।

भारत में मोती पालन की प्रचुर संभावनाएं है। मोती क पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसकी शुरुआत के लिए किसी विशेष तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है। मीठे जल में मोतीपालन के लिए उपयुक्त प्रजातियों में लैमेलीडीन्स मार्जिनेलिस, लैमेलीडीन्स कोरिआनस और पेरेशिया कोरुगाटा है। एक मोती को तैयार होने में 18 से 24 माह लगते हैं। इसकी कीमत गुणवत्ता के आधार पर 300 से 15 हजार रुपए तक होती है। विद्यार्थियों को मोती पालन की जानकारी देने एवं इसका अनुभव प्रदान करने के लिए यह प्रशिक्षण आयोजित किया गया।

यह प्रशिक्षण सह-अधिष्ठाता डॉ. ए.के. सिंह के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ है। उन्होंने बताया कि मोतीपालन प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मोतीपालन शुरू करने के लिए कोई विशेष तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है। किसान छोटे स्तर पर इसे शुरू करने के लिए 1000 सीपीयों का पालन कर सकते हैं। किसान खेती के साथ छोटे-छोटे सीमेंट तालाब बना कर मोतीपालन भी शुरू कर सकते हैं।

प्रशिक्षण में महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापकों में डॉ. प्रसान्त जना, डॉ. स्टेंजीन गावा, डॉ. रोहिताश यादव, डॉ. गुलशन कुमार, डॉ. तसोक लिया, डॉ. ओम प्रवेश कुमार रवि, डॉ. विसडम, सुश्री विष्णु प्रिया, डॉ. श्वेता कुमारी, डॉ. कस्तूरी चट्टोपाध्याय एवं डॉ. मनमोहन उपस्थित थे।

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